अकेले चुनाव लड़ने का फैसला, ममता के लिए बड़ी भूल साबित हो सकता है
विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस’ (इंडिया) को झटका देते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी की चीफ ममता बनर्जी ने बुधवार (24 जनवरी) को घोषणा की कि लोकसभा चुनाव राज्य में हम अकेले लड़ेंगे। उन्होंने कांग्रेस और टीएमसी के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर कहा, ‘‘मैंने उन्हें (कांग्रेस) सीटों के बंटवारे पर एक प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने शुरू में ही इसे नकार दिया। हमारी पार्टी ने अब बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है।
हालांकि इस बात के पहले से क़यास लगाए जा रहे थे कि, ममता बनर्जी गठबंधन छोड़कर अकेले चुनाव लड़ सकती हैं। इसका इशारा उसी वक़्त मिल गया था जब वह या उनकी पार्टी का कोई भी नेता गठबंधन की वर्चुअल बैठक में शामिल नहीं हुआ था। उससे पहले भी उन्होंने गठबंधन की मीटिंग में जब नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की अटकलें लगाई जा रही थीं तब ममता ने प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन का नाम लेकर सबको चौंका दिय था।
अगर ममता बनर्जी के बयान को ग़ौर से देखा जाए तो उनके और मायावती के बयान में काफी समानता नज़र आती है। ममता बनर्जी और मायावती उन नेताओं में से हैं जो किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन करते समय सिर्फ अपना फ़ायदा देखती हैं। अगर मायावती उत्तर प्रदेश में, अपना वर्चस्व देखना चाहती हैं, तो ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में। 2019 लोकसभा चुनाव में मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था। सपा और बसपा ने कांग्रेस को गठबंधन से अलग कर दिया था।
दोनों पार्टियों को उत्तर प्रदेश में अप्रत्याशित जीत की उम्मीद थी लेकिन जो नतीजा आया उसने सपा, बसपा के साथ साथ पूरे देश को चौंका दिया। कांग्रेस को अलग रखने की भूल दोनों पार्टियों को भारी पड़ गई। सपा के खाते में पांच तो कांग्रेस के खाते में केवल एक सीट आई जबकि सपा से गठबंधन के कारण बसपा के खाते में 10 सीटें आ गईं। यानी कांग्रेस को छोड़ कर गठबंधन करने का फ़ायदा केवल मायावती को मिला अखिलेश को नहीं। यह बात अखिलेश भी भली भांति समझ गए हैं। मायावती ने भी जितनी सीटों की कल्पना की थी उतनी सीटें उनके खाते में नहीं आ सकीं।
इससे पहले जब भी मायावती ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है कांग्रेस को उतना फायदा भले ही न मिला हो लेकिन बसपा को उसका भरपूर फायदा मिला है। लेकिन अब मायावती का अकेले चुनाव लड़ने का फ़ैसला उनके हक़ में लाभदायक कम और हानिकारक ज़्यादा नज़र आ रहा है। उनके अलग लड़ने का सबसे ज़्यादा फ़ायदा अगर किसी पार्टी को मिल सकता है तो वह है भाजपा। शायद इसी लिए भाजपा यूपी में अपनी सीटों को लेकर आश्वस्त नज़र आ रही है।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का अकेले चुनाव लड़ने का फैसला भी कहीं यूपी की तरह उनके लिए हानिकारक साबित न हो जाए। अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन ममता के लिए फायदेमंद साबित नहीं हुआ तो नुक़सानदेह भी नहीं होगा, लेकिन अगर ममता बनर्जी अकेले चुनाव लड़ती हैं तो यूपी की तरह बंगाल में, टीएमसी को भी ज़बरदस्त नुकसान हो सकता है। यह फैसला ममता के लिए एक बड़ी भूल भी साबित हो सकता है।