ईरान और अमेरिका के संबंध 42 साल पहले ईरान में हुई इस्लमी क्रांति के बाद ही तनावपूर्ण रहे हैं ट्रम्प के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच उस समय तनाव अपने चरम पर था जब ट्रम्प ने परमाणु समझौते से निकलने की घोषणा की थी।
ईरान और अमेरिका ट्रम्प के ही कार्यकाल में उस समय सैन्य टकराव की हद तक पहुँच गए थे जब ट्रम्प के आदेश पर बगदाद में अमेरिकी सेना ने एक आतंकी अभियान में ईरान के सैन्य कमांडर जनरल सुलैमानी की हत्या कर दी थी।
हाल ही में बाइडन प्रशासन ने इस तनाव को कम करने की दिशा में कदम उठाते हुए संकेत दिए हैं कि वह ईरान के साथ हुए 2015 के परमाणु समझौते की शर्तों को एक बार फिर स्वीकार करने के लिए तैयार है। इस संबंध में पेरिस में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के विदेश मंत्रियों की बैठक भी हुई है. हालांकि इस मामले पर ईरान का कहना है कि वो समझौते का पालन तब करेगा जब अमेरिका उस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को हटाना शुरू करेगा।
याद रहे कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने तीन साल पहले इस समझौते से अमेरिका को बाहर कर लिया था। इसके साथ ही ट्रम्प सरकार ने ईरान पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए थे। जिसके बाद ईरान ने लगभग 12 महीनों तक यूरोपीय देशों से ये उम्मीद लगाई कि वे अपने स्तर पर हस्तक्षेप कर इस मुश्किल का कोई रास्ता निकालेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
अमेरिका में सत्ता में बदलाव के साथ ही अटकलें लगायी जाने लगी थी कि बाइडन इस समझौते पर कोई फैसला ले सकते हैं हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि आगे का रास्ता चुनौतियों भरा है क्योंकि अमेरिकी सरकार की शर्त है कि ईरान को पहले समझौते की शर्तों का पालन करना चाहिए, इसके बाद ही अमेरिका से कोई उम्मीद करनी चाहिए।
रॉयटर्स के मुताबिक़, अमेरिकी सरकार ने गुरुवार को बताया है कि वह साल 2015 में हुए समझौते की शर्तें एक बार फिर स्वीकार करने के लिए ईरान से बात करने के लिए राज़ी है। अमेरिका ने कहा है कि वो एक बार फिर उस समझौते को स्वीकार करना चाहता है जिसका उद्देश्य ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना है।
अमेरिकी सरकार की ओर से ये शर्त रखी जा रही है कि इस मामले में बाइडन प्रशासन के कदम बढ़ाने से पहले ईरान को समझौते की सभी शर्तों को स्वीकार करना होगा। इस संबंध में पेरिस में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई. इसके बाद चारों देशों की ओर से साझा बयान जारी किया गया।
इस बयान में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन ने प्रस्ताव दिया कि, “अगर ईरान ज्वॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ़ एक्शन (जेसीपीओए ) के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं का कड़ाई से पालन करते हुए वापसी करता है तो अमेरिकी भी ईरान के साथ इस ओर बढ़ने के लिए बातचीत करने के लिए तैयार है।”
वहीँ ईरान ने अमेरिका के इस प्रस्ताव पर ठंडी प्रतिक्रिया दी है। ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ ने कहा है कि अमेरिका को पहले शुरुआत करनी चाहिए। ज़रीफ़ ने एक ट्वीट के माध्यम से कहा, “ईरान को ज़िम्मेदार बनाने और चालाकी से भरी बातें करने की जगह ई3 और यूरोपीय संघ को अपनी प्रतिबद्धताओं और ईरान के ख़िलाफ़ ट्रम्प के आर्थिक चरमपंथ की विरासत को ख़त्म करने की माँग को पूरा करना चहिए। ”
जवाद ज़रीफ़ ने कहा कि “हमने जो काम किया है वह अमेरिका और ई3 की ओर से किए गए उल्लंघनों की प्रतिक्रिया के रूप में किया गया है। अगर आप असर से डरते हैं तो वजह को ख़त्म कर दीजिए. हम एक्शन की प्रतिक्रिया में एक्शन करेंगे।”


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