भारतीय जनता पार्टी (BJP)के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) पश्चिम बंगाल (West Bangla) विधान सभा चुनावों में 200 प्लस पर पार्टी की जीत का लक्ष्य रखा है.
इसके लिए खुद अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. बीजेपी ने चुनावी रणनीति बनाते हुए राज्य को पांच चुनावी जोन में बांटा है और हर जोन के लिए एक संगठन महामंत्री को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा है. इसके अलावा केंद्रीय मंत्रियों की फौज भी उतारी है.
बीजेपी निम्न सियासत के जरिए से बंगाल की सत्ता पर काबिज दीदी यानी ममता बनर्जी को हराने करने की कोशिश कर रही है. जबकि अभी तक बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरे के तौर पर किसी को सामने नहीं लाया गया है ये स्पष्ट नहीं है. पार्टी का मूल मकसद राज्य में सत्ता प्राप्ति है.
पिछले महीने नवंबर के शुरुआत में जब अमित शाह बंगाल के दौरे पर गए थे, उसी समय से वो आने वाले चुनाव में बीजेपी की सरकार बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं उन्होंने कहा था कि पश्चिम बंगाल में तुष्टिकरण की राजनीति ने राष्ट्र की आध्यात्मिक चेतना को बनाए रखने की अपनी पुरानी परंपरा को चोट पहुंचाई है. इसी के साथ उन्होंने न केवल चैतन्य महाप्रभु, स्वामी विवेकानंद के गुणगान किए बल्कि जगतपुरी के दक्षिणेश्वर मंदिर में भी माथा टेका और सदियों पुराने मंदिर के गर्भगृह भी पहुंचे. वहां शंख बजाकर उनका स्वागत किया गया.
हालिया दो दिन के दौरे की शुरुआत भी शाह ने रामकृष्ण आश्रम से की. यानी अमित शाह सॉफ्ट हिन्दुत्व के रास्ते चलकर बंगाल में हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण की शुरुआती कोशिशों में जुटे हैं जो चुनाव आते-आते आक्रामक हार्डकोर हिन्दुत्व की राह पकड़ सकता है. इस काम में आरएसएस का भी साथ मिल रहा है क्योंकि राज्य में 70 फीसदी हिन्दू मतदाता हैं जबकि 27 फीसदी ही मुसलमान हैं, जो तृणमूल के कैडर वोटर समझे जाते हैं.
दलितों और ओबीसी को लुभाने की कोशिश:
बता दें कि राज्य के 70 फीसदी हिन्दू मतदाताओं में करीब 34 फीसदी मतदाता सिर्फ अनुसूचित जाति और जनजाति के हैं जो बड़ा हिस्सा है. बीजेपी लगातार इसे अपने पाले में करने की कोशिश करती रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी कुछ हद तक इसमें कामयाब होती दिखी है.
पिछले दौरे में अमित शाह ने न केवल बांकुड़ा में आदिवासियों के प्रतीक महापुरुष बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि दी बल्कि दलितों के घर जाकर भोजन भी किया था