नेपाल के राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा जारी एक प्रेस बयान में कहा गया है कि राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया है और मध्यावधि चुनावों के तारीखों की घोषणा 12 और 19 नवंबर को नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76 (7) के अनुसार की।
मंत्रिपरिषद ने पहले चरण का मतदान 12 नवंबर और दूसरे चरण का मतदान 19 नवंबर को कराने की सिफारिश की थी।
सुश्री भंडारी की घोषणा प्रधान मंत्री ओली द्वारा 275 सदस्यीय सदन को भंग करने की सिफारिश के बाद हुई, जब आधी रात को कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई गई।
दि हिन्दू के अनुसार यह दूसरी बार है जब राष्ट्रपति भंडारी ने राजनीतिक संकट के बाद प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर संसद भंग की है।
यह कदम राष्ट्रपति कार्यालय के एक नोटिस के बाद उठाया गया जिसमें कहा गया था कि वर्तमान प्रधान मंत्री के.पी. शर्मा ओली, और न ही नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा, दोनों द्वारा नई सरकार बनाने के लिए किए गए दावे अपर्याप्त थे। नेपाल के राजनीतिक संकट ने शुक्रवार को नाटकीय मोड़ ले लिया था क्योंकि प्रधानमंत्री ओली और विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को सांसदों के समर्थन पत्र सौंपकर नई सरकार के गठन के लिए अलग-अलग दावे किए थे।
दिलचस्प बात यह है कि श्री ओली और श्री देउबा दोनों ने कुछ सांसदों के समर्थन का दावा किया था, जिनके नाम नेपाली मीडिया रिपोर्टों के अनुसार उन दोनों ही की सूची में शामिल थे।
बताते चले कि एक प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार को नई सरकार बनाने के लिए संसद में कम से कम 136 सांसदों के समर्थन की आवश्यकता होती है।
प्रधानमंत्री ओली राष्ट्रपति कार्यालय शीतल निवास पहुंचे थे और विपक्षी नेताओं के सामने अपनी सूची पेश की थी। संविधान के अनुच्छेद 76(5) के अनुसार एक नई सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए राष्ट्रपति को सिफारिश करने के एक दिन बाद, श्री ओली ने पहली बार घोषणा की कि उन्हें प्रतिनिधि सभा के 153 सांसदों का समर्थन प्राप्त है। उन्होंने जो पत्र सौंपा, उसमें जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल के अध्यक्ष महंत ठाकुर और पार्टी के संसदीय दल के नेता राजेंद्र महतो के हस्ताक्षर के साथ उनके हस्ताक्षर थे।
इसी तरह, नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा विपक्षी गठबंधन के अन्य नेताओं के साथ सीपीएन-यूएमएल के खनाल-नेपाल गुट के 27 सांसदों सहित 149 सांसदों के हस्ताक्षर के साथ शीतल निवास पहुंचे। हालांकि, वही दूसरी तरफ़ माधव नेपाल गुट के कुछ सांसदों ने बयान दिया कि उनके हस्ताक्षरों का दुरुपयोग किया गया था और उन्होंने विपक्षी नेता देउबा को अपने ही पार्टी प्रमुख के खिलाफ प्रधान मंत्री के रूप में स्थापित करने के लिए किसी भी कागज पर हस्ताक्षर नहीं किए, इसके बाद एक विवाद सामने आया।
द हिमालयन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति ने स्पष्ट रूप से विपक्षी नेताओं से कहा कि वह संवैधानिक विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद कोई फैसला करेंगी।