एम्स्टर्डम से लेकर इज़रायल तक, ग़ाज़ा नरसंहार रोकने और युद्ध-विराम की माँग तेज़
हॉलैंड की राजधानी एम्स्टर्डम में रविवार को करीब ढाई लाख लोगों ने “रेड लाइन मार्च” में हिस्सा लिया, जिसे देश के इतिहास के सबसे बड़े प्रदर्शनों में से एक बताया जा रहा है। लाल कपड़ों में शामिल प्रदर्शनकारियों ने म्यूज़ियम प्लेन से मार्च शुरू किया और सरकार से माँग की कि, वह ग़ाज़ा में जारी नरसंहार के ख़िलाफ़ साफ़ और सख़्त रुख अपनाए।
आयोजकों ने कहा कि यह तीसरा “रेड लाइन” प्रदर्शन है, क्योंकि पहले दो प्रदर्शनों के बावजूद दुनिया भर में युद्ध रोकने के लिए कोई असरदार कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने कहा — “चुनाव के महीने में राजधानी में लाल लकीर खींचकर हम नेताओं और जनता से स्पष्ट फ़ैसला लेने की माँग कर रहे हैं।”
एमनेस्टी इंटरनेशनल, ऑक्सफ़ैम नोविब, पेक्स और द राइट्स फ़ोरम समेत 130 से अधिक मानवाधिकार संगठनों ने इस मार्च का समर्थन किया। कई यहूदी समूहों ने भी इसमें हिस्सा लिया और कहा कि वे इस्राइली सरकार की नीतियों से सहमत नहीं हैं। प्रदर्शनकारियों के बैनरों पर लिखा था — “नरसंहार का समर्थन बंद करो” और “ग़ाज़ा में तुरंत युद्ध-विराम।”
नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया
नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री डिक शौफ़ ने एक्स (ट्विटर) पर बयान जारी करते हुए कहा कि वे प्रदर्शनकारियों के “ग़ुस्से, डर और बेबसी” को समझते हैं। उन्होंने कहा, “ग़ाज़ा में जो पीड़ा चल रही है, वह असहनीय और अस्वीकार्य है। हम इज़रायल पर दबाव डाल रहे हैं कि, वह अपना रास्ता बदले और युद्ध-विराम की दिशा में कदम उठाए।” शौफ़ ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रस्तावित शांति योजना को “उम्मीदभरी” बताया और कहा कि हॉलैंड, क़तर और मिस्र की मध्यस्थता की कोशिशों का पूरा समर्थन करता है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा — “ग़ाज़ा में युद्ध ख़त्म होना चाहिए और मध्यपूर्व में एक स्थायी और न्यायपूर्ण शांति स्थापित होनी चाहिए।”
ग़ाज़ा पर इज़रायली हमलों की दूसरी बरसी के मौक़े पर कराची में दसियों हज़ार लोगों ने शाहरा-ए-फ़ैसल पर विरोध मार्च किया। महिलाओं और बच्चों समेत प्रदर्शनकारी फ़िलिस्तीनी झंडे लहरा रहे थे और पारंपरिक कैफ़ियह स्कार्फ़ पहने हुए थे। यह रैली जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान के नेतृत्व में हुई, जिसने पिछले कुछ महीनों में देशभर में इस्राइल विरोधी प्रदर्शनों की अगुवाई की है। प्रदर्शनकारियों ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से माँग की कि वह “ग़ाज़ा में जारी नरसंहार पर अपनी चुप्पी तोड़े और फ़िलिस्तीनी जनता की सुरक्षा के लिए तुरंत कदम उठाए।”
तुर्की और स्पेन में भी विरोध प्रदर्शन
इस्तांबुल और अंकारा में हज़ारों लोगों ने इज़रायल के ख़िलाफ़ रैलियाँ निकालीं और फ़िलिस्तीनी झंडे लहराए। इसी तरह स्पेन में भी इज़रायली हमलों के विरोध में देशव्यापी प्रदर्शन हुए, जिनमें 21 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की वापसी के बाद बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए।
तेल अवीव में बंधकों की रिहाई की माँग
वहीं इज़रायल के तेल अवीव में “होस्टेज स्क्वायर” पर हज़ारों लोग इकट्ठा हुए, जहाँ उन्होंने सरकार से माँग की कि वह अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की शांति योजना को लागू करे और ग़ाज़ा में बंदी बनाए गए 48 इज़रायली बंधकों की सुरक्षित रिहाई सुनिश्चित करे। इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि वे “बंधकों की वापसी के ऐलान के क़रीब हैं” और उन्होंने अपनी वार्ताकार टीम को मिस्र भेजने का आदेश दिया है ताकि रिहाई के अंतिम इंतज़ाम तय किए जा सकें।
रैली में शामिल लोगों ने “अब नहीं तो कभी नहीं” के नारे लगाए और सरकार से तत्काल कार्रवाई की माँग की। उन्होंने कहा, “अगर ग़ाज़ा के लिए ट्रंप की शांति योजना पर अमल नहीं हुआ तो यह मानवता के संकट को और गहरा कर देगा।” इस दौरान ग़ाज़ा और फ़िलिस्तीन के समर्थन में भी नारे लगाए गए।


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