अमेरिका: ट्रंप प्रशासन ने फिलिस्तीनी राहत संगठनों पर पाबंदी लगाई

अमेरिका: ट्रंप प्रशासन ने फिलिस्तीनी राहत संगठनों पर पाबंदी लगाई

अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को ग़ाज़ा में मानवीय सहायता के बहाने हमास के सैन्य विंग और प्रतिरोध संगठनों की मदद के आरोप में मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप में सक्रिय पाँच राहत संगठनों के साथ एक बड़े फिलिस्तीनी क़ानूनी समूह ‘अदलमीर’ पर भी पाबंदियाँ लगा दीं। अदलमीर एक ग़ैर सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना 1991 में हुई थी और इसका मुख्यालय इज़रायल के क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक के शहर रामल्ला में है।

यह संगठन इज़रायली जेलों में बंद फिलिस्तीनी राजनीतिक क़ैदियों को मुफ़्त कानूनी सहायता और उनकी कैद की स्थितियों की निगरानी करता है। अमेरिकी सरकार का दावा है कि अदलमीर लंबे समय से ‘पीपल्स फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ़ पलेस्टीन’ (PFLP) का समर्थन करता आया है। यह एक वामपंथी धर्मनिरपेक्ष संगठन है, जिसका एक राजनीतिक और एक सैन्य विंग है, और जिस पर इज़रायली नागरिकों के ख़िलाफ़ जानलेवा हमले करने के आरोप हैं।

अमेरिका और इज़रायल ने इस संगठन को आतंकवादी घोषित कर रखा है। अदलमीर ने इन पाबंदियों पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। इज़रायल का आरोप है कि, यह संगठन आतंकवाद को समर्थन देता है, हालांकि अदलमीर एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच जैसे संगठनों के साथ काम करता रहा है और अंतरराष्ट्रीय हिंसा विरोधी नेटवर्क का भी हिस्सा है।

2022 में इज़रायली छापों की संयुक्त राष्ट्र ने निंदा की थी और अदलमीर की मानवीय व विकासात्मक गतिविधियों की सराहना की थी। इसी साल फरवरी में एक इज़रायली -अमेरिकी वकील समूह ‘ज़ाखोर लीगल इंस्टीट्यूट’ ने अदलमीर को अमेरिकी प्रतिबंध सूची में डालने की अपील की थी, जिसमें कहा गया था कि विदेशी ताक़तों को अमेरिका में नफ़रत और हिंसा फैलाने से रोकना चाहिए।

मंगलवार को जिन अन्य संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाए गए उनमें ग़ाज़ा की चैरिटी संस्था ‘अल-जमीय्यत अल-खैरिय्यत अल-विअम’ और इसके नेता, तुर्की की संस्था ‘फिलिस्तीन वक्फ़’, ‘अल-बरकह एसोसिएशन फॉर वेलफेयर एंड ह्यूमैनिटी’ और इसके प्रमुख, नीदरलैंड की ‘इसरा चैरिटेबल फ़ाउंडेशन’ और उसके दो कर्मचारी, और इटली की ‘एसोसियाज़ियोन बेनीफिका ला क्यूपोला द ओरो’ शामिल हैं।

2024 की अमेरिकी वित्त मंत्रालय की आतंकवाद-फंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑनलाइन क्राउडफंडिंग की आड़ में असली चैरिटी और आतंकवाद फंडिंग के बीच फ़र्क करना मुश्किल हो गया है, जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए ऐसे मामलों की जांच और मुश्किल बन सकती है।

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