अफ़ग़ानिस्तान, अल्पसंख्यक हज़ारा समुदाय मे भविष्य को लेकर चिंता शिया समाज से संबंध रखने वाला हज़ारा समुदाय पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हमेशा ही आतंकियों के निशाने पर रहा है।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन के पीछे एक बार फिर हज़ारा समुदाय अपने भविष्य को लेकर बेहद चिंतित है। शिया संप्रदाय से संबंध रखने वाला हज़ारा समुदाय तालिबान के पहले शासन में भी बेहद अत्याचारों का सामना किया है।
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी से पहले हज़ारा और शिया संप्रदाय आईएसआईएस आतंकवादी संगठनों के निशाने पर रहा है। उन्हें समय-समय पर सताया गया, मार डाला गया, जातीय रूप से उनका सफाया करने के लिए बड़े-बड़े अभियान चलाया गया।
हालांकि कहा जा रहा है कि तालिबान का वर्तमान शासन कुछ उदारवादी होगा और हज़ारा संप्रदाय थोड़ा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। लेकिन यह भावना, यह सुरक्षा का अहसास कब एक डर और भय में बदल जाए उसकी कोई गारंटी नहीं है।
उन्हें अभी अपना दर्द याद आता है। अतीत में मिला दर्द अभी खत्म नहीं हुआ है। हज़ारा समुदाय अतीत में हुए कत्लेआम को याद कर के भविष्य को लेकर काँप उठता है।
हज़ारा संप्रदाय तालिबान आतंकियों के साथ-साथ आईएसआईएस के निशाने पर भी रहा है। तालिबान की नव गठित अंतरिम सरकार के साथ ही हज़ारा समुदाय में अत्याचार एवं कैद किए जाने से लेकर जातीय सफाए का डर साफ देखा जा रहा है, क्योंकि तालिबान नेतृत्व में कट्टर आतंकवादी एवं पश्तून उग्रवादी शामिल है।
हज़ारा समुदाय के एक सदस्य हसन ज़ादह ने कहा कि तालिबान में पश्तून लोगों का वर्चस्व है इस सरकार में हज़ारा समुदाय की कोई भागीदारी नहीं है और यह चिंता का विषय है।
हज़ारा समुदाय देश के अल्पसंख्यक शिया समुदाय का भाग है जबकि तालिबान नेतृत्व में कट्टर सुन्नी विचारधारा के लोग शामिल हैं जिन्होंने 1990 के दशक में शिया समुदाय पर अत्याचारों की सभी सीमाएं लांघ दी थी।
हज़ारा समुदाय अपने खिलाफ चलाए गए जातीय नरसंहार को कभी नहीं भूल सकता। उनकी रैलियों पर बमबारी की गई, अस्पतालों को निशाना बनाया गया एवं घात लगाकर उन पर हमले किए गए थे।
हाल ही में जून महीने में इस समुदाय पर सबसे बड़ा हमला हुआ जब आईएसआईएस आतंकी ने स्कूल को निशाना बनाकर सैंकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।
अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े के बाद पहली बार शुक्रवार को हज़ारा समुदाय के लाखों लोगों ने काबुल के बाहर स्थित एक मस्जिद में नमाज अदा की। मस्जिद के इमाम अब्दुल कादिर अलीमी ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अफ़ग़ानिस्तान की जनता एक समावेशी सरकार चाहती है। जिसमें सभी धर्मों एवं जातियों के मानने वालों को प्रतिनिधित्व दिया जाए।
हज़ारा समुदाय के लिए एक बड़ी चिंता यह भी है कि उनका सरकारी कार्यालयों से बहिष्कार किया गया है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद सरकारी नौकरी कर रहे हैं समुदाय के लोग बेरोजगार हो गए हैं।
चिंताएं बहुत सी बातों को लेकर हैं। हम यह तो नहीं कहेंगे कि तालेबान हमें मार रहे हैं लेकिन इस तरह घुट घुट कर जीने से मर जाना बेहतर है तालिबान शासन के तहत शिया समाज के लिए अपनी आजीविका बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है।
कहने को तो तालिबान ने भी हमारे समुदाय के लिए कुछ भी पूरा नहीं किया है लेकिन बुनियादी खाद पदार्थों की बढ़ती कीमतें कई समुदाय के सदस्यों की बेरोजगारी उन्हें भुखमरी की ओर धकेल रही है।