एक्स’ द्वारा आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई का अकाउंट निलंबित किया जाना गहरी साज़िश 

एक्स’ द्वारा आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई का अकाउंट निलंबित किया जाना पक्षपाती रवैया

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) ने ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई का हिब्रू भाषा का अकाउंट निलंबित कर दिया है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। यह निलंबन ऐसे समय में हुआ है जब इज़रायल द्वारा ईरान पर हमले किए जा रहे हैं और ईरानी नेतृत्व इज़रायल की आक्रामक नीतियों का जवाब देने के लिए अपने संदेश को पूरी दुनिया तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। आयतुल्लाह ख़ामेनेई के इस अकाउंट से जारी किए गए संदेशों में उन्होंने इज़रायल की ओर से किए गए हमले को एक “बड़ी गलती” करार दिया था और स्पष्ट किया था कि ईरानी राष्ट्र का साहस और उसकी शक्ति अडिग है, जो इज़रायल को इसका सही जवाब देने के लिए तैयार है।

इस निलंबन को लेकर ईरानी समर्थक इसे पश्चिमी सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा इज़रायल के प्रति पक्षपाती रवैया मानते हैं। आयतुल्लाह ख़ामेनेई के हिब्रू भाषा के अकाउंट को निलंबित करके एक्स ने इज़राइल के अन्यायपूर्ण और असहमति को दबाने की नीतियों का समर्थन किया है। इज़राइल द्वारा आए दिन किए जा रहे हमलों और उनके नतीजों को दुनिया के सामने उजागर करने का यह ईरानी प्रयास था, जिसे इस प्रकार रोका जा रहा है।

आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के हिब्रू भाषा के अकाउंट का निलंबन वैश्विक राजनीति और सोशल मीडिया पर प्रभावी होती शक्तियों का एक बड़ा उदाहरण बनकर उभरा है। ईरानी जनता और अधिकारियों का मानना है कि यह निलंबन स्वतंत्रता की आवाज को दबाने के पश्चिमी प्रयासों का हिस्सा है। उनके अनुसार, इस प्रकार के प्रतिबंध केवल सोशल मीडिया के पक्षपाती रवैये को उजागर करते हैं, जो विशेष रूप से उन देशों और नेताओं को निशाना बनाता है जो इज़रायल की नीतियों की आलोचना करते हैं। ईरानियों का यह भी मानना है कि यह प्रतिबंध इज़रायल को राजनीतिक, सैन्य और मीडिया समर्थन देने के एक स्पष्ट संकेत के रूप में देखा जा सकता है।

इतिहास में भी कई बार देखा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने पश्चिमी देशों के प्रभाव में आकर कुछ देशों या उनके नेताओं की आवाज़ को दबाने के लिए ऐसे कदम उठाए हैं। मेटा जैसे बड़े प्लेटफॉर्म पहले ही फेसबुक और इंस्टाग्राम पर आयतुल्लाह ख़ामेनेई के अकाउंट्स को निलंबित कर चुके हैं। इसे एक ओर से देखा जाए तो यह राजनीतिक तौर पर पक्षपाती रवैया है, जो न केवल सच की आवाज़ को दबाने का काम करता है, बल्कि इज़रायल की विवादित और आक्रमणकारी नीतियों को भी बल देता है।

यह कदम केवल सोशल मीडिया पर ही नहीं बल्कि वैश्विक शांति और न्याय पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। सोशल मीडिया कंपनियाँ, जो दुनिया में अभिव्यक्ति की आज़ादी का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती हैं, इस प्रकार के पक्षपाती रवैये से अपनी निष्पक्षता पर खुद ही सवाल खड़ा कर देती हैं। ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि इन प्लेटफॉर्म्स की नीतियों की गहराई से समीक्षा की जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को शक्तिशाली राष्ट्रों के हाथों का उपकरण बनने से बचाया जा सके।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Hot Topics

Related Articles