अयोध्या में राम मंदिर (Ram Mandir) का निर्माण ज़ोरों से चल रहा है. लेकिन मंदिर निर्माण में कुछ मुश्किल का सामना करना पद रहा है मंदिर निर्माण में लगे हुए इंजीनियरों के सामने कुछ तकनीकी चुनौतियां आ रही हैं. मंदिर निर्माण के लिए जब 200 फीट नीचे के मिट्टी की जांच की गई तो पता चला वहां की मिट्टी बलुआ है यानी सिर्फ पत्थरों से बनने वाले राममंदिर के भार को उठाने के लिए जिस तरह की मिट्टी की दरकार थी वो मिट्टी वहां नहीं मिल पा रही है.
रामजन्म भूमि पर पिछले एक महीने से ज्यादा से पाइलिंग की खुदाई कर मिट्टी की जांच का काम चल रहा है लेकिन जब मंदिर निर्माण में लगी कंपनी लॉर्सन एंड टूब्रो को मनमाफिक मिट्टी की परत नहीं मिली तो रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सामने दिक्कतें आईं.
अब मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र की अध्यक्षता में एक सब-कमिटी बनाई गई है जिसमे देश के नामी और और प्रतिष्ठित तकनीकी विशेषज्ञ मंदिर की नींव फाउंडेशन को लेकर अपनी अनुशंसा देंगे.
सरयू नदी के किनारे होने के कारण बुनियाद में मिल रही बालू के कारण मंदिर की मजबूती को लेकर सवाल पैदा हो रहे हैं. दरअसल पाइलिंग टेस्ट के दौरान पिलर थोड़ा खिसक गया था. पता चला कि इसकी वजह जमीन के नीचे सरयू नदी की परत मिलना है. तकनीकी विशेषज्ञों का मानना है कि कभी इसके पास से सरयू नदी गुजरती रही होगी.
निर्माण एजेंसी के विशेषज्ञों और ट्रस्ट के सदस्यों के बीच 2 दिन के विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि अब तकनीकी सब-कमिटी की रिपोर्ट के बाद नए सिरे से मंदिर निर्माण के फाउंडेशन की शुरुआत होगी. अब विशेषज्ञों की नई रिसर्च रिपोर्ट जल्द आएगी. बताया जाता है कि इस रिपोर्ट पर मंथन के बाद ही अब राम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू होगा. रेत की परत पर बुनियाद की पकड़ मजबूत कैसे हो इस पर अध्ययन चल रहा है. यह 8 दिन में अध्ययन पूरा हो जाएगा इसके बाद काम आगे बढ़ाया जाएगा.
1000 साल हो मंदिर की आयु
राम जन्मभूमि मंदिर का निर्माण ईट के बजाए पत्थर की तराशी गयी शिलाओं से होगा. निश्चित रूप से शिलाओं का वजन भी अधिक होगा. राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट चाहता है कि राम जन्मभूमि पर बनने वाले श्री राम जन्मभूमि मंदिर की अवधि 1000 साल से कम ना हो. इसीलिए यह तय किया गया कि राम मंदिर की बुनियाद के पिलर में लोहे की सरिया का इस्तेमाल ना किया जाए, क्योंकि लोहे में जंग जल्दी लगता है.
चांदी की पत्तियों से जोड़े जाएंगे पिलर
विशेषज्ञों के मुताबिक पिलर्स को आपस में जोड़कर बुनियाद का फाउंडेशन तैयार किया जाएगा. बुनियाद का फाउंडेशन तैयार होने के बाद तराशे गए पत्थरों की शिलाओं को क्रमबद्ध तरीके से जोड़ा जाएगा. पत्थर की शिलाएं इस तरह तैयार की गई है कि वह एक दूसरे के खांचों में फिट हो जाए. इसीलिए इनको जोड़ने के लिए अन्य किसी चीज की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. केवल चांदी की पत्तियों का ही प्रयोग होगा. इन शिलाओं को व्यवस्थित तरीके से एक दूसरे के ऊपर स्थापित करने के लिए अत्याधुनिक क्रेन का प्रयोग किया जाएगा. एक अनुमान के मुताबिक राम जन्मभूमि मंदिर के प्रथम तल का निर्माण लगभग 2 वर्षों में पूरा हो जाएगा.


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