ग़ाज़ा पट्टी में भी कभी इंसान रहते थे

 ग़ाज़ा पट्टी में भी कधी इंसान रहते थे

इज़रायल-हमास युद्ध जारी है। इस युद्ध में इज़रायल ने अपनी बर्बरता और क्रूरता का परिचय देते हुए पूरे ग़ाज़ा पट्टी को क़ब्रिस्तान बना दिया है। नेतन्याहू ने इज़रायल में अपनी सत्ता बरक़रार रखने के लिए ग़ाज़ा वासियों का जो नरसंहार किया है, उसे इतिहास कभी भूल नहीं सकता। सत्ता का लालच और अहंकार इंसान को कितना वहशी बना देता है, यह ग़ाज़ा पट्टी में देखा जा सकता है।

वह ग़ाज़ा पट्टी जो जहां कभी बच्चों के हंसने खेलने की आवाज़ें आती थी। वह ग़ाज़ा पट्टी जहां कभी औरतें अपने बच्चों को गोद में लिए लोरियां दिया करती थीं। वह ग़ाज़ा पट्टी जहां शाम ढलने पर मां अपने बच्चों की वापसी का, महिलाएं अपने पति के लौटने की प्रतीक्षा किया करती थीं। वह ग़ाज़ा पट्टी अब क़ब्रिस्तान बन चुका है। ऐसा क़ब्रिस्तान जिसमे बच्चे ज़मीन के अंदर दफ़्न नहीं है बल्कि मलबे के नीचे दबे हुए हैं।

अब उनके दुखों पर रोने वाला कोई नहीं है। उनके लाशों को दफ़्न करने वाला कोई नहीं है। क्योंकि उनकी मौत पर आंसू बहाने वाले मां-बाप, दोस्त, रिश्तेदार सब मलबे के नीचे दब कर इस बेरहम दुनियां को छोड़कर जा चुके हैं। ज़मीन पर मलबे के नीचे सिर्फ़ उनकी लाशें पड़ी हुई हैं। उनकी लाशें चीख़ चीख़ कर पूछ रही है, बताओ हमारी गोद क्यों उजाड़ी गई ? हमारे सामने हमारे बच्चों नरसंहार क्यों किया गया? क्या हम इस लिए दुनिया में आए थे किअत्याचारी और क्रूर शासक हमें अपनी सत्ता की हनक में जानवरों की तरह नोच कर खा जाएं ?

क्या हमारी जान की कोई क़ीमत नहीं थी? अगर हमें ख़त्म ही करने था तो हमारे बच्चों को हमारे सामने तड़पा तड़पा कर क्यों मारा गया? हमारे मासूम, बेगुनाह बच्चों ने किसी का क्या बिगाड़ा था? उनको बिना ऑक्सीजन के अस्पतालों में मरने के लिए क्यों छोड़ा गया ? ऑक्सीजन की कमी से मरने वाले हमारे नवजात बच्चों की लाशों में कीड़े लग जाने का ज़िम्मेदार कौन है? आतंकवाद का ढिंढोरा पीटने वालों के इतने बड़े आतंकवाद और नरसंहार पर भी पूरी दुनियां चुप्पी क्यों साधे हुए है ?

कहां गया मानवाधिकार संगठन ? कहां गए महिलाओं के न्याय का बातें करने वाले? कहाँ गए शांति की बातें करने वाले ?कहां गई अंतरराष्ट्रीय अदालतें? कहाँ गए वह तथाकथित मुस्लिम शासक जो हमारे साथ हमदर्दी का ढोंग करते थे ? आज वह ख़ामोश क्यों बैठे हैं ? हमारे लिए बोलते क्यों नहीं ? हमारे मासूम बच्चों की मौत पर वह खुलकर बोलते क्यों नहीं ? क्या वह हमारे लाशों पर अपना सिंहासन रखकर अपना शासन चलाना चाहते हैं ? या फिर उन्होंने अपनी ग़ैरत ही बेच दी है ?

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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