यमन युद्ध ने अरब देशों की एकता की पोल खोल दी

रायटर्स: यमन में एक निरंकुश शासन के खिलाफ विद्रोह में शामिल होने वाले कार्यकर्ता दस साल बाद खुद को युद्ध के एक ऐसे विपरीत छोर पर पाते है जिसने देश को अकाल की कगार पर धकेल दिया है।

35 वर्षीय अहमद अब्दो हेज़म नामक एक सेनानी जिनको अबू अल नसर के नाम से जाना जाता है ने युवा नेतृत्व विरोध प्रदर्शनों में शामिल हो कर अली अब्दुल्ला सालेह के 33 वर्षीय शासन को खत्म किया।

उस समय यमन की 40 प्रतिशत आबादी की कमाई 2 डॉलर प्रतिदिन से भी कम थी, लोग बेरोज़गार और भूख से पीड़ित थे देश में भ्रष्टाचार फैला हुआ था।

2012 में सालेह के अमेरिका और अरब के खाड़ी राज्यों के दबाव द्वारा झुकने से पहले इस विद्रोह में लगभग दो हजार लोगों की मौत हुई।

होसी जो सऊदी अरब के दुश्मन और ईरान के मित्र हैं ने 2014 के अंत में राजधानी सना पर कब्ज़ा करने और हादी के शासन को खत्म करने के कि सालेह के साथ भागीदारी की।

अल नसर ने कहा कि हमें नहीं पता था कि विरोध ये रूप ले लेगा हमने अपने साथियों को मरते हुए देखा घरों को बर्बाद होते देखा लेकिन हम अपनी रक्षा के लिए हथियार उठाने को मजबूर थे।

अली अल दलामी नामक आधिकारिक रक्षक को सालेह के शासन के दौरान हिरासत में लिया गया था, जो कि अब मानवाधिकारों के उप मंत्री हैं, वे सना में चेंज स्क्वायर के विद्रोह में इस उम्मीद से शामिल हो गए कि ये सभी राज्यों का नेतृत्व करेगा।

रायटर्स से बात करते हुए उन्होंने क्रांति के शुरुआती दिनों और उसके परिणामों को याद किया।
1990 में सालेह के शासन के अंतर्गत यमन पर राज करने वाली सामाजिक पार्टी के एक सदस्य का कहना है कि जिस विद्रोह में वे शामिल हुए थे उसके उद्देश्य अभी भी संभव हैं, इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अब हमारी प्राथमिकता शांति स्थापित करना है उसके बाद नया संविधान बनाना।

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