तालिबान ने अफगान मानवाधिकार संस्था को किया बंद
तालिबान अधिकारियों ने मंगलवार को कहा कि उन्होंने अफगानिस्तान के स्वतंत्र मानवाधिकार आयोग को भंग कर दिया है क्योंकि इसे आवश्यक नहीं माना गया था।
तालिबान ने पिछले अगस्त में सत्ता पर कब्जा कर लिया था तब से उन्होंने चुनाव आयोग और महिला मामलों के मंत्रालय सहित अफगानों की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले कई निकायों को बंद कर दिया है। सरकार के उप प्रवक्ता इनामुल्ला समांगानी ने एएफपी को बताया कि हमारे पास मानवाधिकारों से संबंधित गतिविधियों को अंजाम देने के लिए कुछ अन्य संगठन हैं जो संगठन न्यायपालिका से जुड़े हैं।
अगस्त 2021 में देश में सत्ता हथियाने के बाद तालिबान ने अफगान लोगों के अधिकारों की रक्षा करने वाले कई संस्थानों को बंद कर दिया है। मानवाधिकार संस्था को बंद कर दिया जाना भी इसी सिलसिले का हिस्सा है। मानवाधिकार संस्था का काम तब से रुका हुआ था जब से पिछले साल तालिबान ने देश में सत्ता हासिल की और आयोग के सर्वोच्च अधिकारी देश छोड़ कर चले गए। आयोग के काम में देश में दो दशकों तक चले युद्ध में गई जानों का रिकॉर्ड रखना भी शामिल था।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं पर लगाए गए सबसे कठोर प्रतिबंधों में से एक है। कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन, अमेरिका के विदेश मंत्रियों के साझा बयान में कहा गया कि अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा महिलाओं व लड़कियों द्वारा लगातार बढ़ाई जा रही पाबंदियों का हम कड़ा विरोध करते हैं।
अफगानिस्तान इस समय लगभग पूरी तरह से विदेशी मदद पर निर्भर है। तालिबान करीब 50 करोड़ डॉलर के वित्तीय घाटे का सामना कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच में एसोसिएट विमेंस राइट्स डायरेक्टर हीथर बार ने कहा कि इन संस्थानों के बंद होने की वजह से अफगानिस्तान के हालात बिगड़ रहे हैं।
मानवाधिकार संस्था के अलावा जिन विभागों पर तालिबान सरकार ने ताला लटकाया है उनमें राष्ट्रीय पुनर्गठन उच्च परिषद और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद भी शामिल हैं। समांगनी का कहना है कि अगर भविष्य में उन्हें इन विभागों की जरूरत पड़ती है तो इन्हें फिर से सक्रिय किया जा सकता है।