मुफ्ती सलमान अज़हरी की तुरंत रिहाई का आदेश
प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान और धार्मिक वक्ता मुफ्ती सलमान अजहरी की सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत मंजूर कर ली गई है, जिसके बाद उनकी तत्काल रिहाई का आदेश जारी किया गया। मुफ्ती सलमान पिछले लगभग 9 महीनों से जेल में थे, जिन्हें इस साल 4 फरवरी को गुजरात एटीएस (आतंकवाद-रोधी दस्ते) द्वारा हिरासत में लिया गया था। उन पर जूनागढ़ में एक कथित भड़काऊ और नफरत भरे भाषण देने का आरोप था।
गिरफ्तारी का कारण
गुजरात पुलिस के अनुसार, 31 जनवरी की रात को मुफ्ती सलमान अजहरी ने जूनागढ़ में बी डिवीजन पुलिस स्टेशन के पास एक खुले मैदान में आयोजित एक कार्यक्रम में भाषण दिया था। पुलिस का आरोप था कि मुफ्ती सलमान ने इस कार्यक्रम में जो भाषण दिया, वह कथित तौर पर नफरत फैलाने वाला और भड़काऊ था। उनके इस भाषण के बाद, पुलिस ने उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC) की विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार किया, जिसमें भड़काऊ भाषण और शांति भंग करने के आरोप शामिल थे। इसके अलावा, इस मामले में दो अन्य व्यक्तियों को भी गिरफ्तार किया गया था, जो उस भाषण से जुड़े बताए गए।
कानूनी मामला और जमानत
मुफ्ती सलमान अजहरी के खिलाफ दर्ज एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 295ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से किया गया कार्य) और अन्य संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। यह मामला कई महीनों तक अदालतों में चला, जहां अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि मुफ्ती सलमान के भाषण से समाज में धार्मिक भेदभाव और हिंसा का खतरा था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान मुफ्ती सलमान की जमानत याचिका पर विचार किया और यह पाया कि पुलिस द्वारा पेश किए गए सबूत पर्याप्त नहीं थे या फिर इस आधार पर नहीं थे कि उन्हें और ज्यादा समय तक जेल में रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों को गंभीरता से लेने के बावजूद जमानत को मंजूरी दी और उनकी रिहाई का आदेश दिया।
मुफ्ती सलमान अजहरी एक प्रमुख इस्लामी विद्वान हैं और उनका धर्मशास्त्र और धार्मिक उपदेशों में बड़ा नाम है। वे अक्सर धार्मिक सभाओं और सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपने विचार रखते रहे हैं। उनके भाषणों को लेकर कभी-कभी विवाद भी हुआ है, खासकर उन भाषणों को लेकर जिनमें धार्मिक या साम्प्रदायिक मुद्दों पर चर्चा की जाती है। लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि उनके भाषण धार्मिक जागरूकता और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए होते हैं, न कि हिंसा या नफरत फैलाने के लिए।