पुतिन की भारत यात्रा से पहले यूके, फ्रांस, जर्मनी के राजदूतों के पुतिन विरोधी लेख पर भारत नाराज़

पुतिन की भारत यात्रा से पहले यूके, फ्रांस, जर्मनी के राजदूतों के पुतिन विरोधी लेख पर भारत नाराज़

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा से कुछ ही दिन पहले ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के शीर्ष राजनयिकों द्वारा प्रकाशित एक संयुक्त लेख ने नई दिल्ली में तीखी प्रतिक्रिया पैदा कर दी है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में 1 दिसंबर 2025 को प्रकाशित इस लेख में रूस पर यूक्रेन युद्ध के लिए सीधी जवाबदेही डाली गई थी और राष्ट्रपति पुतिन पर मानव जीवन की परवाह न करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे। इस टिप्पणी को तीनों देशों के राजनयिकों लिंडी कैमरन, थिएरी माथौ और फिलिप एकरमैन ने मिलकर लिखा था, जिसका शीर्षक था: “दुनिया यूक्रेन युद्ध खत्म करना चाहती है, लेकिन रूस शांति के प्रति गंभीर नहीं दिखता।”

लेख में दावा किया गया कि, रूस ने ही यूक्रेन पर सैन्य कार्रवाई की शुरुआत की और अब भी हवाई हमलों में तेजी लाकर तनाव को बढ़ा रहा है। इसमें यह भी आरोप लगाया गया कि मॉस्को ने शांति वार्ताओं को आगे बढ़ने देने के बजाय लगातार देरी की रणनीति अपनाई है। राजदूतों ने रूस को साइबर कार्रवाइयों के जरिए वैश्विक अस्थिरता फैलाने वाला करार दिया और कहा कि पुतिन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षा सिर्फ यूक्रेन तक सीमित नहीं है।

नई दिल्ली ने इसे लेकर तीखी नाखुशी जताई
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के अनुसार, किसी तीसरे देश के द्विपक्षीय संबंधों पर सार्वजनिक रूप से राय देना कूटनीतिक प्रथाओं के विरुद्ध है और इसलिए यह लेख “अजीब व अस्वीकार्य” है। कई अनुभवी राजनयिकों ने भी इसे भारत के घरेलू मामलों में दखल के रूप में देखा है। पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने इसे “प्रचार की नीयत से की गई सार्वजनिक बयानबाज़ी” बताया और कहा कि यह भारत-रूस संबंधों की विश्वसनीयता पर अनावश्यक प्रश्न खड़ा करने की कोशिश है। उनका मानना है कि विदेश मंत्रालय को इस “कूटनीतिक असभ्यता” पर खुलकर असंतोष व्यक्त करना चाहिए।

विवाद इसलिए और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि पुतिन 4 दिसंबर से दो दिवसीय भारत दौरे पर आने वाले हैं। इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच शिखर वार्ता होगी, जिसमें व्यापार, रक्षा सहयोग, ऊर्जा और श्रम गतिशीलता से जुड़े समझौतों पर प्रगति की उम्मीद है। रूस में श्रमिकों की कमी को देखते हुए भारतीय कुशल व अर्ध-कुशल कर्मियों के लिए नए अवसरों वाले समझौते पर भी चर्चा की जा रही है। दोनों देशों के बीच व्यापार 2021 के 13 अरब डॉलर से बढ़कर 2024 में 68 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है और 2030 तक इसे 100 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य तय है।

भारत ने एक बार फिर कहा कि यूक्रेन संघर्ष का हल सैन्य तरीकों से नहीं निकल सकता और संवाद ही एकमात्र रास्ता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यूरोपीय राजदूतों का यह लेख अनावश्यक दबाव पैदा करने की कोशिश है, लेकिन भारत ने साफ कर दिया है कि वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता पर किसी बाहरी टिप्पणी को असर नहीं डालने देगा।

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