मुसलमानों की एकता से क्यों परेशान है इज़रायल
उपमहाद्वीप में मुसलमानों के बीच धार्मिक मतभेदों ने शत्रुता का ऐसा रूप ले लिया है कि इस्लाम और मुसलमान दोनों की छवि प्रभावित हुई है। एक धर्म के रूप में इस्लाम अमेरिका से लेकर फिजी और तौहीद बारी सर्वशक्तिमान तक अपने ग्रंथों में से एक है।
मुहम्मद साहब आख़री पैग़म्बर हैं, पवित्र कुरान के अल्लाह की किताब है, मृत्यु और भाग्य अल्लाह की ओर से हैं और मृत्यु के बाद इंसान पुनर्जीवित होता है, कोई भी इस बात से असहमत नहीं है। अब जो मतभेद हैं वे व्याख्याओं और विवेचनों से संबंधित हैं, जिनमें भौगोलिक कारकों ने प्रमुख भूमिका निभाई है और ये मतभेद इस्लाम के लोकतांत्रिक चरित्र का प्रतिबिंब हैं और इसीलिए इन मतभेदों को वरदान घोषित किया गया है।
लेकिन हुआ यह कि स्थानीय रीति-रिवाजों ने ऐसा भ्रम पैदा किया कि मुसलमानों की एकता को ऐसी गंभीर क्षति हुई कि उसने उन्हें कहीं का नहीं रखा। लेकिन भला हो जमीयत उलेमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी का, जिन्होंने अपने एक बयान में बड़ी समझदारी दिखाते हुए और साहस से काम लेते हुए कहा कि वह धार्मिक मतभेदों से ऊपर उठकर उम्मत को एकजुट करने के लिए तैयार हैं। इसके लिए हर कुर्बानी देने को तैयार हैं और जो बरेलवी विद्वान हैं उनका अनुसरण करने को भी तैयार हैं।
मौलाना महमूद मदनी का बयान बेहद अहम है क्योंकि वह जमीयत उलेमा हिंद के अध्यक्ष भी हैं, जो देवबंद के उलेमाओं का एक ऐतिहासिक मंच है और शेखुल इस्लाम मौलाना हुसैन अहमद मदनी के परिवार के रौशन चिराग़ हैं। यहां यह भी याद रखने की बात है कि चाहे देवबंदी विद्वान हों या बरेलवी विद्वान, दोनों नियमित रूप से सूफीवाद से जुड़े हुए हैं।
इस्लाम में यूं तो कई फ़िरक़े हैं लेकिन इसमें वो फ़िरक़ा जो सारे फ़िरक़ों की बुनियाद है, वह शिया-सुन्नी फ़िरक़ा है। दोनों फ़िरक़े हज़रत मोहम्मद साहब की तालीम का अनुसरण करते हैं। यहां पर यह भी बता देना ज़रूरी है कि दोनों समुदाय का प्रमुख धार्मिक स्थल एक है जिसे ख़ानए काबा कहा जाता है। जिस पर काले रंग का कपड़ा पड़ा हुआ है जो सऊदी अरब के मशहूर शहर मक्का में मौजूद है जहाँ हर साल पूरी दुनियां के मुसलमान हज के लिए जाते हैं।
शिया सुन्नी दोनों समुदाय में ख़ानए काबा सबसे पवित्र स्थल है। जिसका आदर सम्मान हर मुसलमान पर वाजिब है। अगर दोनों समुदाय में से किसी ने भी इस स्थल के बारे में कुछ भी अपशब्द कहे या उसके सम्मान का इंकार किया तो वह मुसलमान नहीं रह जाता। शिया सुन्नी दोनों समुदाय अपनी पांच वक़्त की नमाज़ इसी तरफ़ खड़े होकर पढ़ते हैं।
इस समय सबसे ज़्यादा शिया ईरान में मौजूद हैं और सुन्नी सऊदी अरब में मौजूद हैं। दोनों समुदाय के ज़्यादातर धार्मिक विद्वान भी इन दो देशों में मौजूद हैं। शिया समुदाय अपने धार्मिक कामों में ज़्यादातर ईरान का रुख़ करते हैं जबकि सुन्नी समुदाय सऊदी का रुख़ करते हैं। इन्हीं वजहों से अक्सर शिया सुन्नी समुदाय में टकराव करने की कोशिश की जाती है।
यह टकराव ज़्यादातर अमेरिका और इज़रायल की तरफ़ से कराया जाता है क्योंकि इज़रायल मुसलमानों को और इस्लाम को अपना दुश्मन समझता है जबकि मुसलमान चाहे शिया हों या सुन्नी दोनों इज़रायल को अपना दुश्मन समझते हैं, और उसका मूल्य कारण यह है कि मुसलमानों का पहला क़िब्ला जिसे बैतुल मुक़द्दस कहा जाता है, जिस तऱफ ख़ानए काबा से पहले दोनों समुदाय के लोग मुंह करके नमाज़ पढ़ते थे उस पर इज़रायल ने नाजायज़ क़ब्ज़ा कर रखा है।
बैतुल मुक़द्दस फ़िलिस्तीन में है, और जिस फ़िलिस्तीन ने यहूदियों को पनाह दी थी उन्ही यहूदियों ने आधे से ज़्यादा फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर ज़बरदस्ती क़ब्ज़ा करके इज़रायल नामक देश की स्थापना कर दी। इज़रायल अकसर फ़िलिस्तीनियों पर हमला करता है। उनके घरों को वीरान करता है,और बैतुल मुक़द्दस का अपमान करता रहता है जिससे पूरी दुनियां के मुसलमान आक्रोषित रहते हैं।
शिया बहुल आबादी वाला देश ईरान फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करता है , और हमेशा उनके हक़ के लिए आवाज़ बुलंद करता है। ईरान के सर्वोच्च धर्मगुरु स्वर्गीय आयतुल्लाह ख़ुमैनी ने इज़रायल के विरूद्ध मुसलमानों से खड़े होने का आह्वान करते हुए कहा था कि अगर पूरी दुनिया के मुसलमान आपसी विवाद भुला कर एक ससथ खड़े हो जाएं और सिर्फ़ एक गिलास पानी फैंक दें तो पूरा इज़रायल बाह जाएगा।
इसी कारण इज़रायल और अमेरिका की यह कोशिश होती है कि दोनों समुदाय में विवाद पैदा किया जाए ताकि दोनों समुदाय कभी एक न हो पाएं। इसीलिए मीडिया द्वारा दोनों समुदाय के विरुद्ध दुष्प्रचार कराया जाता है ताकि इज़रायल सुरक्षित रहे, किन्तु अभी हाल ही में भारत में एक फ़िल्म रिलीज़ हुई है जिसका नाम है “The Vaccine War” इस फिल्म को बनाने वाले फ़िल्मकार विवेक अग्निहोत्री हैं जिन्होंने कुछ महीनों पहले द कश्मीर फाइल्स जैसी फ़िल्म बनाई थी।
अपनी हालिया फ़िल्म “the vaccine war”में उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि सुन्नी समुदाय के लोग मक्का हज करने जाते हैं जबकि शिया समुदाय के लोग हज करने के लिए ईरान के पवित्र शहर क़ुम जाते हैं। जबकि दुनियां का इंसान चाहे वह जिस धर्म, समुदाय, या देश का हो वह यह बात जानता है कि शिया सुन्नी दोनों हज करने मक्का जाते हैं यहाँ तक कि ईरान के रहने वाले और क़ुम के रहने वाले भी हज करने मक्का जाते हैं।
हज सिर्फ मक्के में ख़ानए काबा जाकर होता है। हज मुसलमानों में ज़िन्दगी में एक बार वाजिब है और वह मक्का में होता है यह बात तो बच्चा बच्चा जनता है, फिर विवेक अग्निहोत्री ने “क़ुम” का नाम लेकर दुष्प्रचार क्यों किया ? यह उनकी अज्ञानता है या कोई साज़िश ? अज्ञानता तो हो नहीं सकती क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि हज सिर्फ़ मक्का में होता है।कमाल की बात तो यह है कि उनकी इस फिल्म का भारत सरकार ने भी कोई समर्थन नहीं किया है।
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