ग़ाज़ा में एक भी शख्स ज़िंदा नहीं बचना चाहिए: इज़रायली सांसद 

ग़ाज़ा में एक भी शख्स ज़िंदा नहीं बचना चाहिए: इज़रायली सांसद

फारस न्यूज़ एजेंसी की अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक़, इज़रायली संसद (नेसेट) के सदस्य ज़वीका फोगेल ने बेशर्मी और क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए अमानवीयमांग की है कि, ग़ाज़ा के सभी लोगों का सफाया इस युद्ध का “स्वीकार्य नतीजा” होना चाहिए। “पावर ऑफ ज्यूडिज़्म” पार्टी से संबंध रखने वाले फोगेल ने इज़रायली चैनल 7 को दिए इंटरव्यू में कहा कि इज़रायल की सैन्य कार्रवाइयाँ, जो ग़ाज़ा में नरसंहार से शुरू हुईं, वेस्ट बैंक में जारी रहनी चाहिए। उन्होंने कहा, “जब तक ये सभी मिशन पूरे नहीं होते, तब तक हमने अपने दुश्मन को नहीं हराया है। यह मेरी सोच है।”
उन्होंने दावा किया:
“7 अक्टूबर को शुरू हुई यह लड़ाई एक दुश्मन के खिलाफ़ है, जो यहूदी राष्ट्र के अस्तित्व को मिटाने की कोशिश कर रहा है। यही सच्चाई है।”फोगेल ने कहा कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इन कार्यवाहियों को एक-एक करके अंजाम देने का फ़ैसला किया है और वो इस फैसले का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा, “हमने हिज़्बुल्लाह को ख़त्म कर दिया है, अब हमने ईरान को इससे भी बड़ा झटका दिया है। अब वक़्त है ग़ाज़ा का हिसाब करने का।”
फोगेल ने आगे कहा:
“मेरी नज़र में ग़ाज़ा में कोई भी निर्दोष नागरिक नहीं है, वहां हर कोई हमास है। उनके अनुसार, “पहला क़दम ये होना चाहिए कि मानवीय मदद रोक दी जाए, बिजली-पानी काट दिया जाए और वहां के लोगों को मार भगाया जाए, जिसे यह लोग ‘स्वैच्छिक पलायन’ कहते हैं।”
फोगेल ने अंत में कहा कि, इस युद्ध के अंत में ग़ाज़ा में सिर्फ़ दो नज़रिए होने चाहिएं:
1- वहां एक भी इंसान बाक़ी न बचे।
2- हमारे सभी 50 बंधक — चाहे ज़िंदा हों या मुर्दा — वापस इज़रायल पहुंचा दिए जाए।
यह बयान इज़रायली सांसद ज़वीका फोगेल का नहीं, बल्कि एक ऐसी क्रूर सोच का प्रतिनिधित्व करता है जो मानवता और अंतरराष्ट्रीय क़ानून के हर उसूल को रौंदती है। ग़ाज़ा के हर नागरिक को “हमास” बताकर सामूहिक नरसंहार को जायज़ ठहराना न सिर्फ़ युद्ध अपराध है, बल्कि यह नस्लीय सफ़ाए (ethnic cleansing) की खुली धमकी भी है।
फोगेल का यह कहना कि “ग़ाज़ा में कोई निर्दोष नहीं” और वहां के सभी लोगों को मार भगाया जाए, दरअसल इज़रायल की उस नीति को उजागर करता है जिसमें ग़ाज़ा के नागरिकों  की जान की कोई क़ीमत नहीं है। यह सोच बताती है कि इज़रायली शासन के कुछ हिस्से अब खुलकर फासीवादी मानसिकता पर उतर आए हैं, जहाँ लाखों बेगुनाह फ़िलीस्तीनी और मासूम बच्चे सिर्फ़ इसलिए मौत के हक़दार बना दिए गए हैं क्योंकि वे ग़ाज़ा में रहते हैं।
इससे भी ज़्यादा डरावना वो हिस्सा है जहाँ फोगेल खुलेआम कहता है कि युद्ध के अंत में ग़ाज़ा में “कोई इंसान बाक़ी न बचे।  यह बयान नाज़ी जर्मनी की भाषा की याद दिलाता है, और संयुक्त राष्ट्र जैसे संस्थानों के लिए एक कड़ी चुनौती है कि क्या वे अब भी चुप रहेंगे? मानवाधिकार संगठनों, स्वतंत्र मीडिया, और अंतरराष्ट्रीय अदालतों को चाहिए कि ऐसे नेताओं और नीतियों को बेनकाब किया जाए, और इनकी ज़िम्मेदारी तय हो। क्योंकि अगर आज ग़ाज़ा चुपचाप मिटा दिया गया, तो कल किसी और की बारी होगी।

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