ग़ाज़ा हिरोशिमा से भी ज़्यादा तबाह हो चुका है: हॉरेट्ज़
एक इज़रायली अख़बार ने उपग्रह चित्रों, संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों और ज़मीनी रिपोर्टों के हवाले से कहा है कि, ग़ाज़ा की तबाही आज हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद की स्थिति से भी अधिक भयावह है।
भूख ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं
हॉरेट्ज़ में इज़रायली लेखक और विश्लेषक ‘निर हासोन’ लिखते हैं कि पिछले हफ्ते से ग़ाज़ा में भुखमरी चरम पर पहुँच चुकी है। अस्पताल, मानवतावादी संगठन, पत्रकार और खुद ग़ाज़ा के लोग भोजन की भारी कमी की बात कर रहे हैं। सिर्फ मंगलवार को ग़ाज़ा की स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि 24 घंटे में 15 लोग भूख और कुपोषण से मर गए, जिनमें 4 बच्चे थे। युद्ध शुरू होने से अब तक भूख से 101 लोग मारे गए हैं, जिनमें 80 बच्चे हैं।
“माँ का दूध सूख गया”
लेखक एक महिला ‘सलवा’ के हवाले से लिखते हैं: “दो दिन से कुछ नहीं खाया। शरीर अब दूध नहीं बना रहा और मेरा बच्चा इतना रोता है कि थककर सो जाता है। हम उसे चावल का पानी देते हैं, लेकिन उसका स्वाद ऐसा है कि बच्चा भी हक़ीक़त समझ जाता है।”
रफ़ह अब सिर्फ मलबा है
2023 की अक्टूबर की सैटेलाइट तस्वीरों में रफ़ह एक जीवंत शहर था — इमारतें, मस्जिदें, खेत, सड़कें, बाजार, सोलर पैनल। लेकिन अब वही इलाक़ा सिर्फ धूल और राख का मैदान बन चुका है, जैसे वहाँ कभी कुछ था ही नहीं। इमारतें ध्वस्त हो गईं, खेत-खलिहान ग़ायब हैं, और सड़कें समतल हो चुकी हैं।
हिरोशिमा और नागासाकी से भी ज़्यादा तबाही
अख़बार के अनुसार, रफ़ह और जबालिया में हुई तबाही का स्तर हिरोशिमा और नागासाकी के बाद जैसी या उससे भी ज़्यादा है। मोसुल, सारायेवो और काबुल जैसी शहरों में भी ऐसी तबाही नहीं देखी गई थी।
ग़ाज़ा के प्रमुख इलाक़ों की पूर्व जनसंख्या:
रफ़ह: 2.75 लाख
जबालिया: 56 हज़ार
बेइत लाहिया: 1.08 लाख
बेइत हनून: 62 हज़ार
अबसान कबीरह: 30 हज़ार
बनी सुहैला: 46 हज़ार
अब ये शहर या तो पूरी तरह उजड़ चुके हैं या उनके लोग मारे जा चुके हैं। कई मोहल्ले, जैसे शुजाइया (ग़ाज़ा और ख़ान यूनुस में), नक़्शे से मिट चुके हैं।
17 लाख में से एक तिहाई इमारतें तबाह
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, ग़ाज़ा की 2.5 लाख इमारतों में से करीब 1.74 लाख क्षतिग्रस्त या पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी हैं। इनमें 90,000 पूरी तरह तबाह हैं। 52,000 को मध्यम क्षति हुई है और 33,000 का आकलन अभी नहीं हो सका।
इंफ्रास्ट्रक्चर का विनाश:
501 स्कूलों सहित 2,300 शैक्षिक संस्थान नष्ट
100 से अधिक अस्पताल, मस्जिद, चर्च, फैक्टरी और बाज़ार ध्वस्त
ग़ज़ा के 81% सड़क नेटवर्क को मिटा दिया गया
बिजली, पानी, सीवर, खेती और पशुपालन की प्रणाली ध्वस्त
99% अंडे देने वाली मुर्गियाँ, 94% पशुधन, 93% मछली पकड़ने की दर समाप्त
20 साल का मलबा
यूएन का अनुमान है कि ग़ाज़ा में अब भी करीब 5 करोड़ टन मलबा मौजूद है। उसे साफ़ करने में 20 साल से ज़्यादा लग सकते हैं।
तंबू-शहरों में रह रहे लोग
10 लाख से ज़्यादा लोग अब तंबुओं में रह रहे हैं — ये तंबू या तो मलबे पर हैं, या समुद्र किनारे, या कचरे के ढेरों के बगल में। वहां न बिजली है, न पानी, न शौचालय। भूख और मच्छर हर जगह हैं।
ध्वस्तीकरण: एक सरकारी नीति
इज़रायली सेना अब घरों को जानबूझकर मिटा रही है। ठेकेदारों को भुगतान उन इमारतों की संख्या के आधार पर किया जा रहा है जिन्हें वो गिराते हैं। यह रणनीति अब सरकार की योजना का हिस्सा बन चुकी है — ताकि लोग कभी अपने घर न लौट सकें।
रफ़ह को ख़ाली करके बनाया “मोराग कॉरिडोर”
रफ़ह को पूरी तरह तबाह करके एक रणनीतिक कॉरिडोर बनाया गया है जिसे “मोराग एक्सिस” कहा जाता है। इज़रायली सेना अब उत्तर में ख़ान यूनुस तक इस विनाश को फैला रही है।


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