वर्तमान हालात में अमेरिका से बातचीत नुक़सानदेह है: आयतुल्लाह ख़ामेनेई
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा: 12-दिवसीय ईरान इज़रायल जंग में ईरानी क़ौम की एकता और मज़बूत एकजुटता ने दुश्मन को मायूस कर दिया। दुश्मन शुरूआती दिनों में ही समझ गया था कि, वो अपने मंसूबे में कामयाब नहीं होगा।
तस्नीम न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक़, आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने मंगलवार की रात टीवी पर ईरानी जनता से सीधी बात करते हुए कहा कि, ईरानी जनता की लगातार एकजुटता दुश्मन के सर पर लोहे की चोट साबित हुई। उन्होंने समझाया कि क्यों ईरान ने दबाव और धमकियों के बावजूद लाभकारी यूरेनियम संवर्धन (Enrichment) से पीछे हटने से इनकार किया।
परमाणु समझौते पर उन्होंने कहा: ऐसी बातचीत, जिसमें अमरीका पहले से ही नतीजे लिखकर थमाए, बेकार और नुकसानदेह है, क्योंकि ये सिर्फ़ ज़्यादती करने वाले को अगले फ़र्ज़ी मक़सद थोपने का लोभ देती है और किसी भी नुक़सान को टालती नहीं। ऐसी बातचीत कोई भी ग़ैरतमंद क़ौम और कोई भी समझदार सियासतदान क़बूल नहीं कर सकता।
उन्होंने आगे कहा कि, बीते दो महीनों में ईरानी छात्रों ने 40 मेडल, जिनमें 11 सोने के पदक शामिल हैं, दुनिया भर की प्रतियोगिताओं में हासिल किए। युद्ध और चुनौतियों के बावजूद हमारे बच्चे खेल और विज्ञान में दुनिया में पहले नंबर पर रहे। इसी तरह कुश्ती, वॉलीबॉल और अन्य खेलों में भी उन्होंने चमक बिखेरी।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने शहीद सैय्यद हसन नसरुल्लाह की बरसी पर उन्हें इस्लाम और लेबनान के लिए एक बड़ी पूंजी बताया और कहा कि उनका छोड़ा हुआ खज़ाना, जैसे हिज़्बुल्लाह, अब भी बाक़ी है और चलता रहेगा।
उन्होंने 12-दिनी जंग के सभी शहीदों, कमांडरों और वैज्ञानिकों को श्रृद्धांजलि पेश करते हुए तीन अहम नुक्तों पर अपनी बात केंद्रित की:
1- ईरानी क़ौम की एकता और उसका असर
2- यूरेनियम संवर्धन की अहमियत
3- अमरीकी धमकियों के सामने ईरान का अटल और समझदार स्टैंड
उन्होंने कहा: दुश्मन ने कमांडरों की शहादत और अशांति भड़काने की कोशिश की ताकि ईरान में बग़ावत पैदा करे और इस्लामी निज़ाम को गिरा सके। लेकिन ईरान की जनता ने उसकी चाहत पूरी न होने दी, बल्कि लाखों की भीड़ सड़कों पर उतरी – मगर इस्लाम और निज़ाम की हिमायत में। यही वजह थी कि दुश्मन अपने ही कारिंदों पर बरस पड़ा।
सुप्रीम लीडर ने तर्क दिया कि, एकता अब भी बाक़ी है और क़ौम का हर तबक़ा, चाहे किसी भी नस्ल या क़ौम से हो, ईरानी होने पर फ़ख़्र करता है। हमारे सियासी मतभेद हैं, लेकिन जब बात दुश्मन की ज़्यादती की आती है, तो सब एक लोहे के मुट्ठी बन जाते हैं।
उन्होंने याद दिलाया कि, जंग के दौरान सड़कों पर उमड़ा हुजूम और उनके नारों ने दिखा दिया कि, ईरान अब भी वही है और वही रहेगा।
यूरेनियम संवर्धन के बारे में उन्होंने कहा: ये सिर्फ़ बिजली के लिए नहीं, बल्कि खेती, उद्योग, पर्यावरण, इलाज और रिसर्च समेत ज़िंदगी के तमाम हिस्सों में काम आता है। इसी वजह से कई तरक़्क़ीयाफ़्ता मुल्क इस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन अमेरिका चाहता है कि ईरान इसे पूरी तरह छोड़ दे।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा: हमने 60% तक संवर्धन किया है, जबकि हमारा मक़सद हथियार बनाना नहीं है। ईरान उन दस मुल्कों में है जो इस टेक्नॉलजी में कामयाब हैं। हमारे पास हज़ारों प्रशिक्षित नौजवान और सैकड़ों माहिर मौजूद हैं, जिनको बमबारी या धमकियों से मिटाया नहीं जा सकता।
ईरानी क़ौम किसी भी दबाव के आगे झुकने वाली नहीं: सुप्रीम लीडर
उन्होंने साफ़ कहा: ईरानी क़ौम किसी भी हाल में दबाव के आगे झुकने वाली नहीं। अमेरिकी कभी कहते थे संवर्धन कम करो और प्रोडक्ट बाहर भेजो, अब कहते हैं बिल्कुल मत करो। इसका मतलब ये है कि, हमारी मेहनत और पूंजी को बर्बाद कर दो। मगर हमारी क़ौम इस बात को कभी क़बूल नहीं करेगी।
उन्होंने कहा: अमरीका बातचीत में सिर्फ़ डिक्टेशन देना चाहता है। पहले कहता है – संवर्धन बंद करो, अब कहता है – मिसाइलें भी मत रखो। यानी अगर हमला हो जाए तो हम पलटकर जवाब भी न दे सकें।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने समझाया कि, ऐसी बातचीत क़ौम की इज़्ज़त को मिटा देती है और यह कमजोरी की निशानी है। अगर आज हम झुक जाएं तो कल मिसाइल या किसी मुल्क से रिश्तों के नाम पर नई शर्तें थोपेंगे।
उन्होंने याद दिलाया: बरजाम (न्यूक्लियर डील) में भी अमरीका ने वादाख़िलाफ़ी की। दस साल की शर्त मान ली गई लेकिन अंत में न प्रतिबंध हटे और न ही मामला सामान्य हुआ। ऊपर से अमरीका ने बाहर निकलकर समझौता फाड़ दिया और हमारे शहीद क़ासिम सुलेमानी जैसे लीडरों को शहीद किया। इसलिए, अमरीका के साथ बातचीत न सिर्फ़ बेनतीजा है बल्कि नुक़सानदेह भी है।
हाँ, इससे सिर्फ़ अमरीकी राष्ट्रपति को दिखावे का फ़ायदा मिलेगा कि, उनकी धमकियाँ असरदार हैं। लेकिन ईरान के लिए ये ज़हर है।
अंत में सुप्रीम लीडर ने कहा: मुल्क को मज़बूत बनाना ही असली इलाज है – चाहे फ़ौजी ताक़त हो, इल्मी क़ाबिलियत हो या सरकारी ढाँचे। जब मुल्क मज़बूत होगा तो दुश्मन धमकी देने की भी हिम्मत नहीं करेगा। उन्होंने अल्लाह भरोसा रखने को ज़रूरी बताया और कहा कि ईरानी जनता हिम्मत के साथ काम करें, इंशाअल्लाह सब कुछ कामयाब होगा।


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