सीरिया से रिश्ता तभी होगा, जब गोलान हमारा रहे: इज़रायल

सीरिया से रिश्ता तभी होगा, जब गोलान हमारा रहे: इज़रायल
जहाँ एक ओर कुछ रिपोर्टों में यह दावा किया जा रहा है कि सीरिया और इज़रायल के बीच साल के अंत तक एक समझौता हो सकता है, वहीं इज़रायल ने साफ़ कर दिया है कि गोलान की पहाड़ियाँ उसके कब्ज़े में रहनी चाहिए—यही उसकी सबसे बड़ी शर्त है।
फार्स न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, इज़रायली विदेश मंत्री गिदोन सार ने चैनल i24 को दिए इंटरव्यू में कहा:
“अगर सीरिया के साथ कोई शांति या सामान्यीकरण समझौता होता है, तो वह तभी मुमकिन है जब गोलान की पहाड़ियाँ हमारे पास बनी रहें। यह इज़रायल के भविष्य के लिए सकारात्मक होगा।”
यह बयान इसलिए हैरान करने वाला है क्योंकि पहले मिस्र और जॉर्डन के साथ समझौतों में इज़रायल ने उनके क़ब्ज़े वाले क्षेत्र लौटाए थे ताकि वे सामान्यीकरण की दिशा में बढ़ें। मगर सीरिया के मामले में उलटा हो रहा है। इज़रायल शांति की शर्त के तौर पर गोलान पर अपना क़ब्ज़ा बरक़रार रखना चाहता है।
इसी चैनल से एक जूलानी की विद्रोही सरकार से जुड़े सीरियाई सूत्र ने दावा किया कि साल 2025 के अंत तक सीरिया और इज़रायल के बीच शांति समझौता हो जाएगा। उसके अनुसार, यह समझौता दोनों देशों के रिश्तों को पूरी तरह सामान्य कर देगा और इज़रायल के कब्ज़े वाला गोलान, तथाकथित “शांति का बाग़” बन जाएगा।
उस सूत्र ने यह भी कहा कि इस समझौते के तहत इज़रायल 8 दिसंबर 2024 को सीरिया के बफ़र ज़ोन में किए गए हमले के बाद जो ज़मीनें कब्ज़ा कर चुका है, उनसे धीरे-धीरे पीछे हटेगा—जिसमें जबल अल-शेख की ऊँची चोटियाँ भी शामिल हैं।
इसी बीच, अहमद अल-शरअ उर्फ़ महमूद जूलानी, जो सीरियाई विद्रोही सरकार का  प्रमुख है, उसने क़ुनेत्रा प्रांत और गोलान क्षेत्र के प्रमुख समुदाय नेताओं से मुलाक़ात की और वहाँ के लोगों की बातें सुनीं, जिन्होंने इज़रायली हमलों और अतिक्रमणों से जुड़ी तकलीफ़ें साझा कीं। अल-शरअ ने कहा कि कुछ देशों की मध्यस्थता से अप्रत्यक्ष वार्ताएं चल रही हैं, ताकि इज़रायली हमलों को रोका जा सके।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले महीने के अंत में सीरिया और इज़रायल के बीच प्रत्यक्ष संपर्क हुए हैं, और सीमा क्षेत्रों में आमने-सामने की बैठकें भी हुई हैं—यह सब तनाव घटाने और संघर्ष को रोकने के लिए किया गया। ध्यान देने योग्य है कि, इज़रायल ने 1967 की जंग के दौरान गोलान की पहाड़ियों पर कब्ज़ा कर लिया था, और दिसंबर 2024 में बशर अल-असद की सत्ता के पतन के बाद उसने और इलाक़ों पर भी क़ब्ज़ा जमा लिया है।

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