ग़ाज़ावासियों के जनसंहार के ख़िलाफ़ अमेरिकी छात्रों के प्रदर्शन ने, नेतन्याहू-बाइडेन की नींद उड़ा दी है

ग़ाज़ावासियों के जनसंहार के ख़िलाफ़ अमेरिकी छात्रों के प्रदर्शन ने, नेतन्याहू- बाइडेन की नींद उड़ा दी है

अमेरिका में फ़िलिस्तीन समर्थक छात्रों का दमन जारी है। देश के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में 18 अप्रैल से चल रहे धरना-प्रदर्शन में करीब ढाई हजार छात्र-छात्रा गिरफ्तार हो चुके हैं। पुलिस कई विश्वविद्यालयों में घुसकर धरने हटवा चुकी है लेकिन आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। भारतीय समयानुसार रविवार सुबह पुलिस ने वर्जीनिया विश्वविद्यालय में धरना खत्म कराते हुए वहां से 25 छात्रों को गिरफ्तार किया।

अमेरिकी छात्रों का विरोध उनकी सरकार द्वारा इज़रायल को दी जा रही मदद और समर्थन के ख़िलाफ़ है जिसके बल पर वह फ़िलिस्तीनी लोगों का जनसंहार कर रहा है। वे अपने संस्थानों से भी माँग कर रहे हैं कि वे इज़रायल के साथ अपना हर तरह का रिश्ता तोड़ें। यह विरोध इज़रायल पर फ़िलिस्तीनी लोगों की नस्लकुशी रोकने के लिए दबाव डालने के लिए किया जा रहा है। उनके संस्थानों के प्रशासन और उनकी सरकार ने उनकी माँग का जवाब अभूतपूर्व दमन से दिया है।

शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे विद्यार्थियों पर प्लास्टिक की गोली, आँसू गैस, लाठियों का इस्तेमाल किया गया है। उन्हें बड़ी संख्या में गिरफ़्तार किया गया है। उनमें से अनेक को संस्थानों से निकाल बाहर करने का नोटिस दिया गया है। उनका साथ देनेवाले अध्यापकों को भी पीटा गया है, गिरफ़्तार किया गया है और दूसरे तरीक़ों से दंडित किया जा रहा है।

वर्जीनिया विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंट जिम रेयान ने कहा है कि धरना में विश्वविद्यालय से बाहर के कई लोगों के शामिल होने की सूचना के बाद पुलिस को बुलाया गया। ऐसा परिसर की सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया गया। इसी प्रकार से शिकागो के आर्ट इंस्टीट्यूट में भी पुलिस ने परिसर में प्रवेश कर वहां से फ़िलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारियों को हटाया है।

मिशिगन विश्वविद्यालय में आयोजित समारोह में फलस्तीन समर्थकों ने नारेबाजी कर अव्यवस्था पैदा करने की कोशिश की। उन्होंने वहां पर फलस्तीन का झंडा फहराते हुए फलस्तीनियों के समर्थन और इजरायल के विरोध में नारे लगाए। पुलिस ने जल्द ही प्रदर्शनकारियों को नियंत्रण में लेकर उन्हें समारोह स्थल से बाहर किया। इसी प्रकार से कई अन्य संस्थाओं में भी प्रदर्शन होने की सूचना है।

अमेरिका के छात्रों और अध्यापकों ने इस दमन के बावजूद जनसंहार के ख़िलाफ़ अपना विरोध जारी रखा है। नौकरी जाने, विश्वविद्यालय से निकाले जाने की धमकी के बावजूद वे अडिग हैं। वियतनाम युद्ध के समय जिस तरह अमेरिकी परिसरों में सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठी थी, उस वक्त छात्र रहे लोगों को आज उसकी याद आ रही है। उनमें से कई आज इन विरोध प्रदर्शनों में जाकर उन्हें अपना समर्थन दे रहे हैं।

इसी बीच मालूम हुआ है कि वाशिंगटन में ओलम्पिया के एवरग्रीन स्टेट कॉलेज ने इज़रायल से हर तरह का रिश्ता ख़त्म कर दिया है। यह वही कॉलेज है जिसकी छात्रा राशैल कोरी अपना घर छोड़कर फ़िलिस्तीनियों के अधिकार के संघर्ष में उनका साथ देने अमेरिका से फ़िलिस्तीन चली गई थी। आज से 21 साल पहले की याद हो आई। तब एक दिन हमने पढ़ा कि कोरी एक फ़िलिस्तीनी घर को इज़रायल के बुलडोज़र से बचाने के लिए उसके सामने खड़ी गई थी और बुलडोज़र ने उसे कुचलकर मार डाला था। 2003 में वह मारी गई थी।

आज जब इज़रायल फ़िलिस्तीनियों का संहार कर रहा है, तब फ़िलिस्तीनियों के साथ खड़े होने का फ़ैसला करने के बाद एवरग्रीन स्टेट कॉलेज फ़ख़्र से कह सकता है कि वह राशैल कोरी का कॉलेज है। अमेरिका के विश्वविद्यालय अपना कर्तव्य कर रहे हैं। विश्वविद्यालय का मतलब वहाँ के छात्र और अध्यापक। विश्वविद्यालय समाज के अंतःकरण होते हैं। या उसके नैतिक कंपास। जब सत्ता या शक्ति अन्याय के साथ हो और समाज भी रास्ता भटक जाए तो विश्वविद्यालय उन्हें राह दिखलाते हैं।

वाशिंगटन के ओलंपिया में एवरग्रीन स्टेट कॉलेज इज़रायल से पूरी तरह अलग होने वाला पहला विश्वविद्यालय बन गया है। विश्वविद्यालय ने मानवाधिकार उल्लंघनों और फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर कब्जे से लाभ कमाने वाली कंपनियों से अलग होने की दिशा में काम करने का फैसला किया है। कॉलेज और गाजा सॉलिडेरिटी एनकैंपमेंट के छात्रों के बीच एक समझौते के बाद यह कदम उठाया गया है।

फिलिस्तीन समर्थक छात्रों के समूह ने 26 अप्रैल को स्कूल के रेड स्क्वायर पर कब्जा कर विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। इसके बाद समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। द ओलंपियन के अनुसार, एवरग्रीन के प्रवक्ता केली वॉन होल्ट्ज ने कहा, ”आखिरकार सभी को इस बात पर गर्व था कि बातचीत किस तरह से आगे बढ़ी।” उन्होंने कहा कि अब शिविर को खाली करा दिया गया है।

अमेरिका में विद्यार्थियों पर दमन के लिए बहाना बनाया जा रहा है कि वे यहूदी विरोधी या एंटीसेमेटिक प्रदर्शन हैं। लेकिन इनमें अच्छी ख़ासी संख्या में यहूदी शामिल हैं। हाँ! इनपर हमला ज़रूर ज़ायनवादी गिरोह कर रहे हैं और अमेरिकी पुलिस उनका साथ दे रही है। इज़रायल के लेखक और स्तंभकार गिडियन लेवी ने लिखा है यह झूठ फैलाया जा रहा है कि इज़रायली हिंसा के ख़िलाफ़ छात्रों के ये प्रदर्शन यहूदियों के ख़िलाफ़ घृणा फैला रहे हैं।

उन्होंने याद दिलाया है कि कोलंबिया यूनिवर्सिटी की छात्रा नोवा ओब्रॉक ने हारेट्ज़ के हिब्रू संस्करण में ही लिखा है कि उन्हें किसी प्रकार का भय या आशंका नहीं है। यह पढ़कर फिर भारत की याद हो आई। 2020 में जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और बाद में शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शनों पर भी ऐसा ही इल्ज़ाम लगाया गया था कि वे हिंदू विरोधी हिंसा फैला रहे थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Hot Topics

Related Articles