ग़ाज़ा में इज़रायली हमले में, एक ही दिन में 90 फ़िलिस्तीनी शहीद
इज़रायली सेना ने ग़ाज़ा सिटी और अन्य इलाक़ों पर भीषण हमले जारी रखे, जिनमें 90 फ़िलिस्तीनियों की मौत हो गई। इनमें से सिर्फ़ ग़ाज़ा सिटी में ही 70 लोग मारे गए। फ़िलिस्तीनी सिविल डिफ़ेंस के अनुसार, अल-सबरा मोहल्ले में दग़मूश परिवार के घर पर हवाई हमले में 11 लोग शहीद हुए।
ये हमले ऐसे समय पर हुए हैं जब ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्रिटेन और कनाडा समेत 10 देश सोमवार को औपचारिक रूप से स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य को मान्यता दे चुके हैं। इससे संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना बैठक से पहले बड़ी राजनीतिक हलचल की संभावना है। इज़रायल की ज़मीनी कार्रवाई और ऊँची इमारतों को ढहाने की मुहिम तेज़ हो गई है। सेना का कहना है कि पिछले दो हफ़्तों में लगभग 20 टावर ब्लॉक नष्ट किए गए जबकि क़रीब 3 लाख 50 हज़ार लोग ग़ाज़ा सिटी छोड़ चुके हैं। इसके बावजूद 6 लाख से अधिक नागरिक अब भी वहाँ फँसे हुए हैं।
हमास ने चेतावनी दी है कि इज़रायली क़ैदियों की जानों को गंभीर ख़तरा है क्योंकि इज़रायल की बमबारी और बढ़ती कार्रवाइयों ने हालात को और भी पेचीदा बना दिया है। संगठन का कहना है कि वह तब तक हथियार नहीं डालेगा जब तक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी राज्य की स्थापना नहीं हो जाती।
लगभग दो साल से जारी युद्ध में अब तक 65 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है, ज़्यादातर ढाँचे तबाह हो गए हैं और जनसंख्या बेघर हो चुकी है। अल-शिफ़ा अस्पताल के निदेशक डॉक्टर मोहम्मद अबू सलमिया ने बताया कि हमलों में उनके भाई और भाभी भी शहीद हो गए, जिससे अस्पताल के स्टाफ़ को भी गहरा सदमा पहुँचा है।
ग़ाज़ा में पानी की भीषण क़िल्लत
ग़ाज़ा में मानवीय त्रासदी का ख़तरा और बढ़ गया है, जहाँ नागरिक एक साथ भूख और प्यास के संकट का सामना कर रहे हैं। इज़रायली सेना की नाकेबंदी और सैन्य कार्रवाइयों के कारण पानी और निकासी व्यवस्था लगभग पूरी तरह नष्ट हो चुकी है, वहीं मदद लेने की कोशिश करने वाले नागरिक भी निशाना बनाए जा रहे हैं।
ग़ाज़ा नगरपालिका ने शनिवार को बयान जारी कर कहा कि इज़रायली हमलों ने प्यास और महामारी के ख़तरे को कई गुना बढ़ा दिया है, क्योंकि शहर को रोज़ाना जितना पानी चाहिए उसका सिर्फ़ 25% ही मिल पा रहा है। इस समय लगभग 15 हज़ार घन मीटर पानी इज़रायली लाइन “मेकरोट” से आ रहा है, जो अस्थिर है, जबकि 10 हज़ार घन मीटर स्थानीय कुओं से निकाला जा रहा है। लेकिन यह मात्रा शहर की ज़रूरतों से कहीं कम है।


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