दोहा पर नाकाम हमले से, इज़रायल की शक्ति का भ्रम टूट गया: हारेट्ज़

दोहा पर नाकाम हमले से, इज़रायल की शक्ति का भ्रम टूट गया: हारेट्ज़

इज़राली अख़बार हारेट्ज़ ने लिखा है कि दोहा में हमास नेताओं की हत्या की कोशिश में हुई नाकाम कार्रवाई ने साबित कर दिया कि, इज़रायल की यह छवि कि वह हमेशा हर हाल में बल प्रयोग कर सकता है, महज़ एक भ्रम थी।

फ़ार्स न्यूज़ एजेंसी की अंतरराष्ट्रीय डेस्क के अनुसार, इज़रायली लेखक आमोस हारेल ने बताया कि दोहा, क़तर की राजधानी में हमले के बावजूद हमास नेता ज़िंदा बच गए और क़तर की तरफ़ से इज़रायल के ख़िलाफ़ तत्काल क़दम उठाए गए। यह सारी घटना यह दिखाती है कि, इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू देश की शक्ति और उसकी रोकथाम (डिटरेंस) की क्षमता को बहाल करने में बुरी तरह नाकाम रहे हैं।

नेतन्याहू ने हर क़ीमत पर प्रधानमंत्री बने रहने का लक्ष्य चुना: इज़रायली लेखक
हारेल ने अपने लेख में जोड़ा कि नेतन्याहू शब्द “रणनीति” (Strategy) को पसंद नहीं करते और यहां तक कि सुरक्षा अधिकारियों से बातचीत में भी इसे नज़रअंदाज़ करते रहे हैं। उनके अनुसार, नेतन्याहू ने अपने राजनीतिक करियर में दो मुख्य लक्ष्य तय किए थे—ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकना और एक फ़िलिस्तीनी राज्य के गठन को रोकना। लेकिन 2020 में भ्रष्टाचार के मामलों में उनके ख़िलाफ़ मुक़दमे शुरू होने के बाद सब कुछ बदल गया और उन्होंने एक नया लक्ष्य चुना: हर क़ीमत पर प्रधानमंत्री बने रहना।

हारेल बताते हैं कि 7 अक्टूबर 2023 के हमले के बाद कई विदेशी मेहमान नेतन्याहू से मिले और नेतन्याहू को, एक डरा हुआ इंसान पाया, जिसे डर था कि सुरक्षा एजेंसियों की चेतावनियों के बावजूद हमले को न रोक पाने की वजह से लोग उसे पत्थर और डंडों से मार कर घर से बाहर निकाल देंगे।

उन्होंने लिखा कि नेतन्याहू जल्द ही इस हालत से बाहर निकले और सत्ता में बने रहने के लिए नए-नए तरीक़े अपनाए। यहां तक कि, ईरान के साथ युद्ध के तुरंत बाद, नेतन्याहू के एक क़रीबी ने कहा कि प्रधानमंत्री का मानना है कि अगली चुनावी प्रक्रिया तक 7 अक्टूबर की तबाही को लोग भूल जाएंगे।

लेख में याद दिलाया गया कि दोहा में हमास नेताओं पर असफल हमले के बाद नेतन्याहू के प्रवक्ता ने आलोचकों का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि, ये तो केवल “छोटे-मोटे विरोधी हैं, जो बड़ी तस्वीर देखने से इंकार कर रहे हैं: नेतन्याहू ने इज़रायल की शक्ति और उसकी रोकथाम क्षमता को फिर से ज़िंदा कर दिया है और हमारे सारे पड़ोसी डर के साथ देख रहे हैं।”

लेकिन हारेल के मुताबिक़ असलियत इसके उलट निकली। हालात वैसे नहीं रहे जैसा प्रधानमंत्री कार्यालय चाहता था। साफ़ हो गया कि इज़रायल की यह छवि कि वह बिना किसी सीमा के हर समय बल प्रयोग कर सकता है, हक़ीक़त में एक भ्रम से ज़्यादा कुछ नहीं। उन्होंने आगे कहा कि यह सब दिखाता है कि, ग़ाज़ा युद्ध को दूसरे सालगिरह तक नहीं खिंचना चाहिए था। इज़रायल के पास कई मौके थे कि वह ऐसे समझौते के ज़रिए युद्ध ख़त्म कर सकता था, जिससे उसके लक्ष्य पूरे हो जाते।

आमोस हारेल ने आख़िर में लिखा कि, नेतन्याहू ने हमेशा इसका उल्टा रास्ता चुना, क्योंकि युद्ध और अराजकता उनके हित में है और इसी से उनकी सरकार की स्थिरता बनी रहती है—वह सरकार जो चरमपंथी दक्षिणपंथी दलों के साथ किए गए “अपवित्र गठबंधन” पर खड़ी है।

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