अफगानिस्तान की कमान, बुद्ध की प्रतिमा उड़ाने वाले के हाथ अफगानिस्तान के बामियान में महात्मा बुद्ध की सबसे ऊंची मूर्तियां स्थापित थी।
अफगानिस्तान की कमान संभालने वाला मुल्ला हसन आखुंदज़ादह 2001 में तालिबान सरकार में उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री था।
संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में शामिल मुल्ला हसन आखुंदज़ादह ने सारी सीमाओं को लांघते हुए बामियान में महात्मा बुद्ध की मूर्तियों को नष्ट करने का आदेश दे दिया। तालिबानी लड़ाकों ने बुद्ध की विशाल मूर्तियों को तोपों के गोलों से उड़ा दिया।
अब जब 20 साल बाद पाकिस्तान की सहायता से तालिबान ने आतंक के बल पर अफगानिस्तान पर कब्जा करते हुए अपनी अंतरिम सरकार का ऐलान किया है तो उसी मुल्ला मोहम्मद हसन आखुंदज़ादह को प्रधानमंत्री बनाया गया है।
मुल्ला हसन तालिबान के हर बड़े फैसले लेने वाली क्वेटा शूरा का प्रमुख है। वह तालिबान के संस्थापक मुल्लाह उमर का राजनीतिक सलाहकार भी रह चुका है। मुल्लाह हसन आखुंदज़ादह के बारे में बहुत सी ऐसी बातें हैं जिससे अभी दुनिया अनजान है।
मुल्ला हसन ने कभी अखबार नहीं पढ़ा है। तालिबान की पहली सरकार में विदेश मंत्री रहते हुए मुल्ला हसन ने खुद अपने एक इंटरव्यू में कहा भी था कि मैंने अपने पूरे जीवन में कभी भी अखबार की एक खबर भी नहीं पढ़ी। मैंने अखबार पढ़ने पर अपना समय बर्बाद करने के बजाए कुरान पढ़ा।
बात सिर्फ अखबार पढ़ने की नहीं मुल्ला हसन अगर किसी अखबार को जमीन पर पड़ा देख लेता था तो वह बेहद खफा होता था। कहा जाता है एक बार तो उसने मुल्ला उमर से बात करके अखबारों पर बैन लगाने की इच्छा जताई थी।
मुल्ला हसन आखुंदज़ादह का तर्क यह था कि अख़बार में शब्द छपे होते हैं और उसको जमीन पर गिराना एक तरह से क़ुरान का अपमान है क्योंकि क़ुरान में भी शब्द छपे हुए हैं।
मुल्ला हसन ने अखबारों को प्रतिबंधित करने का तर्क देते हुए कहा था क्योंकि अधिकतर अफगान लोग अशिक्षित हैं। ऐसे में उन्हें अखबार की आवश्यकता नहीं है और वॉयस ऑफ शरिया रेडियो उनके लिए काफी है।
मुल्ला हसन सुर्खियों और मीडिया की लाइम लाइट से दूर रहना चाहता है। वह लो प्रोफाइल रहता है तथा पिछले 30 साल से तालिबान प्रमुख हैबतुल्लाह आखुंद का क़रीबी है उसे हैबतुल्लाह से वफादारी के इनाम में प्रधानमंत्री पद मिला है।
कहा जा रहा है कि हैबतुल्लाह को ईरान के सिस्टम की तरह ही अफगानिस्तान में सुप्रीम लीडर बनाया जा सकता है। मुल्ला हसन के पक्ष में जो एक और बात गई है वह है उसका पाकिस्तान का करीबी होना।
आईएसआयी प्रमुख ने मुल्ला हसन को प्रधानमंत्री पद दिलाने के लिए पूरी ताकत झाँकते हुए उनके प्रतिद्वंदी मुल्ला बरादर को किनारे लगा दिया।
मुल्ला हसन भले ही अफगानिस्तान का प्रधानमंत्री बन गया हो लेकिन अमेरिकी खुफिया एजेंसी की नजर में वह बेकार है। अमेरिकी खुफिया दस्तावेजों के आधार पर वह तालिबान के सबसे अप्रभावी और अयोग्य नेताओं में से एक है। इस रिपोर्ट के अनुसार मुल्ला का मूड लगातार बदलता रहता है उसके साथ काम करना आसान नहीं होगा।