ईरान अब क्षेत्रीय महाशक्ति नहीं रह गया है: नेतन्याहू
इज़रायल के प्रधानमंत्री, जो इन दिनों देश के भीतर सत्ता छोड़ने के लिए कड़े दबाव में हैं, ने एक बार फिर ईरान पर अपने हमलों को उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है। नेतन्याहू ने एक बार फिर वही घिसा-पिटा दावा दोहराया कि “ईरान अब क्षेत्रीय महाशक्ति नहीं है।” इस बयान की टाइमिंग कुछ ज्यादा ही सुविधाजनक है, क्योंकि इस वक्त नेतन्याहू खुद अपने देश में तीखे राजनीतिक बवाल के बीच फँसे हुए हैं। इस्तीफ़े की मांगें बढ़ रही हैं और सरकार की विश्वसनीयता रसातल में जा रही है, ऐसे में ईरान पर “काल्पनिक जीत” पेश करना उनके लिए शायद आखिरी सहारा बन चुका है।
नेतन्याहू ने कहा कि, इज़रायल ने “ईरान के परमाणु और मिसाइल ख़तरे को खत्म कर दिया।” यह दावा सुनकर वही सवाल उठता है जो हर बार उठता है , अगर सच में ऐसा होता, तो फिर इज़रायल की सेना के चीफ ऑफ़ स्टाफ को जनता को यह चेतावनी क्यों देनी पड़ती कि देश को “अचानक होने वाली जंग” के लिए तैयार रहना चाहिए? यह बयान अपने आप में साबित करता है कि, नेतन्याहू की डींगे जमीन से ज्यादा आसमान से जुड़ी होती हैं।
ईरान निश्चित रूप से शुरुआती हमले से चकित हुआ, लेकिन कुछ ही दिनों में उसने जो मिसाइल प्रतिक्रिया दी, उसने इज़रायल को भारी नुकसान पहुँचाया। यह बात सिर्फ़ क्षेत्रीय रिपोर्टों तक सीमित नहीं रही। अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी साफ तौर पर लिखा था कि ईरान ने अपनी मिसाइल क्षमता पूरी तरह पुनर्स्थापित कर ली है और अगर इज़रायल फिर कोई दुस्साहस करता है, तो “दो हज़ार मिसाइलें” एक साथ इज़रायल की ओर उड़ सकती हैं।
नेतन्याहू की समस्या यह है कि वह घरेलू संकटों से बचने के लिए बाहरी दुश्मन की कहानी गढ़ते-गढ़ते अब खुद उन्हीं कथाओं में उलझ गए हैं। उनकी सरकार की नीतियों ने न तो सुरक्षा बढ़ाई, न स्थिरता, उल्टा पूरे क्षेत्र को और अस्थिर कर दिया। ईरान को “कमज़ोर” घोषित करने से पहले इज़रायली नेतृत्व को शायद यह देखना चाहिए कि असल में कमज़ोरी कहाँ है: देश की राजनीति में, सैन्य आकलनों में या उस नेतृत्व में जो हर वास्तविकता को प्रचार में बदलने पर तुला है।


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