मैं उस जगह के लिए वोट क्यों दूं जो अब मेरी नहीं है, मणिपुर राहत शिविर में रहने वालों का बयान

मैं उस जगह के लिए वोट क्यों दूं जो अब मेरी नहीं है, मणिपुर राहत शिविर में रहने वालों का बयान

मणिपुर में दो लोकसभा सीट के लिए चुनाव 19 और 26 अप्रैल को दो चरण में होंगे। आंतरिक मणिपुर और बाहरी मणिपुर के कुछ क्षेत्रों में 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होगा, जबकि बाहरी मणिपुर के शेष क्षेत्रों में 26 अप्रैल को दूसरे चरण में मतदान होगा।’’

मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण 11 महीने पहले अपना घर गंवाने के बाद एक राहत शिविर में रह रही नोबी का कहना है, ‘‘मैं उस जगह के प्रतिनिधि को चुनने के लिए वोट क्यों दूं जो जगह अब मेरी नहीं है… चुनाव का हमारे लिए कोई मतलब नहीं है।’’

नोबी (42) ऐसा सोचने वाली एकमात्र व्यक्ति नहीं हैं। पूर्वोत्तर राज्य में जातीय समूहों के बीच शत्रुता और झड़पों के कारण अपने घर लौट नहीं पा रहे कई लोगों की यही धारणा है कि ‘‘मतदान के अधिकार से पहले जीने का अधिकार’’ है और ‘‘मतदान से अधिक शांति’’ मायने रखती है।

मणिपुर में मतदान प्रतिशत पारंपरिक रूप से बहुत अधिक रहता है। पिछली बार 2019 में हुए आम चुनाव के दौरान राज्य में 82 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ था लेकिन इस बार जातीय हिंसा का असर चुनावों पर पड़ रहा है तथा कई नागरिक समाज समूह और प्रभावित लोग मौजूदा परिस्थितियों में चुनाव कराने की प्रासंगिकता पर सवाल उठा रहे हैं।

नोबी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘सरकार सम्मान के साथ जीने के मेरे अधिकार को सुनिश्चित नहीं कर पाई है और अब वे वोट देने के मेरे अधिकार को सुनिश्चित कर रहे हैं?’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरा घर मेरी आंखों के सामने जला दिया गया। मुझे और मेरे परिवार को वहां से रातों-रात जाना पड़ा। हमें यह भी नहीं पता कि वहां क्या बचा है।

नोबी ने कहा, ‘‘मैं उस जगह के प्रतिनिधि को वोट क्यों दूं जो अब मेरी नहीं है? यह सब नौटंकी है… चुनाव हमारे लिए कोई मायने नहीं रखता।’’ पहाड़ी राज्य में पिछले साल तीन मई से बहुसंख्यक मेइती समुदाय और कुकी समुदाय के बीच कई बार जातीय झड़पें हुईं हैं, जिनके परिणामस्वरूप 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है।

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