तेल, बंदरगाह और क़बीलों की तिकड़ी: हज़रमौत में सऊदी अरब और यूएई का टकराव
यमन का सबसे बड़ा प्रांत हज़रमौत, जिसमें सबसे अधिक तेल संसाधन हैं, एक बार फिर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की प्रतिस्पर्धा का मैदान बन गया है। इस प्रांत के तेल, रणनीतिक बंदरगाहों और क़बीलाई नेटवर्क पर नियंत्रण, दोनों देशों की क्षेत्रीय प्रभावशीलता में निर्णायक भूमिका निभाता है और दक्षिणी यमन में शक्ति संतुलन की कुंजी है।
घटनाक्रम का सिलसिला
2025 के अंत में, हज़रमौत में अमीरात-समर्थित दक्षिणी संक्रमण परिषद (STC) के अलगाववादी बलों और सऊदी-समर्थित हज़रमौत जनजातीय गठबंधन की मिलिशियाओं के बीच सशस्त्र संघर्ष भड़क उठा। कुछ ही दिनों में STC बलों ने वादी हज़रमौत में तेज़ी से बढ़त बनाते हुए प्रमुख शहरों में दक्षिण यमन के पूर्व राज्य के झंडे फहरा दिए। इस दौरान सऊदी अरब ने स्थिति को शांत करने के लिए एक उच्चस्तरीय सैन्य दल भेजा।
इन झड़पों के पीछे दोनों देशों के बीच यमन में प्रभाव और संसाधनों पर नियंत्रण की पुरानी प्रतिद्वंद्विता है, जो हज़रमौत की तेल संपदा, विशाल भू-सीमाओं और इसके रणनीतिक बंदरगाहों के चलते और उभरकर सामने आती है। इसी वजह से यह सवाल उठते हैं: स्थानीय संघर्षों की जड़े क्या हैं? दोनों खाड़ी देशों के हित कौन से हैं? और हज़रमौत का भू-राजनीतिक महत्व क्या है?
घटनाओं का क्रम
नवंबर 2025 के अंत में हज़रमौत जनजातीय गठबंधन ने एक तेल क्षेत्र और पेट्रोमसीला प्रतिष्ठान के आसपास के क्षेत्रों पर नियंत्रण कर तेल उत्पादन रोक दिया, ताकि उन्हें तेल राजस्व में अधिक हिस्सा मिल सके। STC ने इसे सैन्य कार्रवाई का बहाना बनाते हुए दावा किया कि, वादी हज़रमौत हथियारों की तस्करी और उन समूहों की फंडिंग का केंद्र बन गया है जो दक्षिण के हितों के विरोध में हैं। दिसंबर 2025 की शुरुआत में, STC ने “उज्ज्वल भविष्य” नामक अभियान शुरू किया। उन्होंने सीयून शहर और उसके अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे सहित कई शहरों पर कब्जा कर लिया और राष्ट्रपति महल पर दक्षिण का झंडा फहराते हुए वादी हज़रमौत की “मुक्ति” की घोषणा की।
जनजातीय गठबंधन ने बाहरी मिलिशियाओं से प्रांत की रक्षा की कोशिश की लेकिन कुछ क्षेत्रों पर ही नियंत्रण रख सके। शुरूआती दिनों में सऊदी अरब की सीधी सैन्य प्रतिक्रिया न दिखने से STC की बढ़त आसान हो गई।सऊदी अरब ने मोकल्ला में एक सैन्य प्रतिनिधिमंडल भेजकर तनाव कम करने और STC से नए कब्जाए गए क्षेत्रों से पीछे हटने की मांग की। 3 दिसंबर को संघर्षविराम घोषित हुआ, लेकिन अगले दिन फिर झड़पें शुरू हो गईं।
यमन के युद्ध में शामिल पक्ष और उनके समर्थक
1- दक्षिणी संक्रमण परिषद (STC)
2017 में अमीरात के समर्थन से बनी यह परिषद दक्षिण यमन को अलग कर 1990 से पहले की स्थिति बहाल करना चाहती है। STC का विकल्प समर्थित सैन्य ढांचा है जिसमें सेक्योरिटी बेल्ट, शबवा एलीट और हज़रमौत एलीट बल शामिल हैं।
2- हज़रमौत जनजातीय गठबंधन
2013 में बना यह गठबंधन हज़रमौत के लिए स्वायत्त शासन की मांग करता है। यह सऊदी-समर्थित अदन सरकार के अधीन माना जाता है। सऊदी अरब ने 2020 के बाद से इन बलों को अपने प्रभाव के औज़ार के रूप में और मजबूत किया है, और “हज़रमौत प्रोटेक्शन फोर्स” भी बनाई है।
3- अदन स्थित निर्वासित सरकार
तनाव बढ़ने पर राष्ट्रपति नेतृत्व परिषद के प्रमुख रशाद अल-अलीमी अदन से सऊदी अरब चले गए। उन्होंने कहा कि हज़रमौत की संस्थाओं की रक्षा की जिम्मेदारी अदन सरकार की है, और किसी भी “एकतरफा कदम” को अस्वीकार किया। हालांकि उनकी सरकार STC की प्रगति को रोकने में विफल रही।
हज़रमौत का भू-राजनीतिक महत्व
- भौगोलिक स्थिति: यह यमन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा है और पूर्व व दक्षिण को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण रेगिस्तानी मार्ग है।
- बंदरगाह और सीमा: मोकल्ला बंदरगाह और 450 किमी की समुद्री सीमा इसे अत्यधिक रणनीतिक बनाती है।
- तेल संसाधन: यमन के 80–90 प्रतिशत तेल भंडार यहीं हैं।
- आर्थिक महत्व: यह प्रांत राष्ट्रीय GDP का लगभग 16.3 प्रतिशत योगदान देता है।
- सांस्कृतिक पहचान: सुन्नी बहुल आबादी और विशिष्ट क़बीलाई ढांचा इसे अन्य क्षेत्रों से अलग करता है।
सऊदी अरब और अमीरात के हित
सऊदी अरब:
हज़रमौत को दक्षिणी सुरक्षा ढाल और अपनी “पिछली बस्ती” की तरह देखता है। वह अपनी प्रस्तावित तेल पाइपलाइन को समुद्र तक पहुंचाने के लिए क्षेत्र को स्थिर रखना चाहता है।
अमीरात:
दक्षिणी बंदरगाहों पर अपना समुद्री प्रभाव बढ़ाना और हज़रमौत के तेल संसाधनों को रणनीतिक लाभ के रूप में उपयोग करना उसका मुख्य लक्ष्य है। 2019 से दोनों देशों में यमन को लेकर मतभेद और स्पष्ट हो गए।
संभावित परिदृश्य
विस्तार का जारी रहना:
STC अगर नियंत्रण मजबूत कर लेता है, तो मोकल्ला या अल-महरा की ओर बढ़ सकता है, जिससे यमन के उत्तर और दक्षिण के विभाजन की प्रक्रिया और तेज़ होगी।


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