वरिष्ठ नेताओं पर लगाम कसने में खड़गे और राहुल की नाकामी कांग्रेस पर भारी पड़ी

वरिष्ठ नेताओं पर लगाम कसने में खड़गे और राहुल की नाकामी कांग्रेस पर भारी पड़ी

छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव नतीजों ने न सिर्फ हारे हुए उम्मीदवारों को बल्कि चुनाव विश्लेषक और राजनीतिक विशेषज्ञ माने जाने वाले लोगों को भी चौंका दिया है। नतीजों से पहले ज्यादातर विशेषज्ञ इस बात पर सहमत थे कि छत्तीसगढ़ पूरी तरह से कांग्रेस के कब्जे में है जबकि मध्य प्रदेश कांग्रेस भी स्पष्ट बहुमत से जीतेगी। हालांकि राजस्थान को लेकर घमासान मचा हुआ था, लेकिन जब नतीजे सामने आए तो देखा गया कि बीजेपी ने तीनों राज्यों में क्लीन स्वीप कर लिया है। अब इस विषय पर फिर से विश्लेषण का दौर शुरू हो गया है कि ऐसा क्यों हुआ? इससे कई बातें सामने आती हैं, जिनमें सबसे अहम ये है कि कांग्रेस तीनों राज्यों में अपने वरिष्ठ नेताओं पर लगाम कसने में बुरी तरह नाकाम रही।

अपने-अपने राज्यों में कमल नाथ, अशोक गहलोत और भूपेश बघेल की मनमानी और पार्टी के निर्णयों की अवहेलना करने की प्रवृत्ति ने न केवल उन्हें बल्कि उनकी पार्टी को भी नुकसान पहुंचाया। मध्य प्रदेश में कांग्रेस को पिछले चुनाव में 114 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार उसे 48 सीटों के नुकसान के साथ सिर्फ 66 सीटों पर संतोष करना पड़ा। यह कैसे हो गया?

कहा जा रहा है कि कमलनाथ ने पार्टी पर कुछ ऐसी पाबंदियां लगा दी थीं कि चाहे मल्लिकार्जुन खड़गे हों या राहुल गांधी, किसी की एक न चली। कमल नाथ पार्टी की दिशा से अलग अपना रास्ता चुनते थे। पार्टी जहां धर्मनिरपेक्षता की राह पर चलना चाहती थी, वहीं कमल नाथ ने हिंदुत्व की राह चुनी। पार्टी ‘इंडिया गठबंधन’ को महत्व देकर आगे बढ़ना चाहती थी, जबकि कमल नाथ ‘अकेले’ चलने में विश्वास रखते थे। जब पार्टी जाति आधारित आरक्षण को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाना चाहती थी तो कमलनाथ को सनातन में रास मिल रहा था। कमलनाथ को ये बात पसंद नहीं आई कि पार्टी आदिवासियों को अपने साथ लेना चाहती है।

कमलनाथ ने भी कई बार पार्टी के प्रति बगावती तेवर भी दिखाए और यह समझाने की कोशिश की कि, कम से कम मध्य प्रदेश में वह पार्टी की नहीं बल्कि पार्टी उनकी है। कांग्रेस पार्टी की सिफ़ारिश पर ‘इंडिया’ गठबंधन ने कुछ एंकरों के बहिष्कार का ऐलान किया था और उनके नामों की औपचारिक सूची भी जारी की थी, लेकिन इनमें से एक एंकर नविका कुमार को कमलनाथ ने इंटरव्यू दे दिया। ऐसा करके उन्होंने अपनी पार्टी को संदेश देने की कोशिश की कि उन्हें उनके रास्ते जाने दिया जाए, उन्हें रोकने की कोशिश करने से केवल अपमान ही होगा।

इसी तरह मध्य प्रदेश में चुनाव के दौरान तीन बार प्रभारी महासचिव बदले गए। पहली बार मध्य प्रदेश की कमान मुकल वासांक को दी गई, जिसके बाद जय प्रकाश अग्रवाल को लाया गया लेकिन उनके लिए कमल नाथ के साथ काम करना मुश्किल हो गया। उसके बाद प्रभारी के तौर पर रणदीप सिंह सुरजेवाला आए, लेकिन उनकी भी कमल नाथ के सामने नहीं चली। यह भी कहा जा रहा है कि वहां पर उनकी नियुक्ति कमल नाथ की मर्ज़ी से हुई हुई थी।

आज जब नतीजे आ रहे हैं तो ये सारी बातें सामने आ रही हैं। ऐसी ही स्थिति राजस्थान में भी थी। पार्टी के आंतरिक सर्वे के आधार पर कांग्रेस ने गहलोत कैबिनेट के कई मंत्रियों और मौजूदा विधानसभा सदस्यों के टिकट काटने की बात कही थी, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पार्टी की बात नहीं मानी। उन्होंने कहा कि जब सचिन पायलट ने पार्टी से बगावत कर अलग रास्ता चुना तो उस वक्त इन्हीं विधायकों ने साथ दिया था। उस कठिन समय में साथ देने वाले विधायकों और मंत्रियों का वह साथ नहीं छोड़ सकते। अब इन सब बातों का जो नतीजा सामने आया तो उसने कांग्रेस नेतृत्व को चौंका दिया।

भूपेश बघेल का मामला उनसे थोड़ा अलग है। वह पार्टी नेतृत्व को महत्व देते दिखे, खड़गे, राहुल और प्रियंका की ‘सराहना’ भी की, लेकिन राज्य पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए वह दूसरों से कन्नी काटते रहे, जिसका एक उदाहरण टीएस सिंह देव हैं। पिछले चुनाव के बाद उन्होंने कहा था कि उन्हें केवल आधे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री बनाया गया है, लेकिन आधे कार्यकाल के बाद भी बघेल ने सीट खाली नहीं की। उनके व्यवहार का परिणाम कांग्रेस को भुगतना पड़ा।

उम्मीद है कि अब जब चुनाव खत्म हो गए हैं, नतीजे सबके सामने हैं, तो कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश करेगा और कमल नाथ, भूपेश बघेल और अशोक गहलोत को का विकल्प तलाश करने की कोशिश करेगा। साथ ही साथ कांग्रेस आलाकमान को बिना डरे कठोर फैसले लेने होंगे। पार्टी के अंदर रहते हुए पार्टी से अलग रास्ता चुनने वाले और पार्टी की लाइन से हटकर बयान देने वालों को बाहर का रास्ता दिखाना होगा। अगर आलाकमान ने सख़्ती के साथ फैसले नहीं लिए तो 2024 लोकसभा चुनाव शायद कांग्रेस के लिए अंतिम चुनाव भी हो सकता है।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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