चीन चाहता तो तबाही को रोका जा सकता था , बीजिंग और WHO की लापरवाही ने ले ली लाखों लोगों की जान

चीन के वुहान से शुरू होने वाले कोरोना वायरस ने अब तक दुनिया भर में लाखों लोगों की जान ले ली है।
करोड़ों जिंदगियां बेपटरी हो गई। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को लेकर एक हैरान करने वाला खुलासा हुआ है, जिसमें कहा गया है कि चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की लापरवाही चलते दुनिया भर में कोरोना वायरस फैला है।
एक स्वतंत्र पैनल (इंडिपेंडेंट पैनल फॉर पैन्डेमिक प्रिपेयर्डनेस एंड रिस्पॉन्स) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, अगर चीन चाहता तो कोरोना वायरस को महामारी बनने से रोका जा सकता था, लेकिन उसने समय रहते काबू नहीं किया। इतना ही नहीं, इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी जिम्मेदार ठहराया गया है। वैश्विक महामारी की जांच करने वाले इस स्वतंत्र समूह ने निष्कर्ष निकाला है कि जब चीन में कोरोना का पहला मामला सामने आया था, तब डब्ल्यूएचओ और बीजिंग तेजी से काम कर सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और उन दोनों की लापरवाही की वजह से दुनियाभर में कोरोना वायरस ने महामारी का रूप ले लिया।
सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों को जनवरी महीने में ही चीन में स्थानीय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा अधिक बलपूर्वक लागू किया जा सकता था। इस पैनल ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की भी आलोचना की है। पैनल ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने 22 जनवरी, 2020 तक अपनी आपातकालीन समिति को भी इस महामारी संकट की सूचना नहीं दी और न ही बैठक बुलाई। समिति नोवल कोरोना वायरस को सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के रूप में भी समय से पहले घोषित करने में असफल रही थी।
रिपोर्ट के मुताबिक, यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि समिति जनवरी के तीसरे सप्ताह तक क्यों नहीं मिली और न ही यह स्पष्ट है कि यह राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा पर सहमत क्यों नहीं हो पाई? जब से कोरोना वायरस का संकट पूरी दुनिया में गहराया तब से ही इसके जवाबी कार्रवाई में ढीलापन को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन की आलोचना हो रही है। महामारी को आपदा घोषित करने और फेस मास्क को अनिवार्य करने में देरी से उठाए गए कदमों के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की आजतक आलोचना होती है।
ट्रम्प प्रशासन ने कोरोना को लेकर चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति सख्त रुख अपनाया था। डोनाल्ड ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को चीन की कठपुतली तक कह दिया था और डब्ल्यूएचओ को दी जाने वाली आर्थिक मदद भी बंद कर दी थी।

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