तेल अवीव द्वारा क़तर की छवि और स्थिति को नुकसान पहुँचाने की विशेष योजना

तेल अवीव द्वारा क़तर की छवि और स्थिति को नुकसान पहुँचाने की विशेष योजना

हिब्रू अख़बार हारेत्ज़ ने खुलासा किया है कि, इज़रायली विदेश मंत्रालय ने ग़ाज़ा युद्ध की शुरुआत में एक “योजना तैयार की थी, जिसका उद्देश्य था, क़तर की छवि को ख़राब करना और उसकी स्थिति को कमजोर करना”। इस योजना को उस समय के विदेश मंत्री एली कोहेन की मंज़ूरी भी मिल गई थी, लेकिन मोसाद प्रमुख डेविड बारनिया ने इसका विरोध किया।

रिपोर्ट के अनुसार, मोसाद प्रमुख ने इस योजना को लेकर चेतावनी दी थी कि यह क़तर को नुकसान पहुँचा सकती है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि क़तर, “बंधकों की रिहाई के लिए एक संभावित मध्यस्थ” के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके बाद इस योजना को निलंबित कर दिया गया।

हारेत्ज़ ने एक गुप्त सूत्र के हवाले से लिखा, जिसने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि इस योजना पर काम करने के लिए इज़रायली विदेश मंत्रालय ने शिन बेट (आंतरिक सुरक्षा एजेंसी) और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के पूर्व अधिकारी रोनिन लेवी की मदद ली थी। इस योजना के तहत, सोशल मीडिया, मीडिया चैनलों और विभिन्न राजदूतों के माध्यम से क़तर की नकारात्मक छवि पेश करने की रणनीति बनाई गई थी।

रिपोर्ट के अनुसार, कतर की वैधता को अंतरराष्ट्रीय मीडिया में कमजोर करने के लिए उसके “आतंकवाद के समर्थन” से जुड़ी जानकारियों को फैलाने की योजना थी। इसके साथ ही, क़तर और मिस्र के बीच दरार पैदा करने की नीति पर भी विचार किया गया था, क्योंकि दोनों देश इज़रायल-हमास युद्ध-बंदियों के आदान-प्रदान के समझौते में मध्यस्थता करने की कोशिश कर रहे थे।

गुप्त सूत्र के अनुसार, इज़रायली विदेश मंत्रालय की इस योजना में क़तर के मीडिया नेटवर्क ‘अल-जज़ीरा’ की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव भी शामिल था। इसका उद्देश्य इस नेटवर्क के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव को सीमित करना था। 5 मई 2024 को इज़रायली कैबिनेट ने प्रधानमंत्री नेतन्याहू और संचार मंत्री शलोमो करही के उस प्रस्ताव को मंज़ूरी दी, जिसमें अल-जज़ीरा के कार्यालयों को बंद करने और उसकी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई थी। इसके बाद इस प्रतिबंध को कई बार बढ़ाया गया।

इस योजना से जुड़े लोगों ने हारेत्ज़ को बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय और मोसाद के भीतर इस पर उठी चिंताओं के कारण वे पहले ही अंदाज़ा लगा रहे थे कि यह योजना शायद लागू नहीं की जाएगी।

अब तक दोहा की ओर से इस रिपोर्ट पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालाँकि, यह एक सच्चाई है कि कई बार इज़रायल और हमास के बीच युद्ध-बंदियों के आदान-प्रदान के समझौते में मध्यस्थता करने के बावजूद, नेतन्याहू अब भी क़तर के प्रति नकारात्मक रवैया रखते हैं। वह क़तर पर यह आरोप लगाते हैं कि उसने हमास पर इज़रायली कैदियों की रिहाई के लिए पर्याप्त दबाव नहीं डाला। साथ ही, दोहा से ग़ाज़ा को दी जाने वाली मानवीय सहायता को इस तरह पेश किया जाता है मानो यह हमास को दी जा रही वित्तीय मदद हो।

फरवरी 2024 में जब नेतन्याहू ने क़तर की मध्यस्थता पर सवाल उठाए, तो क़तर के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माजिद अल-अंसारी ने कहा कि नेतन्याहू अपने राजनीतिक संकटों से भाग रहे हैं और “ऐसी बहसों में उलझ रहे हैं, जिन पर हम ध्यान नहीं देंगे”। इसके बावजूद, क़तर सरकार ने नेतन्याहू से आग्रह किया कि वह हमास के साथ अप्रत्यक्ष वार्ता पर ध्यान केंद्रित करें, क्योंकि इससे क्षेत्रीय सुरक्षा को मज़बूती मिलेगी।

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