नागरिकता का प्रमाणपत्र देना चुनाव आयोग का काम नहीं: पूर्व चुनाव आयुक्त 

नागरिकता का प्रमाणपत्र देना चुनाव आयोग का काम नहीं: पूर्व चुनाव आयुक्त 

बिहार में चुनाव से कुछ महीने पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची की “विशेष गहन समीक्षा” और 2003 के बाद रजिस्टर्ड सभी वोटरों से नागरिकता का सबूत माँगे जाने पर उठ रही आलोचनाओं के बीच, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने भी कहा है कि नागरिकता प्रमाणपत्र देना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी नहीं है। गौरतलब है कि 2003 के बाद मतदाता बने लोगों से जिन दस्तावेजों की मांग की गई है और सिर्फ एक महीने की अवधि दी गई है, उससे अंदेशा है कि लाखों लोग अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। इसके खिलाफ अदालत में याचिकाएँ दाखिल की गई हैं। एडीआर के बाद महुआ मोइत्रा और योगेन्द्र यादव ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, वहीं आरजेडी नेता तेजस्वी यादव हाई कोर्ट पहुँचे हैं।
नागरिकता प्रमाणित करना सरकार की जिम्मेदारी है
दक्षिण भारत से प्रकाशित ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए इंटरव्यू में अशोक लवासा ने कहा कि नागरिकता अधिनियम के अनुसार नागरिकता से जुड़ा कोई भी कार्ड या प्रमाणपत्र जारी करना सरकार का कार्य है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और इसका काम केवल चुनाव कराना और उसकी निगरानी करना है।
आयोग ने 24 जून को जारी निर्देश में संविधान के अनुच्छेद 326 का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए व्यक्ति का भारतीय नागरिक होना जरूरी है। इस पर लवासा ने सवाल उठाया कि “क्या अब तक की मतदाता सूचियाँ अनुच्छेद 326 के अनुसार नहीं थीं?”
चुनाव आयोग की दलील संतोषजनक नहीं
पूर्व चुनाव आयुक्त लवासा ने जोर देकर कहा कि “पिछले सात दशकों से एक तय प्रक्रिया के तहत लोगों को मतदाता सूची में शामिल किया जाता रहा है। अब तक कभी भी चुनाव आयोग ने यह नहीं कहा कि यह प्रक्रिया किसी कानून के खिलाफ है। ऐसे में आज अनुच्छेद 326 का हवाला देना संतोषजनक नहीं लगता।”
2003 के बाद से पाँच लोकसभा और पाँच विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें वोट डालने वालों से अब कहा जा रहा है कि अगर वे वोटर लिस्ट में बने रहना चाहते हैं तो उन्हें भारतीय नागरिक होने का सबूत देना होगा। इसमें माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान का प्रमाण भी माँगा जा रहा है। लवासा ने कहा कि “जिनका नाम नियमों के अनुसार पहले ही मतदाता सूची में दर्ज हो चुका है, अब उनसे फिर से दस्तावेज माँगना और यह चेतावनी देना कि उनका नाम हटाया जा सकता है, यह उचित नहीं है।”
सुप्रीम कोर्ट में और भी याचिकाएँ दाखिल
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (ADR) के बाद पब्लिक यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, सांसद महुआ मोइत्रा और सामाजिक कार्यकर्ता योगेन्द्र यादव ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। महुआ मोइत्रा ने बिहार में इस प्रक्रिया पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है और साथ ही बंगाल व अन्य राज्यों में भी ऐसी किसी कार्रवाई पर पहले से प्रतिबंध लगाने की अपील की है।
बिहार के 2.93 करोड़ वोटर प्रभावित
चुनाव आयोग के निर्देश के कारण 2003 के बाद मतदाता बने करीब 2.93 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं। उन्हें न केवल यह साबित करना है कि वे भारत में पैदा हुए हैं, बल्कि 1987 से 2004 के बीच जन्मे लोगों को यह प्रमाण देना होगा कि उनके माता या पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक था। वहीं, 2004 के बाद जन्मे लोगों को माता-पिता दोनों के भारतीय होने का प्रमाण देना होगा।
इसके लिए उन्हें ऐसे दस्तावेज़ प्रस्तुत करने होंगे जो जन्मतिथि और जन्मस्थान को प्रमाणित करते हों। आयोग ने आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर आईडी को स्वीकार्य दस्तावेज़ नहीं माना है।

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