दिल्ली दंगा मामले में सरकार की परेशानी से अंजान हूं: जस्टिस मुरलीधर

दिल्ली दंगा मामले में सरकार की परेशानी से अंजान हूं: जस्टिस मुरलीधर

दिल्ली हाईकोर्ट के जज रहे जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली दंगे के पीड़ितों की मदद के लिए आधी रात को फ़ैसला सुनाया था। बाद में उन्होंने नफ़रती भाषण देने वालों पर एफ़आईआर दर्ज करने के आदेश दिए थे। और फिर आधी रात को ही क़ानून मंत्रालय से तबादला आदेश आ गया था। ऐसा क्यों हुआ था? वैसे तो इसका जवाब पूरे देश को 2020 में ही पता चल गया था, लेकिन पहली बार इस सवाल पर जस्टिस मुरलीधर का बयान आया है।

बता दें कि फरवरी 2020 में जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली दंगों में पुलिस की निष्क्रियता पर तत्काल याचिकाओं पर सुनवाई की थी। आधी रात को अपने आवास पर आपातकालीन सुनवाई के बाद जस्टिस मुरलीधर ने एक आदेश जारी कर पुलिस को दंगे में घायल हुए लोगों की सुरक्षा करने और अस्पताल में उनको सुरक्षित पहुँचाना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा था कि इसके लिए पुलिस अपने पूरे संसाधन लगा दे। उन्होंने पुलिस को आदेश पालन किए जाने की रिपोर्ट देने को भी कहा था।

जस्टिस मुरलीधर ने दिल्ली दंगे से जुड़े मामले में ही नफ़रती भाषण को लेकर भी उसी दिन सुनवाई की थी। उन्होंने एक आदेश में कहा कि दिल्ली पुलिस कथित रूप से भड़काऊ टिप्पणी करने के लिए कुछ भाजपा नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने पर 24 घंटे के भीतर निर्णय ले। जस्टिस मुरलीधर ने उस समय आश्चर्य व्यक्त किया जब दिल्ली पुलिस ने भाषणों के बारे में अनजान होने का दावा किया। भाषण की कुछ क्लिप कुछ सोशल मीडिया में वायरल हो गई थीं।

सुनवाई के दौरान जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह की बेंच ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा था कि वह पुलिस कमिश्नर को सलाह दें कि बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर, प्रवेश सिंह वर्मा और कपिल मिश्रा के कथित नफ़रत वाले बयान पर एफ़आईआर दर्ज की जाए। हाई कोर्ट ने तो यहाँ तक कह दिया था कि हम इस देश में एक और 1984 नहीं होने दे सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि कम से कम इस कोर्ट के रहते तो ऐसा नहीं हो सकता है। उसी रात केंद्र सरकार ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में जस्टिस मुरलीधर के स्थानांतरण की अधिसूचना जारी कर दी।

हाल ही में उड़ीसा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हुए जस्टिस एस मुरलीधर ने कहा है कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि दिल्ली दंगा मामले में उनके आदेश ने केंद्र सरकार को परेशान क्यों किया। बेंगलुरु में वह एक कार्यक्रम में शरीक हुए थे। इसी दौरान कार्यक्रम में शामिल एक शख्स ने उनसे सवाल पूछा था। इसने जस्टिस मुरलीधर से पूछा था कि क्या दिल्ली दंगे में देर रात के आपके फ़ैसले की वजह से आप सुप्रीम कोर्ट का जज नहीं बन पाए?

इस सवाल को जस्टिस मुरलीधर ने टाला नहीं। उन्होंने ईमानदारी से इसका जवाब दिया। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस मुरलीधर ने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि वह क्या है जिससे वे नाराज़ हुए… किसी अन्य न्यायाधीश को भी यही काम करना चाहिए था। दिल्ली उच्च न्यायालय में मेरे हर दूसरे सहयोगी ने इसी तरह प्रतिक्रिया दी होती।

मुझे नहीं लगता कि किसी और ने अलग तरीक़े से काम किया होता। तो, इससे सरकार किस बात पर नाराज़ हुई? मैं भी आपकी तरह ही अनजान हूँ, कि किस चीज से वे नाराज़ थे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि कई लोगों को लगता है कि यह करना सही काम था। बाद में मुझे बताया गया कि न्यायालय के हस्तक्षेप से कई लोगों की जान बचाई गई।’

जस्टिस मुरलीधर 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट की उस बेंच का हिस्सा रहे थे जिसने सबसे पहले धारा 377 को अपराध की श्रेणी से हटाया और एलजीबीटी समुदाय को अपनी सेक्सुअल पसंद की आज़ादी दी थी।

दिल्ली हाई कोर्ट में रहते ही उन्होंने भीमा कोरेगाँव मामले में एक अक्टूबर 2018 को सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को घर की नज़रबंदी से रिहा करने का निर्देश दिया था। तब आरबीआई बोर्ड के सदस्य और आरएसएस विचारधारा वाले एस गुरुमूर्ति ने ट्विटर पर जज पर पक्षपात करने का आरोप लगाते हुए निशाना साधा था। इसके बाद गुरुमूर्ति पर अवमानना का केस चला था और इसे तब बंद किया गया जब उन्होंने बिना शर्त माफ़ी माँगी थी और अपनी टिप्पणी वापस ले ली थी।

2019 में जस्टिस मुरलीधर के नेतृत्व वाली बेंच ने हाशिमपुरा नरसंहार के मामले में उत्तर प्रदेश के 16 पूर्व पुलिसकर्मियों और सिख विरोधी दंगे के मामले में कांग्रेस के सज्जन कुमार को जेल भेजा था।

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