सऊदी-पाक रक्षा समझौता, आतंकवाद को वैधता देने जैसा
इस हफ़्ते की सबसे चौंकाने वाली ख़बर सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हुआ रक्षा समझौता है, जिसके तहत “किसी एक देश पर बाहरी हमले को दोनों देशों पर हमला माना जाएगा।” इस समझौते पर रियाद में सऊदी युवराज मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने हस्ताक्षर किए। इस मौके पर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर भी मौजूद थे। इस समझौते ने जहाँ दुनिया के ज़्यादातर देशों को हैरान कर दिया है, वहीं भारत की परेशानियाँ भी बढ़ा दी हैं, क्योंकि सऊदी अरब भारत का भी दोस्त है।
सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुआ रक्षा समझौता पूरी दुनिया को चौंका देने वाला है। पहली नज़र में यह क्षेत्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने का प्रयास लगता है, लेकिन गहराई से देखें तो यह समझौता भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
भारत और सऊदी अरब दशकों से करीबी साझेदार रहे हैं। व्यापार, ऊर्जा, निवेश, संस्कृति और कूटनीतिक सहयोग के लंबे इतिहास ने दोनों देशों के रिश्तों को मज़बूत बनाया है। वहीं पाकिस्तान भारत का पुराना विरोधी है, जिसे भारत लगातार आतंकवाद का पालक-पोषक साबित करने की कोशिश करता रहा है। ऐसे में भारत के “दोस्त” सऊदी अरब का पाकिस्तान के साथ इस स्तर पर खड़ा होना, भारत की रणनीतिक स्थिति को चुनौती देता है। पाकिस्तान, जो दशकों से आतंकवाद की नर्सरी बना हुआ है, और सऊदी अरब, जो बार-बार अविश्वसनीय नीतियों के लिए बदनाम है, अब पाक जैसे आतंकी देश के साथ नई अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
भारत–सऊदी रिश्तों की अनदेखी
भारत और सऊदी अरब के बीच दशकों से व्यापार, ऊर्जा और संस्कृति पर आधारित मज़बूत साझेदारी रही है।
साल 2023–24 में दोनों देशों के बीच लगभग 43 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ।
27 लाख भारतीय सऊदी में काम करते हैं और सऊदी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
सऊदी नेतृत्व ने भारत को कई मौकों पर “रणनीतिक साझेदार” कहा, लेकिन पाकिस्तान जैसे आतंकवाद–पालक देश के साथ हाथ मिलाकर सऊदी अरब ने भारत की भरोसेमंद दोस्ती को चोट पहुँचाई है। यह न सिर्फ़ भारत, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए असुरक्षा की नई दीवार खड़ी करता है।
पाकिस्तान: आतंकवाद और असफलता का दूसरा नाम
पाकिस्तान का रिकॉर्ड पूरी दुनिया जानती है:
ISI और सरकार दशकों से आतंकवादी संगठनों को पनाह देते रहे हैं।
FATF ने उसे बार-बार आतंक वित्तपोषण की निगरानी सूची में रखा।
भारत में पहलगाम जैसे हमलों और अफ़ग़ानिस्तान में तालिबानी आतंक में पाकिस्तानी हाथ साबित हो चुका है।
ऐसे देश को सऊदी अरब गले लगाता है तो यह केवल आतंकवाद को वैधता देने जैसा है।
सऊदी–पाक समझौता: छिपा हुआ इज़रायली एजेंडा
इस समझौते का लक्ष्य तकनीकी रूप से भारत नहीं, बल्कि इज़रायल और उसके विरोधियों को ध्यान में रखकर बताया जा रहा है। लेकिन असलियत यह है कि, इज़रायल-फ़िलिस्तीन और क़तर पर हमले कर चुका है और क्षेत्रीय अस्थिरता का मुख्य खिलाड़ी है। सऊदी अरब, अमेरिका और इज़रायल पर भरोसा खोकर अब पाकिस्तान की ओर भागा है। पाकिस्तान भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय शांति के लिए ख़तरा हैं। यह तथाकथित “रक्षा समझौता” दरअसल आतंक और दमनकारी नीतियों को ढकने की चाल है।
सऊदी और पाकिस्तान का आत्मघाती गठबंधन
पाकिस्तान आर्थिक दिवालियेपन पर है। उसका परमाणु हथियार ही उसकी “शोभा” है, लेकिन वही हथियार दुनिया के लिए सबसे बड़ा डर है। सऊदी सोचता है कि पाकिस्तान के सहारे वह अपनी सुरक्षा मजबूत करेगा, लेकिन हकीकत में यह आत्मघाती कदम है। इज़रायल-पाकिस्तान, असुरक्षा, आतंक और दमन की राजनीति के प्रतीक हैं।
पाकिस्तान–सऊदी गठजोड़ केवल अस्थिरता फैलाएगा
भारत को इस गठबंधन से घबराने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि इसे और सतर्क होकर कूटनीति मजबूत करनी चाहिए। सऊदी अरब को आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्तों की अहमियत लगातार याद दिलाना। दुनिया को यह दिखाना कि पाकिस्तान–सऊदी गठजोड़ केवल अस्थिरता फैलाएगा।
सऊदी–पाक समझौता दरअसल आतंकवाद और क्षेत्रीय अस्थिरता को नया जीवन देने की कोशिश है। यह पाकिस्तान जैसे दिवालिया मुल्क और सऊदी जैसी अविश्वसनीय सत्ता को ही भारी पड़ेगा। इज़रायल की आक्रामक नीतियों के साथ मिलकर ये तीनों देश दुनिया में शांति के सबसे बड़े दुश्मन साबित हो रहे हैं। भारत को इस अवसर पर अपने सहयोगियों के साथ मिलकर यह दिखाना होगा कि असली ताक़त शांति, स्थिरता और भरोसेमंद साझेदारी में है – न कि आतंकवादियों के सहारे बनने वाले गठबंधनों में।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

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