अमेरिका, इज़रायल द्वारा लेबनानी प्रतिरोध को ख़त्म करना चाहता है: नईम क़ासिम
हिज़्बुल्लाह महासचिव शेख़ नईम क़ासिम ने कहा है कि, अमेरिका, इज़रायल के ज़रिए लेबनान की ‘मुक़ावमत’ यानी प्रतिरोध की भूमिका को ख़त्म करना चाहता है। बेरूत में शहीद दिवस के मौके पर उन्होंने नारे “जब हम शहीद होते हैं, तब जीतते हैं” के तहत भाषण दिया और कहा कि यह दिन लेबनान में एक आम उत्सव की तरह मनाया जाएगा।उन्होंने बताया कि, जनता 11 अलग-अलग इलाक़ों — बेरूत, बआलबक, हरमल, कर्क, मायसरा, दैर क़ानून अल-नहर, हारिस, मशग़रा, नबतीया, क़ाज़िया और काफ़रमान — में एकत्र होगी।
नईम क़ासिम ने कहा कि हिज़्बुल्लाह की बुनियाद , इज़्ज़त, लेबनान की गरिमा और फ़िलिस्तीन की मदद पर रखी गई थी। उन्होंने कहा कि सन 2000 से 2023 तक हम “रोकथाम की स्थिति” में थे। “पहली जंग” इज़रायल की घुसपैठ के खिलाफ़ एक दीवार बनी जिसने दक्षिण लेबनान की सीमाओं पर दुश्मन को रोक दिया।
उन्होंने बताया कि अक्टूबर समझौता (October Agreement) लेबनानी सेना की दक्षिण लितानी नदी के नीचे तैनाती से संबंधित है, जो प्रतिरोध के लिए स्वीकार्य है। “हम इसलिए विजयी हैं क्योंकि आज लेबनानी सेना दक्षिण लितानी में मौजूद है — वे हमारे ही बेटे हैं। सरकार ने अपना रोल निभाने का वादा किया, जबकि अमेरिका ने अपने वादे पूरे नहीं किए क्योंकि अगर इज़रायल पीछे हटता है तो लेबनान अपनी आज़ादी और इज़्ज़त वापस पा लेगा।”
शेख़ क़ासिम ने कहा कि अमेरिका और इज़रायल, लेबनान के भविष्य में दखल देते हैं — उसकी सेना, अर्थव्यवस्था, राजनीति और नीतियों को नियंत्रित करते हैं। “अमेरिका, इज़रायल के ज़रिए लेबनान के प्रतिरोध को ख़त्म करना चाहता है और देश को दुश्मन के हमलों के सामने खुला छोड़ देना चाहता है।” उन्होंने कहा, “हम न हथियार डालेंगे और न झुकेंगे।”
उन्होंने याद दिलाया कि 1982 में इज़रायल ने यह दावा करते हुए लेबनान पर हमला किया था कि, वह फ़िलिस्तीनी समूहों को निकालना चाहता है, लेकिन वह 2000 तक देश पर क़ाबिज़ रहा। इज़रायल ने पहले “फ़्री लेबनान आर्मी” बनाई और फिर उसका नाम “साउथ लेबनान आर्मी” रख दिया ताकि यह दिखा सके कि, समस्या लेबनान के अंदरूनी स्तर पर है, जबकि असल में यह उसकी खुद की योजना थी। “प्रतिरोध और शहीद अहमद क़सीर जैसे लोगों की कुर्बानियों के चलते, 2000 में इज़रायल को बेइज़्ज़त होकर पीछे हटना पड़ा।”
उन्होंने आगे कहा कि, नवंबर समझौता भी प्रतिरोध के हक़ में है क्योंकि इसमें लेबनानी सेना की दक्षिण लितानी में तैनाती शामिल है। “वे हमारे ही बच्चे हैं, इसलिए हम इस तैनाती से लाभ उठा रहे हैं।” क़ासिम ने कहा कि “अमेरिका ने अपने वादे पूरे नहीं किए, क्योंकि अगर इज़रायल पीछे हटेगा तो लेबनान स्वतंत्र और सम्मानित हो जाएगा।” उन्होंने आरोप लगाया कि अमेरिका और इज़रायल, लेबनान की सरकार पर दबाव डालते हैं ताकि वह रियायतें दे, लेकिन बदले में उसे कुछ नहीं मिलता — बस फसाद और इज़रायल को खुली छूट।
उन्होंने कहा कि इज़रायल चाहता है कि, लेबनान उसके नियंत्रण में आ जाए, और यह देश “ग्रेटर इज़रायल” की योजना का हिस्सा बन जाए। “हर दिन नए बहाने बनाए जाते हैं — कभी हथियार डालने का, कभी मुक़ावमत की फंडिंग रोकने का — जबकि असली समस्या सिर्फ़ प्रतिरोध का अस्तित्व है।”
नईम क़ासिम ने आगे कहा, “इज़रायल ने पूरे एक साल तक हर तरह की उल्लंघन और सैकड़ों हमले किए, और उनके कुछ स्थानीय नौकर अपने ही नागरिकों की रक्षा करने के बजाय अमेरिका और इज़रायल की मदद में लगे हैं।” उन्होंने दुख जताया कि “सरकार अपनी घोषणाओं में सिर्फ़ प्रतिरोध के निशस्त्रीकरण की बात करती है।” उन्होंने सवाल उठाया कि “सरकार अपनी संप्रभुता बहाल करने की योजना क्यों नहीं बनाती? क्यों वह अमेरिकी हुक्म मानने में लगी है?”
उन्होंने कहा, “वे लेबनान की सैन्य ताक़त को नष्ट करना चाहते हैं ताकि इज़रायल के सामने कोई रुकावट न रहे।” क़ासिम ने चेतावनी दी कि, “अगर दक्षिण लेबनान में खून बहेगा, तो पूरा देश इसकी आग में झुलसेगा।” उन्होंने कहा, “हम पर अस्तित्व का ख़तरा मंडरा रहा है, और यह हमारा हक़ है कि, हम अपने बचाव के लिए हर कदम उठाएँ। हम अपने हथियार नहीं डालेंगे — यही हमारे बचाव का ज़रिया हैं।” उन्होंने कहा, “हम जानते हैं कि हम जीतेंगे। विजय का रास्ता खुला है।”
शेख़ क़ासिम ने फ़िलिस्तीनी जनता और उनके प्रतिरोध को सलाम किया और कहा, “उन्होंने दुनिया को सिखाया कि अपने हक़ के लिए कैसे डटे रहना चाहिए। आख़िर में उन्होंने यमन के लोगों और इराक की जनता व क़बीलों को सलाम पेश करते हुए कहा, “आप आज़ादी के मोर्चे पर अगुवा हैं।”


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