विधानसभा चुनाव: बीजेपी चुनाव कैसे जीतती है… ?

अंग्रेजी की एक कहावत है By hook or By Crook… यदि कम शब्दों में समझना है तो इस कहावत से समझ लीजिए और यदि विस्तार से समझना चाहते हैं तो यह पोस्ट पढ़ लीजिए

बंगाल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी बड़े बड़े दावे कर रही है, कल अमित शाह ने बयान दिया है कि वह 200 से अधिक सीटे जीत सकते हैं वैसे क्या आप जानते हैं कि बीजेपी को पिछले 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव में कितनी सीट मिली है मात्र तीन…..

जी हाँ यह सच है ….और अब वो दावा कर रहे हैं कि हम कुल पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटो में से 200 जीत लेंगे

2016 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 291 सीट पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से 263 सीट पर उसके उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हो गई थी वह मात्र तीन सीटों पर जीत सकी….इस चुनाव में कांग्रेस ने 44 और सीपीएम ने 26 सीटें जीती थीं

लेकिन आज यदि आप देखेंगे तो मीडिया ने देश भर में यह प्रोजेक्शन कर दिया है कि मुकाबला सीधे ममता की तृणमूल और मोदी की बीजेपी के बीच है…दूसरे दल तो कही एग्जिस्ट ही नही कर रहे हैं….

मीडिया द्वारा किया गया यह प्रोजेक्शन एक पूरा बेस तैयार कर देता है कि बीजेपी की स्थिति चुनाव में बहुत मजबूत है मीडिया पूरे देश को कन्विंस कर लेता है कि बीजेपी चुनाव जीतने वाली है यह स्थिति राज्य के बाहर रह रहे राज्य के लोगो पर गहरा असर डालती है,……

लेकिन याद रखिए आज जो आपको दिखाया जा रहा है उसकी तैयारी बहुत पहले से शुरु हो जाती है मीडिया यह काम चुनाव के चार साल पहले से ही शुरू कर देता है वह बीजेपी को एक तरह से प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी की तरह सड़को पर संघर्ष करता हुआ बतलाता है…

और बीजेपी भी दरअसल चुनाव खत्म होते ही अगले चुनाव की तैयारी में जुट जाती है विधानसभा चुनाव खत्म होते ही बीजेपी सत्ता पक्ष और दूसरे विपक्षी दल के असन्तुष्ट नेताओ की तलाश करती है ओर उन्हें अपने दल में शामिल करती हैं

अगर आपको बीजेपी की मोडस ऑपरेंडी को समझना है ? आपको यह जानना है कि बंगाल में क्या क्या पोसिबिलिटीज बन सकती है तो त्रिपुरा को ठीक से समझना होगा

त्रिपुरा का 2018 का चुनाव एक ऐतिहासिक चुनाव था भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार वाम दल भाजपा के साथ राज्यव्यापी लड़ाई में सीधे टक्कर में थी। 2013 में जो चुनाव हुआ था उसमें वाम मोर्चा के 52.3% वोटों के हिस्से की तुलना में भाजपा को सिर्फ 1.5% वोट ही मिले थे।

त्रिपुरा में चुनाव जीतने के लिए भाजपा ने खुलेआम एक अलगाववादी आदिवासी संगठन के साथ गठबंधन कर लिया जिसका इतिहास हिंसक रहा था इतना ही नही भाजपा ने चुनाव से पहले तृणमूल के छह विधायकों सहित त्रिपुरा में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सभी बदनाम सदस्यों को पाटी में शामिल कर लिया

त्रिपुरा में कांग्रेस के संगठनात्मक तंत्र को पूरी तरह भाजपा ने खरीद लिया भाजपा द्वारा उतारे गए 60 में से 44 उम्मीदवार पुराने कांग्रेसी थे, जिन्हें अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में अच्छा समर्थन प्राप्त था. इस प्रकार कांग्रेस का 96% वोट शेयर भी भाजपा में चला गया

भाजपा दोनों दलों के कार्यकर्ताओं का पार्टी में स्वागत करने के लिए सार्वजनिक कार्यकर्मों का आयोजन किया जिसमें केंद्र से आए बड़े नेताओ ने भाग लिया…..इससे माहौल भी बना।जिसे मीडिया के जरिए भुनाया गया

किन समुदायों को कैसे अपनी तरफ खींचना है इसके लिए पार्टी डेटा एनिलिसिस पर निर्भर करती है 2017 के मणिपुर और त्रिपुरा चुनावों में शिवम शंकर सिंह ने बीजेपी के लिए काम किया था. सिंह ने डेटा की मदद से पूरी चुनावी रणनीति पर काम किया , उन्होंने विस्तार से बीजेपी की मोडस ऑपरेंडी का खुलासा किया है

उनके अनुसार सबसे पहले डेटा एनिलिसिस करने वाली टीम ने राज्य के बूथ स्तरीय वोटिंग डेटा की जांच करती है निर्वाचन आयोग के फार्म 20 से पता चलता है कि किसी बूथ में कैसी वोटिंग हुई. इससे समझा जा सकता है कि किसी पार्टी का कोर वोटर कौन है और शिफ्ट कर जाने वाले वोटर कौन हैं. यह टीम संसदीय और विधान सभा चुनावों का डेटा निर्वाचन आयोग से लेती है और उन्हें जोड़ कर ट्रेंड की पड़ताल करती है …….. इसी संदर्भ में कल एक मित्र ने सूचना दी है कि मद्रास उच्च न्यायालय ने दो दिन पहले कहा कि उन आरोपों की गंभीरता से जांच किए जाने की आवश्यकता है, जिसमें भाजपा की पुदुचेरी इकाई के पास मतदाताओं के आधार कार्ड का विवरण उपलब्ध होने की बात कही गई है.

खैर,…. त्रिपुरा में उन्होंने मतदाता सूची को डिजिटल रूप में परिवर्तित कर मोबाइल नंबर से जोड़ दिया ताकि सोशल मीडिया के जरिए संदेश पहुंचाया जा सके.

अब आगे का काम बीजेपी का आईटी सेल ने किया, स्थानीय नेताओ के जरिए बीजेपी ऐसे हिंदूओ में ऐसे समुदायों/ जातियों की पहचान की जो मुस्लिम समुदाय के कट्टर विरोधी हैं. उनके लिए आईटी सेल ने संदेश तैयार करवाए कि मुस्लिम आबादी हिंदुओं से अधिक हो जाएगी. लव जिहाद जैसे मैसेज सोशल मीडिया खासतौर पर सर्कुलेट किये गए
यह सच नहीं होते लेकिन पोस्ट ट्रूथ का ही जमाना हैं किसी को सच्चाई की परवाह नही होती ऐसे संदेशों से बीजेपी स्थानीय धार्मिक भावनाओं को भड़काती है. इसके साथ ही फेक न्यूज का जमकर प्रचार।किया जाता है जैसे सीरिया का विडियो भेज कर कहा जाता कि देखो मुजफ्फरनगर में क्या हो रहा है.

बीजेपी लेयर्स में काम करती है हिन्दूओ में भी बहुत से अलग अलग सम्प्रदाय है उनके लिए भी वह अलग रणनीति अपनाते हैं. जैसे त्रिपुरा में लगभग 18 गोरखनाथ मंदिर हैं. वहा चुनाव प्रचार में बीजेपी योगी आदित्यनाथ को उतार दिया ताकि उनसे जुड़े लोगों को अधिक प्रभावित की जा सके….

यानी मतदाताओं के लिए पूरी तरह से जाल बिछा दिया जाता है कि किस तरह से उसे घेरना है और चुनाव की जब फाइनल काउंट डाउन शुरू होती है तब इन सब को ट्रिगर किया जाता है चुनाव में जीत में EVM को एक खास तरीके से इस्तेमाल किया जाता है इसके बारे हम इस पोस्ट की अगली कड़ी में बात करेंगे….

गिरीश मालवीय की फेसबुक वॉल से

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Hot Topics

Related Articles