सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्तों में तनाव, जिद पर अड़े बिन सलमान

सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्तों में तनाव, जिद पर अड़े बिन सलमान सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्तो में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है ।

ट्रम्प की अमेरिकी सत्ता से रुखसती और बाइडन के सत्तासीन होते ही सऊदी अरब को लेकर बाइडन प्रशासन के रवैया में भारी बदलाव देखने को मिल रहा है ।

अब तेल उत्पादन को लेकर अमेरिका और सऊदी अरब में फिर से तनाव उत्पन्न हो गया है । कोरोना काल में तेल उत्पादन को लेकर प्रमुख तेल उत्पादक देशों ने जो नीतियां अपनाई हुई है उससे अमेरिका में संकट गहरा रहा है । अमेरिकी प्रशासन की बार बार की अपील के बाद भी सऊदी क्रॉउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने तेल आपूर्ति बढ़ाने से इनकार कर दिया है । वह सऊदी अरब के तेल उत्पादन को सीमित रखने की अपने फैसले पर अटल हैं।

तेल उत्पादक देशों की नीतियों के बाद अमेरिका ने थक हार कर मंगलवार को घोषणा की थी कि वह अपने रणनीतिक तेल भंडार से 5 करोड़ बैरल कच्चा तेल रिलीज करेगा ताकि अमेरिका में जारी इंधन संकट पर कंट्रोल पाया जा सके । अमेरिका के इस निर्णय से तेल बाजार को थोड़ी राहत मिलेगी और तेल आपूर्ति सुचारू रूप से जारी हो सकेगी।

याद रहे कि तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक ने लगभग डेढ़ साल पहले फैसला किया था कि कोरोनावायरस के कारण विश्व स्तर पर तेल की मांग में भारी कमी हुई है और तेल के दामों में भी भारी कटौती हुई है। विश्व स्तर पर तेल की गिरती कीमत और तेल की मांग में कमी के कारण ओपेक ने तेल उत्पादन घटाने का निर्णय लिया था। ओपेक के सदस्य देशों का प्रयास है कि तेल के दाम बढ़ाने के लिए बाजार को नियंत्रण में रखा जाए ।

कोरोना महामारी का कहर कम होने के बाद अमेरिका लगातार ओपेक से मांग करता रहा है कि वह उत्पादन बढ़ाए लेकिन अमेरिका की अपील की अनदेखी करते हुए तेल का उत्पादन बढ़ाने से साफ मना कर दिया है।ओपेक का कहना है कि वह धीरे-धीरे एक निश्चित मात्रा में तेल उत्पादन को बढ़ावा देंगे ।

अमेरिका में पिछले कुछ समय से लगातार कीमतों में इजाफा हो रहा है तथा मुद्रास्फीति पिछले 30 सालों के अपने उच्च स्तर की ओर बढ़ रही है। अमेरिका ने अपने यहां गैसोलीन की कीमतों में हो रही वृद्धि का जिम्मेदार सऊदी अरब और रूस को बताते हुए कहा था कि सऊदी अरब और रूस जैसे देश तेल का उत्पादन नहीं कर रहे हैं जिसकी वजह से हमें गैसोलीन की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है।
रियाज और मास्को की यह नीतियां बिल्कुल भी सही नहीं है।

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