तालिबान की आड़ में पाकिस्तान का खेल, कई देश चिंतित अफगानिस्तान में तालिबान सरकार में पाकिस्तान की मर्ज़ी के अनुसार तालिबान नेताओं को जगह दी गई है।
तालिबान की आड़ में पाकिस्तान के खेल ने कई देशों को गहरी चिंता में डाल दिया है। भारत समेत विश्व जगत से हर तरह के समझौते एवं शांति को लेकर आगे बढ़ने वाले तालिबानी नेताओं को एक-एक कर सरकार से किनारे पर लगा दिया गया है।
भारत से हर तरीके की बात करने का समर्थन करने वाले तालिबानी नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजेई हो या मुल्ला अब्दुल गनी बरादर सबको पाकिस्तान की शह पर एक किनारे लगा दिया गया है और उन्हें पहले से तय पद नहीं दिया गया है।
पिछले कुछ सालों से ही अफ़ग़ानिस्तान में तख्तापलट की आशंका के बीच कतर में स्थित तालिबान के मुख्यालय में दुनिया भर के तमाम ताकतवर देश तालिबान के साथ शांति वार्ता कर रहे थे। उद्देश्य सिर्फ यही था अफ़ग़ानिस्तान में नई सरकार के गठन के साथ तालिबान कोई जुल्म और ज़्यादती नहीं करेंगे।
तालिबान के कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ मिलकर रूस, ईरान और अमेरिका जैसे देशों के जिम्मेदार अधिकारियों ने इस बात पर सहमति भी बना ली थी कि अफगानिस्तान की जमीन को आतंकवाद और आतंकी देशों की पनाहगाह के तौर पर इस्तेमाल होने नहीं दिया जाएगा।
दुनिया भर के देशों के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता पर पाकिस्तान ने अपनी चतुराई से खेल खेलते हुए पानी फेर दिया है। तालिबान अपनी पुरानी राह पर चल पड़ा है। यही कारण है कि रूस , अमेरिका और ब्रिटेन की सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियां सतर्क हो गई हैं।
रूस और अमेरिका की खुफिया एजेंसी के प्रमुख के साथ-साथ ब्रिटिश खुफिया एजेंसी के प्रमुख भारत की यात्रा कर चुके हैं। भारत में तालिबान और पाकिस्तान के गठजोड़ को उजागर कर दिया है। पाकिस्तान की शह पर तालिबान के उन नेताओं को भी सरकार में प्रभावी भूमिका नहीं मिली है जो दुनिया से रिश्ते बनाकर चलने की कोशिशों में लगे हुए थे।
अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर और ट्रम्प और बाइडन कार्यकाल तक तालिबान के साथ हुई वार्ता में तय हुआ था कि तालिबान अफ़गानिस्तान पर शासन करते हैं तो न मानव अधिकारों का उल्लंघन होगा और ना ही अफगानिस्तान को आतंकवादियों की शरण स्थली दिया जाएगा।
अफगानिस्तान में तालिबान के शासन पर पाकिस्तान के प्रभाव की आशंका तो थी लेकिन पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई चीफ की काबुल यात्रा ने अधिकतर देशों को चिंता में डाल दिया है।
विशेषकर अमेरिका , रूस और ब्रिटेन इस बात को लेकर चिंतित हैं कि पाकिस्तान ने सीधे तौर पर तालिबानी सत्ता में दखल देना शुरू कर दिया है यह ना सिर्फ तालिबान को खून खराबा करने के लिए उभारेगा बल्कि अफगानिस्तान में एक बार फिर आतंकवादियों की नर्सरी को बढ़ाने में सहायक होगा।
अफगानिस्तान में पाकिस्तान के खेल को लेकर पश्चिमी जगत में इतनी चिंता है कि आईएसआई चीफ की काबुल यात्रा के फौरन बाद ब्रिटेन ,अमेरिका, रूस और फ्रांस की सुरक्षा एवं खुफिया एजेंसियों के प्रमुख भारत का दौरा कर चुके हैं।
मतलब स्पष्ट है कि यह देश पाकिस्तान की मंशा को ना सिर्फ भांप चुके हैं बल्कि वह आने वाले खतरे का आभास भी कर चुके हैं। पाकिस्तान की अफगानिस्तान में दखलअंदाजी मध्य एशिया में अस्थिरता बढ़ाएगी।