अमेरिका और इज़रायल के दबाव में हिज़्बुल्लाह का हथियार डालने से इनकार

अमेरिका और इज़रायल के दबाव में हिज़्बुल्लाह का हथियार डालने से इनकार

एक बार फिर लेबनान की ज़मीन को बाहरी ताक़तों के दबाव में लाने की कोशिशें तेज़ हो गई हैं। अमेरिका और इज़रायल, जो हमेशा से हिज़्बुल्लाह को एक रुकावट मानते आए हैं, अब खुलेआम यह चाहते हैं कि यह प्रतिरोधी संगठन अपने हथियार डाल दे – वो भी ऐसे वक़्त जब इज़रायली सेना की आक्रामक कार्यवाहियाँ अब भी लेबनानी सीमाओं को चुनौती दे रही हैं।

हिज़्बुल्लाह, जो केवल एक सशस्त्र संगठन नहीं, बल्कि लेबनानी राष्ट्र की रक्षा की सबसे मज़बूत दीवार है, उसने स्पष्ट कर दिया है कि इज़रायली फौज के पीछे हटने के बाद भी वह अपने हथियार नहीं छोड़ेगा। संसद के अध्यक्ष नबिह बेरी को संगठन की ओर से कहा गया कि अगर राज्य ने हिज़्बुल्लाह पर हथियार छोड़ने के लिए दबाव डाला, तो संगठन टकराव से पीछे नहीं हटेगा।

यह बयान उस वक़्त आया है जब अमेरिकी दूत टॉम ब्रॉक लगातार तीसरी बार बेरूत पहुँचे हैं – यही दिखाता है कि अमेरिका किस हद तक लेबनान की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप कर रहा है। यह वही अमेरिका है जो इज़रायल को ग़ाज़ा में नरसंहार के लिए हर तरह की सैन्य मदद देता है, लेकिन हिज़्बुल्लाह जैसे प्रतिरोधी संगठनों को “आतंकी” कहता है क्योंकि वह इज़रायल की विस्तारवादी नीतियों के सामने झुकता नहीं।

राष्ट्रपति जोसेफ औन भले ही यह कह रहे हों कि हथियार केवल राज्य के पास होने चाहिएं, लेकिन सवाल ये है कि जब राज्य खुद इज़रायल के सामने कमज़ोर साबित हुआ, तब लेबनान की सीमाओं की रक्षा किसने की? जब 2006 की जंग में इज़रायल ने बेरहमी से लेबनानी नागरिकों को निशाना बनाया, तो हिज़्बुल्लाह ही था जिसने दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर किया।

टॉम ब्रॉक की यह टिप्पणी कि “अमेरिका केवल मदद कर सकता है, फैसला लेबनान को करना होगा” एक दिखावटी विनम्रता है। असल में अमेरिका का “मदद” शब्द ही इज़रायल की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का नाम है – भले ही उसके लिए पूरे क्षेत्र को अस्थिर क्यों न करना पड़े।

हिज़्बुल्लाह पर हथियार छोड़ने का दबाव डालना, दरअसल लेबनान की एकमात्र रक्षात्मक शक्ति को निष्क्रिय करने की साज़िश है। और यह साज़िश न केवल इज़रायल और अमेरिका को मुफ़ीद है, बल्कि उन लेबनानी तत्वों को भी जो विदेशी चापलूसी में देश की संप्रभुता गिरवी रखने को तैयार हैं।

अमेरिका इस साल के अंत तक हिज़्बुल्लाह को निहत्था करना चाहता है – लेकिन वह यह भूल गया है कि हिज़्बुल्लाह कोई सरकारी मिलिशिया नहीं, यह एक विचार है, एक प्रतिरोध है, और वह हर उस ताक़त के खिलाफ है जो लेबनान की ज़मीन, सम्मान और आज़ादी को चुनौती देती है।

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