“चुनावी बांड की जांच, अदालत की निगरानी में एसआईटी द्वारा होनी चाहिए: प्रशांत भूषण
सुप्रीम कोर्ट के ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ को असंवैधानिक करार देने के ऐतिहासिक फैसले के बाद सामने आए घोटाले के विभिन्न तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए मामले के याचिकाकर्ता और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इसकी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी द्वारा जांच कराने का अनुरोध किया है।
रविवार को ‘मुंबई प्रेस क्लब’ में आरटीआई स्वयंसेवक और गैर-सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज़’ की सदस्य अंजलि भारद्वाज के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, ”हम जल्द ही एसआईटी जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। उन्हें और अंजलि भारद्वाज को रविवार को मुंबई प्रेस क्लब में आमंत्रित किया गया था।
भूषण ने कहा कि जब चुनावी बांड का विवरण सार्वजनिक हुआ, तो यह समझ में आया कि इनके द्वारा धोखाधड़ी, जबरन वसूली और रिश्वतखोरी के रूप में बड़ी रकम प्राप्त की गई थी। यह ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग की मदद से किया गया था, इसलिए यह जरूरी है कि इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में या तो सुप्रीम कोर्ट के किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश या ऐसे सेवानिवृत्त प्रमुख से करायी जाये, जिसका करियर दागदार न हो।
उन्होंने कहा कि जांच उपरोक्त केंद्रीय जांच एजेंसियों के खिलाफ करनी है, इसलिए यह काम उनसे नहीं हो सकता। अंजलि भारद्वाज ने यह भी बताया कि हालांकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन फैसला आने में 7 साल लग गए और यह देरी चिंताजनक है।
अंजलि ने आगे कहा कि सरकार ने चुनावी बांड लाने के लिए कई कानूनों में संशोधन किया है, लेकिन कानून में ऐसा कोई बदलाव नहीं किया गया है कि चुनावी बांड आने के बाद राजनीतिक दलों को नकद या अन्य तरीकों से दिया जाने वाला चंदा प्रतिबंधित हो जाएगा। इसलिए बीजेपी और अन्य राजनीतिक दलों को बॉन्ड के अलावा नकदी और अन्य तरीकों से भी पैसा मिल रहा है।
उन्होंने यह भी हवाला दिया कि देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति ने एक बयान में कहा था कि चुनावी बांड न केवल भारत का बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है। इसे समझाते हुए उन्होंने कहा कि हालांकि चुनावी बांड हजारों करोड़ रुपये तक सीमित हैं, लेकिन इन बांडों का इस्तेमाल लाखों करोड़ रुपये की परियोजनाओं से निपटने के लिए किया गया और कुछ कंपनियों को दिया गया।
हजारों करोड़ के घोटालों के आरोपियों पर कार्रवाई रोक दी गई तो जाहिर तौर पर ये मामला जितना दिख रहा है उससे कहीं ज्यादा बड़ा है। इसके अलावा, दिए गए विवरण अप्रैल 2019 तक के बॉन्ड के लिए हैं, 4000 करोड़ रुपये से अधिक के पिछले बॉन्ड का अभी भी हिसाब नहीं है।