ईरान का शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य बनने का अर्थ

ईरान का शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य बनने का अर्थ शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य के सदस्य के रूप में ईरान के शुरुआत में कई देशों की नींद उड़ा दी है।

ईरान का शंघाई सहयोग संगठन में उस समय आगमन हुआ है जब क्षेत्र भू राजनीतिक मंथन के भंवर में उलझा हुआ है। दुशांबे में हुए शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में ईरान की सदस्यता ने कई देशों को उलझन में डाल दिया है।

ईरान के राष्ट्रपति आयतुल्लाह सय्यद इब्राहीम रईसी के दुशांबे शिखर सम्मेलन में सदस्य देश के नेता के रूप में उतरने से पहले ही ईरान पर्यवेक्षक के रूप में इस संगठन से जुड़ा रहा है।

इससे पहले तक भारत ,रूस, चीन, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और पाकिस्तान समेत आठ सदस्य देशों के साथ ईरान, बेलारूस, अफगानिस्तान, मंगोलिया पर्यवेक्षक के रूप में मौजूद थे जबकि आर्मेनिया ,कंबोडिया, अज़रबैजान, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका संवाद भागीदार के रूप में साथ है।

पश्चिमी जगत से अलग शक्तिशाली देशों के संगठन में ईरान की भागीदारी एवं इन देशों के संगठन ने इस तथ्य को गलत करार दे दिया है कि क्षेत्रीय शक्तियों के बीच अमेरिका के शक्ति केंद्र के विरुद्ध आपसी एकीकरण को बढ़ावा देने की क्षमता नहीं है।

अल्फाज निकोल क्रेजी विस्की ने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के साथ ही मध्य एशिया में तेजी से बदलती स्थिति के बीच शंघाई सहयोग संगठन के कॉकपिट में तेहरान के प्रवेश ने इस मुहीम को और अधिक तेज़ी प्रदान की है जबकि इस क्षेत्र में पहले ही दिल्ली, मॉस्को और बीजिंग आंधी तूफान की तरह मिलकर काम कर रहे हैं।

इब्राहीम रईसी ने कहा कि ईरान भू राजनीति, ऊर्जा , परिवहन, जनसंख्या, मानव संसाधन एवं सबसे महत्वपूर्ण अपने विशाल अध्यात्मिकता एवं संस्कृति सभ्यता के साथ रणनीतिक भूमिका में सुधार करने के लिए शंघाई सहयोग संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

उन्होंने कहा कि वन बेल्ट -वन रोड पहल, यूरेशियन आर्थिक संघ, उत्तर दक्षिण कॉरिडोर जैसे ढांचागत लिंक जैसी क्षेत्र की प्रमुख योजनाएं विकासशील देशों के सामान्य हितों को मजबूत करने एवं शांति को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। यह परियोजनाएं प्रतिस्पर्धी नहीं है लेकिन एक दूसरे के पूरक हैं।

रईसी ने कहा कि ईरान उत्तर दक्षिण गलियारे के माध्यम से दक्षिण एशिया के बीच मध्य एशिया, रूस और भारत को जोड़ने वाली कड़ी हो सकता है। उन्होंने कहा कि ईरान के चाबहार बंदरगाह में कई सदस्य पड़ोसी देशों के लिए एक विशेष तरीके से विनिमय केंद्र बनने की क्षमता है जो शंघाई संगठन के सदस्यों के प्रयासों से सभी के सहयोग का प्रतीक हो सकता है।

रईसी ने कहा कि दुनिया का अधिकांश सांस्कृतिक एवं अध्यात्मिक खजाना एशिया में स्थित है। एशिया मानव सभ्यता का उद्गम स्थल है। इसका धड़कता दिल चीन, भारत, ताजिकस्तान और ईरान में रहा है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता का संकट दुनिया के सभी संकटों की नींव है।

ईरान सांस्कृतिक क्षेत्रवाद के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने कहा कि एशिया में सबसे महान अब्राहमिक धर्म उत्पन्न हुए। विश्व संस्कृति एवं सभ्यता हमेशा सद्भाव, धैर्य ,विनम्रता और आपसी सम्मान तथा परोपकार से जुड़ी रही है।

 

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