यूएन जनरल सभा का ग़ाज़ा में सहायता पर लगी रोक को हटाने की माँग

यूएन जनरल सभा का ग़ाज़ा में सहायता पर लगी रोक को हटाने की माँग

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की सामान्य सभा ने शुक्रवार को एक प्रस्ताव पारित करते हुए इज़रायल से ग़ाज़ा पट्टी में मानवीय आधार पर पूर्ण पहुँच की अनुमति देने, संयुक्त राष्ट्र के कार्यालयों की पवित्रता का सम्मान करने और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अंतर्गत अपने दायित्वों का पालन करने की माँग की है। यह प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) की हाल की परामर्शात्मक राय के बाद आया है, जिसमें एक अधिभोगकारी शक्ति और संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश—दोनों के रूप में—इस्राइल के कर्तव्यों का उल्लेख किया गया था। नॉर्वे और एक दर्जन से अधिक अन्य देशों द्वारा प्रस्तुत इस प्रस्ताव को सामान्य सभा ने 139 मतों के समर्थन से पारित किया। 12 देशों ने विरोध में मतदान किया, जबकि 19 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया।

मानवीय स्थिति पर चिंता
मतदान से पहले, संयुक्त राष्ट्र में नॉर्वे की स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत मेरिट फ़ेल्ड ब्राटिस्टेड ने सभा को संबोधित करते हुए चेतावनी दी कि ग़ाज़ा में मानवीय स्थिति तेज़ी से बिगड़ रही है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2024 पिछले तीन दशकों में सबसे अधिक हिंसक वर्षों में से एक था। वर्ष 2025 में भी बड़े पैमाने पर हिंसा हुई है। उन्होंने आगे कहा कि अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र चिंता का केंद्र बना हुआ है। आम नागरिक युद्ध की सबसे भारी क़ीमत चुका रहे हैं। मानवीय सिद्धांतों का सम्मान कमज़ोर पड़ रहा है और मानवीय क़ानून के मूल सिद्धांत दबाव में हैं।

ब्राटिस्टेड ने ज़ोर देकर कहा कि आईसीजे के समक्ष परामर्शात्मक कार्यवाहियों का उद्देश्य विशेष रूप से ग़ाज़ा में नागरिकों तक जीवन-रक्षक मानवीय सहायता पहुँचाने के संदर्भ में इज़रायल की क़ानूनी ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट करना था। उन्होंने हाल की उन घटनाओं की ओर भी संकेत किया जिन्होंने इस मुद्दे की तात्कालिकता को उजागर किया है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के हालिया बयान का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने पिछले दिनों शेख़ जर्राह में स्थित यूएनआरडब्ल्यूए के कार्यालय परिसर में इज़रायल के “अनधिकृत प्रवेश” की निंदा की थी।

अमेरिका का विरोधी रुख
अमेरिका ने इस प्रस्ताव का कड़ा विरोध किया। मतदान से पहले अपने संबोधन में, अमेरिकी प्रतिनिधि जेफ़ बार्टोस ने तर्क दिया कि यह प्रस्ताव अनुचित रूप से केवल इज़रायल को निशाना बनाता है। उन्होंने कहा कि यह सामान्य सभा के “दशकों पुराने पक्षपाती पैटर्न” को दर्शाता है। प्रस्ताव को “दिखावा” बताते हुए बार्टोस ने कहा कि इससे क्षेत्र में विभाजन बढ़ेगा और शांति के प्रयासों में बाधा आएगी।

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