ग़ाज़ा फाउंडेशन: इंसानियत के इतिहास का एक ‘काला अध्याय’ समाप्त
ग़ाज़ा… एक ऐसा नाम जो हर ज़मीर वाले इंसान के दिल में दर्द और ग़ुस्सा दोनों जगाता है। कभी यह ज़मीन सब्र, उम्मीद और प्रतिरोध की मिसाल था, मगर पिछले कुछ सालों में इसे इज़रायल ने भूख, खौफ़ और ताबाही की प्रयोगशाला बना दिया। और इसी प्रयोग का सबसे बड़ा औज़ार था — “ग़ाज़ा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन”। नाम में “ह्यूमैनिटेरियन”, मगर असल में यह इज़रायली क़ब्ज़े की एक ठंडी और सुनियोजित चाल थी।
इंसानियत की क़तारों में मौत
ग़ाज़ा के दक्षिणी हिस्से में जब लोग भूख से तड़प रहे थे, तो वहीँ फाउंडेशन के गेट पर लंबी कतारें लगती थीं। माएँ अपने बच्चों को गोद में लिए, बूढ़े लाठी टेकते हुए — सिर्फ़ एक पैकेट आटे या एक बोतल पानी के लिए खड़े रहते। लेकिन इन कतारों के आख़िर में क्या था?
कभी गोली की आवाज़, कभी धमाके, कभी अपमान।
कई मौकों पर इज़रायली सैनिकों ने “भीड़ को काबू में रखने” के नाम पर फायरिंग की, जिसमें सैकड़ों लोग मारे गए। उन्हीं लाशों के ऊपर से गुज़रकर फाउंडेशन के ट्रक “मदद” बाँटते रहे। यानी जो जिंदा बच गया, वही “लाभार्थी” था।
इज़रायल की प्रोपेगंडा मशीन
इज़रायली मीडिया ने फाउंडेशन को “मानवीय उपलब्धि” बताया। कहा गया कि “हम ग़ाज़ा के लोगों तक मदद पहुँचा रहे हैं” लेकिन असल में वही इज़रायली सेना उनके रास्ते रोक रही थी, वही घरों को मलबा बना रही थी, वही बिजली और पानी काट रही थी।
एक रिपोर्ट के मुताबिक,
90% सहायता केवल उन्हीं इलाकों में जाती थी जहाँ इज़रायली सेना को रणनीतिक लाभ चाहिए होता था। बाक़ी ग़ाज़ा अंधेरे और भूख में डूबा रहता था। यह सब सिर्फ राहत का ड्रामा नहीं था — यह कॉलोनियल कंट्रोल स्ट्रैटेजी थी।
इज़रायल ने दुनिया को दिखाया कि वह “मदद कर रहा है”, ताकि अपने अपराधों को ढँक सके।उसे मालूम था कि जब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सवाल उठेंगे, तो वह कह सकेगा:
“देखो, हम ह्यूमैनिटेरियन काम कर रहे हैं।”
वही केंद्र जो कभी ग़ाज़ा के भूखे-प्यासे लोगों के लिए उम्मीद की किरण बने थे, जल्द ही डर और अपमान के अड्डों में बदल गए। उन्हीं केंद्रों के आसपास गोलियों की आवाज़, चीख़ें और लाशों की क़तारें आज भी लोगों की यादों में ताज़ा हैं।
लंबे खूनी घेराव, भूख और तबाही के बाद आखिरकार संगठन ‘ग़ाज़ा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन’ (Gaza Humanitarian Foundation)का अस्तित्व ख़त्म हो गया है। गुरुवार, 9 अक्टूबर की शाम, इज़रायली सेना की वापसी के पहले चरण के दौरान दक्षिणी ग़ाज़ा में इस फाउंडेशन के सभी राहत केंद्र पूरी तरह ध्वस्त कर दिए गए।
विदेशी मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग़ाज़ा फाउंडेशन नवंबर 2023 में सामने आई थी। बाहर से यह एक राहत संगठन दिखता था, लेकिन वास्तव में यह इज़रायली क़ब्ज़े की योजना का हिस्सा था — ऐसा सिस्टम जो “मानवीय मदद” के नाम पर ग़ाज़ा के लोगों को सैन्य नियंत्रण में रखने के लिए बनाया गया था।
इसके सारे केंद्र इज़रायली सैन्य निगरानी में स्थापित किए गए थे। सहायता पाने के लिए आने वाले नागरिकों को कठोर तलाशी, रुकावटों और हिंसा का सामना करना पड़ता था। कई मौकों पर ये केंद्र फायरिंग की घटनाओं का केंद्र बन गए, जिनमें दर्जनों फ़िलिस्तीनी नागरिक मारे गए और सैकड़ों घायल हुए।
अंतरराष्ट्रीय संगठनों की चेतावनियों और जनदबाव के बाद, हाल की युद्ध-विराम संधि में यह तय हुआ कि अब ग़ाज़ा में मानवीय सहायता का वितरण संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों, विशेषकर UNRWA, के हवाले किया जाएगा। इसके साथ ही ग़ाज़ा फाउंडेशन का कोई भी रोल समाप्त हो गया। इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने बातचीत के दौरान फाउंडेशन को बनाए रखने पर ज़ोर दिया था, लेकिन फ़िलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल और मध्यस्थ देशों ने इस मांग को सख्ती से ख़ारिज कर दिया।
इज़रायली नाकेबंदी की वजह से ग़ाज़ा में खाद्य सामग्री, दवाइयों और ईंधन की गंभीर कमी हो गई थी। संयुक्त राष्ट्र केंद्रों पर हमलों और राहत काफिलों की तबाही के बाद इज़रायल ने दावा किया कि, उसकी स्थापित फाउंडेशन के ज़रिए मदद बाँटी जा रही है, लेकिन असलियत यह थी कि सहायता सिर्फ कुछ सीमित इलाकों तक पहुँचती थी, जबकि लाखों लोग भूख से मर रहे थे। फाउंडेशन केंद्रों के आस-पास तैनात सशस्त्र गार्डों की गोलीबारी में सैकड़ों नागरिक, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, शहीद हुए।
अगस्त 2025 में संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने आधिकारिक रूप से घोषणा की थी कि, ग़ाज़ा में अकाल जैसी स्थिति पैदा हो चुकी है। ग़ाज़ा फाउंडेशन के कई अधिकारियों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जांच शुरू हो चुकी है। उन पर आरोप है कि उन्होंने राहत प्रणाली को राजनीतिक और सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया। कई देशों ने इन अधिकारियों पर प्रतिबंध की मांग की है, जबकि कुछ के खिलाफ भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर मामले विचाराधीन हैं।
अब यह संगठन व्यावहारिक रूप से समाप्त हो चुका है। इज़रायली सेना की वापसी के साथ ही इसके सारे केंद्र मिटा दिए गए हैं, और अब इसका अस्तित्व सिर्फ दर्दनाक यादों तक सीमित रह गया है।
अंतिम सच्चाई
ग़ाज़ा फाउंडेशन का अंत दरअसल एक संगठन का नहीं, बल्कि उस पाखंडी इंसानियत का अंत है जिसे इज़रायल ने दुनिया के सामने बेचने की कोशिश की। यह घटना साबित करती है कि जब “राहत” को हथियार बना दिया जाए,
तो इंसानियत का हर सिद्धांत मर जाता है।
इज़रायल ने जो किया, वो सिर्फ़ एक युद्ध नहीं था —
वो इंसानियत की बुनियादों पर हमला था।
और जब किसी कौम से इंसानियत छीन ली जाती है,
तो उसके पास सिर्फ़ इज़्ज़त से जीने या इज़्ज़त से मरने का रास्ता बचता है।
ग़ाज़ा ने दूसरा रास्ता चुना — और यही उसकी असली जीत है।
“ग़ाज़ा फाउंडेशन मिट गया —
मगर उसकी राख से उठेगी वो कहानी,
जो आने वाली नस्लों को बताएगी कि इंसानियत के नाम पर कैसे साज़िश की जाती है।”


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