हिज़्बुल्लाह का निशस्त्र करने का पहला प्लान नाकाम

हिज़्बुल्लाह का निशस्त्र करने का पहला प्लान नाकाम

हिज़्बुल्लाह को निशस्त्र करने का प्रोजेक्ट तभी कामयाब हो सकता है जब उसमें साफ़ और मुकम्मल टाइम-टेबल हो, जबकि लेबनानी आर्मी की पेशकश में यह मौजूद नहीं है। हिज़्बुल्लाह को निशस्त्र करने की योजना अमेरिकी राष्ट्रपति के ख़ास नुमाइंदे टॉम बर्राक़ ने लेबनानी हुकूमत पर थोपी। 7 अगस्त 2025 को कैबिनेट ने इस प्लान को मंज़ूरी दी। इसके बाद लेबनानी आर्मी को यह जिम्मेदारी दी गई कि, वह एक ऑपरेशनल और टाइम-बाउंड प्लान पेश करे ताकि 2025 के आखिर तक हिज़्बुल्लाह पूरी तरह निशस्त्र हो जाए।

5 सितंबर 2025 को कैबिनेट की बैठक में आर्मी चीफ़ रुदोल्फ़ हाइकल की मौजूदगी में यह प्लान पास किया गया। लेकिन इसमें दो अहम बातें थीं:

पहली, आर्मी ने साफ़ कहा कि, वह इसे अपनी लॉजिस्टिक क्षमता के मुताबिक़ अंजाम देगी, जो सीमित है।

दूसरी, इसमें वह टाइम-टेबल शामिल नहीं था जिसकी मांग अमेरिका कर रहा था।

टाइम-टेबल क्यों ज़रूरी है?
वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट फॉर नियर ईस्ट पॉलिसी ने रिपोर्ट में कहा: “लेबनानी हुकूमत और आर्मी का निशस्त्रीकरण का फ़ैसला अहम है लेकिन बिना साफ़ टाइम-टेबल यह बेमानी होगा, ख़ासतौर पर जबकि अगले साल चुनावी सियासत शुरू होने वाली है।”

यह थिंक टैंक हिज़्बुल्लाह के हथियारों को इज़रायल के लिए बड़ा ख़तरा बताता है और अमेरिका से कहता है कि वह टाइम-टेबल की गैर-मौजूदगी को नामंज़ूर घोषित करे। रिपोर्ट के मुताबिक़, टाइम-टेबल से बचना दरअसल हिज़्बुल्लाह से सीधी टकराव से बचने के लिए है। प्रधानमंत्री ने इस प्रोजेक्ट को इज़रायल के कुछ क़दमों से जोड़ा है जैसे 5 इलाक़ों से पीछे हटना, हवाई हमलों को रोकना और लेबनानी कैदियों को रिहा करना। इस देरी से पूरा अमल सालों तक खिंच सकता है। शुरुआती प्लान में साल के आखिर तक निशस्त्रीकरण की बात थी लेकिन अब ख़बरें हैं कि आर्मी 15 महीने का वक़्त सोच रही है।

आर्मी की क्षमता पर सवाल
लेबनान के सूचना मंत्री पॉल मुरक़ुस ने कहा: “आर्मी इस प्लान को अपनी क्षमता के हिसाब से शुरू करेगी।” यानी आर्मी पर यह ज़ोर नहीं होगा कि वह अमरीकी प्लान के मुताबिक़ आगे बढ़े, बल्कि हालात देखकर फ़ैसला करेगी। वॉशिंगटन इंस्टीट्यूट का कहना है कि अगर हिज़्बुल्लाह को लितानी नदी के उत्तर में हथियार रखने की इजाज़त मिल गई तो यह बेमानी होगा, क्योंकि हिज़्बुल्लाह पहले भी बार-बार हथियार सरहद तक पहुँचाता और ठिकाने फिर से बनाता रहा है।

लेबनानी हुकूमत पर दबाव बढ़ाने की सिफ़ारिश
यह थिंक टैंक अमरीका को मशवरा देता है कि मदद घटाई जाए और आर्मी को इनाम सिर्फ़ तभी दिया जाए जब वह एक तय तारीख़ तक हिज़्बुल्लाह के हथियार क़ब्ज़े में ले। साथ ही, अमरीका को पाबंदियों का इस्तेमाल करके दबाव बढ़ाना चाहिए। रिपोर्ट कहती है कि लेबनान की पार्लियामेंट के स्पीकर खुलकर हिज़्बुल्लाह का साथ देते हैं लेकिन उन पर कभी कोई अंतरराष्ट्रीय असर नहीं पड़ा। लिहाज़ा पाबंदियाँ लगाने और सियासी विकल्पों को मज़बूत करके हिज़्बुल्लाह को तनहा करना ज़रूरी है। माहिरा हनीन बताती हैं: “अगर लेबनान ने साफ़ टाइम-टेबल तय न किया तो सबसे बड़ा नतीजा एक और जंग होगी — इस बार सीधे इज़रायल के साथ।”

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