हम परमाणु मुद्दे समझदारी भरी बातचीत चाहते हैं: लारीजानी
ईरान के राष्ट्रीय सुरक्षा उच्च परिषद के सचिव ने मीडिया प्रबंधकों और ज़िम्मेदारों से मुलाक़ात में कहा: हम परमाणु मुद्दे में बातचीत को समाधान का रास्ता मानते हैं, लेकिन ऐसी बातचीत जो समझदारी और वास्तविकता पर आधारित हो। लेकिन वे (अमेरिकी) मिसाइल जैसे मुद्दे उठाकर बातचीत को शुरू ही नहीं होने देना चाहते। इस समय अमेरिकियों की इच्छा बातचीत करने की नहीं है, जैसे कि युद्ध भी उस समय हुआ था जब हम बातचीत कर रहे थे।
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई के सलाहकार अली लारीजानी ने देश के मीडिया प्रबंधकों और ज़िम्मेदारों के साथ कई घंटों की बैठक में देश की मौजूदा स्थिति की व्याख्या करते हुए कहा कि राष्ट्रीय एकजुटता एक मौलिक विषय है जिसमें सरकार और जनता दोनों के लिए कर्तव्य तय हैं। शासन को चाहिए कि राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाज, सुरक्षा और सैन्य मामलों में तार्किक रास्ते प्रस्तुत करके अपनी ज़िम्मेदारी निभाए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति और सरकार दिन-रात देश की समस्याओं को हल करने के लिए प्रयासरत हैं।
अमेरिका के साथ बातचीत का रास्ता बंद नहीं है
सुप्रीम लीडर सर्वोच्च नेता के सलाहकार ने आगे कहा: “ईरान और इस्लामी गणराज्य की रक्षा सबसे अहम् मुद्दा है, लेकिन दुश्मन कहता है कि आपको अपनी मिसाइल क्षमता से पीछे हटना होगा। कौन सा स्वाभिमानी ईरानी आज यह चाहेगा कि, अपना हथियार दुश्मन को सौंप दे?
उन्होंने कहा, हम परमाणु मुद्दे पर बातचीत को समाधान का रास्ता मानते हैं, लेकिन ऐसी बातचीत जो समझदारी और वास्तविकता पर आधारित हो। लेकिन वे (अमेरिकी) मिसाइल जैसे मुद्दे उठाकर बातचीत को शुरू ही नहीं होने देना चाहते।
अली लारीजानी ने देश के मौजूदा मामलों में निर्णय-प्रक्रिया की व्याख्या करते हुए कहा: ईरान में कुछ लोग यह न सोचें कि परमाणु वार्ताएँ, स्नैपबैक आदि जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर कहीं विचार नहीं होता। देश के मामलों का समाधान आसान नहीं है और विरोधाभासों को दूर करने के लिए व्यापक दृष्टिकोण और समीक्षा की आवश्यकता होती है।
राष्ट्रीय सुरक्षा उच्च परिषद के सचिव ने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) पोस्ट में भी लिखा: अमेरिका के साथ बातचीत का रास्ता बंद नहीं है। अमेरिकन केवल बातचीत की बात करते हैं, लेकिन मेज़ पर नहीं आते और ग़लत तरीके से यह दावा करते हैं कि इस्लामी गणराज्य बातचीत नहीं करता! जबकि हम समझदारी भरी बातचीत के इच्छुक हैं। वे ऐसे मुद्दे उठाते हैं जिनके असंभव होने का उन्हें ख़ुद भी पता है, जैसे मिसाइल प्रतिबंध, ताकि एक ऐसा मॉडल पेश किया जाए जो व्यवहार में बातचीत को ही समाप्त कर दे।


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