हिज़्बुल्लाह से जंग के बीच इज़रायली सैनिक आत्महत्या क्यों कर रहे हैं ??

हिज़्बुल्लाह से जंग के बीच इज़रायली सैनिक आत्महत्या क्यों कर रहे हैं ??

हाल ही में, यह जानकारी सामने आई है कि इज़रायली सेना के कम से कम छह सैनिक, जो लंबे समय से गाज़ा और लेबनान में लड़ाई में शामिल थे, ने आत्महत्या कर ली है। इज़रायली सेना ने इस प्रकार की घटनाओं पर चुप्पी साधते हुए आत्महत्या करने वाले और आत्महत्या का प्रयास करने वाले सैनिकों की सटीक संख्या को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। हालांकि, सेना ने यह आश्वासन दिया है कि इन आंकड़ों को साल के अंत तक जारी किया जाएगा।

चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, इन घटनाओं में किसी असामान्य वृद्धि के संकेत नहीं मिले हैं, लेकिन यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि लंबे समय तक चलने वाले युद्धों के कारण सैनिक मानसिक रूप से थकान का सामना कर रहे हैं। इज़रायली सैन्य विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध के समाप्त होने के बाद ही वास्तविक मानसिक प्रभाव सामने आएगा, जब सेना सामान्य स्थिति में लौटेगी।

गाज़ा और लेबनान युद्ध का मानसिक प्रभाव
गाज़ा में युद्ध के समाप्त होने के बाद, विशेष रूप से पिछले दो हफ्तों में, लेबनान से लौटे सैनिकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है जो मानसिक स्वास्थ्य सहायता मांग रहे हैं। इनमें से कई सैनिकों को पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) के लक्षणों के साथ डायग्नोस किया गया है। यह स्थिति उन सैनिकों में देखी जा रही है जो गाज़ा और लेबनान की लड़ाई में शामिल रहे हैं।

यह स्थिति इज़रायली सेना के इतिहास में अनदेखी नहीं की जा सकती। 7 अक्टूबर को हमास के अप्रत्याशित हमले से शुरू हुआ यह युद्ध 14 महीने तक चला और इस दौरान हर सैन्य यूनिट में औसतन दो अंकों में सैनिक मानसिक कारणों से सेवा छोड़ रहे हैं। हालांकि, यह संख्या यूनिट में सेवा करने वाले सैकड़ों सैनिकों की तुलना में कम है, लेकिन मानसिक दबाव के कारण युद्ध से बाहर निकलने वाले सैनिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

मानसिक स्वास्थ्य और सैनिकों का संघर्ष
मानसिक स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, कई सैनिक कमांडरों से संपर्क कर रहे हैं और युद्ध से बाहर निकलने की इच्छा जता रहे हैं। इस दौरान सैनिकों और उनके माता-पिता ने मानसिक और भावनात्मक दबाव के खिलाफ कमांडरों से शिकायतें दर्ज कराने की योजना बनाई है। एक सामान्य पैदल सेना की बटालियन में, मानसिक दबाव के कारण सैनिकों की कमी की समस्या गंभीर होती जा रही है। कई सैनिक गहरे मानसिक तनाव का सामना कर रहे हैं, जिन्हें वह या तो दबा रहे हैं या क्रोध के रूप में प्रकट कर रहे हैं।

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, 7 अक्टूबर से शुरू हुए युद्ध के बाद से 12,000 से अधिक घायल सैनिकों को विकलांग घोषित किया गया है। अनुमान है कि अगले साल के अंत तक यह संख्या 20,000 तक पहुंच सकती है। इन विकलांग सैनिकों में से लगभग 40 प्रतिशत मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे हैं। इज़रायली सेना ने सभी कमांडरों को आदेश दिया है कि वे सैनिकों की मानसिक स्थिति में आने वाले किसी भी बदलाव पर ध्यान दें और समय पर हस्तक्षेप करें। इसके बावजूद, गाज़ा से लौटे 15 प्रतिशत सैनिक मानसिक उपचार के बावजूद युद्ध में वापस लौटने में असमर्थ हैं।

गाज़ा में सेना की कमान संभालने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि यह स्थिति सेना के सबसे सख्त और अनुभवी कमांडरों को भी प्रभावित कर रही है। लंबे और अंतहीन युद्ध ने सैनिकों के बीच गहरी उदासी और मानसिक थकावट पैदा की है। एक चरम घटना में, गाज़ा के युद्ध क्षेत्र में एक युवा अधिकारी ने, अपने अधीनस्थ सैनिकों के सामने, आत्महत्या कर ली। यह घटना उनकी यूनिट में आज भी एक गहरी छाप छोड़ चुकी है।

आखिरी शब्द
इज़रायली सेना वर्तमान में मानसिक स्वास्थ्य और सैनिकों की कमी के दोहरे संकट का सामना कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह संकट केवल युद्ध के समाप्त होने के बाद और गहराएगा। सेना के पुनर्वास विभाग और मानसिक स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए यह चुनौती बनी हुई है कि वे इन सैनिकों को समय पर उचित सहायता प्रदान करें और इस मानसिक संकट को और अधिक गंभीर बनने से रोकें। इस पूरे प्रकरण को देख कर कहा जा सकता है कि, हिज़बुल्लाह की ताकत अप्रत्यक्ष रूप से इज़रायली सेना पर पड़ने वाले मानसिक प्रभावों और दबाव के रूप में सामने आती है। हिज़्बुल्लाह की ताकत को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:

1-लंबे समय तक युद्ध का दबाव
हिज़्बुल्लाह के खिलाफ लड़ाई में इज़रायली सैनिक लंबे समय से मानसिक और भावनात्मक थकावट का सामना कर रहे हैं। यह दिखाता है कि हिज़्बुल्लाह ने अपनी रणनीतिक क्षमता से इज़रायल को न केवल सैन्य बल्कि मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी कमजोर किया है।

2-युद्धक्षेत्र में प्रभाव
गाज़ा और लेबनान के मोर्चों से लौटे कई सैनिक PTSD (पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) का शिकार हो रहे हैं। यह हिज़्बुल्लाह की युद्ध शैली और प्रतिरोध की क्षमता को दर्शाता है, जो इज़रायली सेना के सैनिकों को गंभीर मानसिक तनाव में डाल रही है।

3-इज़रायली सेना की कमजोरी
सैनिकों की आत्महत्या और युद्ध से बाहर निकलने की घटनाएं यह स्पष्ट करती हैं कि हिज़्बुल्लाह के प्रतिरोध ने इज़रायली सेना की आंतरिक संरचना और मनोबल को बुरी तरह प्रभावित किया है। सैनिकों का मानसिक दबाव इस बात का प्रमाण है कि हिज़बुल्लाह ने इज़रायली सेना के लिए स्थिति कठिन बना दी है।

4-हिज़बुल्लाह की रणनीतिक शक्ति:
इज़रायली सेना ने माना है कि मानसिक प्रभाव का असली रूप युद्ध के बाद सामने आएगा। यह इस बात की पुष्टि करता है कि हिज़बुल्लाह ने लंबे समय तक प्रभाव डालने वाली रणनीति अपनाई है, जो युद्ध के खत्म होने के बाद भी इज़रायली सेना को परेशान करेगी।

5-इज़रायली सैनिकों का मनोबल गिराना
इज़रायली सेना के इतिहास में यह अनदेखी नहीं की जा सकती कि हिज़्बुल्लाह जैसे संगठनों ने उन्हें बार-बार मनोवैज्ञानिक और सैन्य संकट में डाला है। आत्महत्या और मानसिक समस्याओं की घटनाएं यह दिखाती हैं कि हिज़बुल्लाह का प्रभाव युद्ध के मैदान से परे भी है।

6-सामरिक और मनोवैज्ञानिक युद्ध
हिज़्बुल्लाह ने केवल पारंपरिक सैन्य युद्ध नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक युद्ध में भी सफलता प्राप्त की है। इसके चलते इज़रायली सेना के अंदर ही असंतोष और मनोबल की कमी पैदा हो रही है।

7-आधुनिक युद्ध की चुनौती
हिज़्बुल्लाह की ताकत यह भी है कि वह इज़रायल जैसे शक्तिशाली सैन्य देश को मानसिक स्वास्थ्य और सैनिकों की कमी जैसे आंतरिक संकट का सामना करने के लिए मजबूर कर रही है। यह किसी भी प्रतिरोध संगठन की एक बड़ी जीत मानी जाती है।

निष्कर्ष:
हिज़बुल्लाह की ताकत केवल सैन्य ताकत तक सीमित नहीं है; यह उसकी रणनीतिक सोच, मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालने की क्षमता और लंबे समय तक इज़रायल को चुनौती देने की उसकी कुशलता में निहित है। इस लेख से स्पष्ट है कि हिज़्बुल्लाह ने न केवल अपने प्रतिरोध के जरिए इज़रायली सेना को उलझाया है, बल्कि उसके सैनिकों और समाज पर गहरा मानसिक प्रभाव भी डाला है।

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