विधवा को मंदिर में प्रवेश से रोकने पर मद्रास हाईकोर्ट नाराज
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक विधवा महिला के मंदिर में प्रवेश करने से मंदिर में अशुद्धता होने जैसी पुरानी मान्यताएं तमिलनाडु में आज भी कायम हैं। मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के इरोड में एक विधवा को मंदिर में प्रवेश करने से रोके जाने को लेकर यह टिप्पणी की।
न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने यह टिप्पणी थंगमणि द्वारा दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए 4 अगस्त के अपने आदेश में कही। महिला ने इरोड जिले के नाम्बियूर तालुक में स्थित पेरियाकरुपरायण मंदिर में प्रवेश करने के लिए उन्हें और उनके बेटे को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पुलिस को निर्देश देने की मांग की।
मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी विधवा के मंदिर में प्रवेश को रोकने जैसी हठधर्मिता कानून द्वारा शासित सभ्य समाज में नहीं हो सकती है। हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि एक महिला की अपनी एक पहचान होती है।
न्यायाधीश ने कहा कि कुछ समाज सुधारक ऐसी मूर्खतापूर्ण मान्यताओं को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कुछ गांवों में इसका चलन अभी भी जारी है। ये हठधर्मिता और नियम हैं जो मनुष्य द्वारा अपनी सुविधा के अनुरूप बनाए गए हैं और यह वास्तव में एक महिला को अपमानित करता है क्योंकि उसने अपने पति को खो दिया है। कानून के शासन वाले सभ्य समाज में यह सब कभी नहीं चल सकता।
न्यायाधीश ने कहा कि यदि किसी विधवा को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने के लिए किसी ने ऐसा प्रयास किया है, तो उनके खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए। अदालत ने सिरुवलूर पुलिस स्टेशन के पुलिस निरीक्षक को अयवु और मुरली को सूचित करने का निर्देश दिया कि वे थंगमणि और उनके बेटे को मंदिर में प्रवेश करने और उत्सव में भाग लेने से नहीं रोक सकते।
याचिकाकर्ता और उसका बेटा उत्सव में भाग लेना और पूजा करना चाहते थे। लेकिन दो व्यक्तियों अयवु और मुरली ने उसे यह कहते हुए धमकी दी थी कि उसे मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए क्योंकि वह एक विधवा है। इसके बाद महिला ने पुलिस सुरक्षा देने के लिए अधिकारियों को एक अभ्यावेदन दिया और जब कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो उसने हाईकोर्ट का रुख किया।