बेगुनाहों और मासूमों का खून बहना जारी है

बेगुनाहों और मासूमों का खून बहना जारी है

मणिपुर हिंसा की आग में झुलस रहा है। शांति और अमन के सारे प्रयास विफल हो चुके हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकार शांति स्थापित करने में पूरी तरह नाकाम नज़र आ रही है। मासूम और बेगुनाहों का क़त्ले आम जारी है। नफ़रत की आग पूरे देश में फैलती जा रही है। इसका ताज़ा उदाहरण नूह हिंसा और जयपुर ट्रेन हादसा है जिसमे आरपीएफ कांस्टेबल ने चार बेगुनाह और मासूम लोगों का क्रूरता पूर्वक क़त्ल करके उनके घरों के चिराग़ को हमेशा हमेशा के लिए बुझा दिया।

मणिपुर हिंसा, नूह हिंसा, जयपुर ट्रेन हिंसा, का विश्लेषकों ने अलग अलग तरह से विश्लेषण किया है। कोई इसे संयोग कह रहा है तो कोई इसे प्रयोग कह रहा है लेकिन कुछ प्रश्न ऐसे ज़रूर हैं जो जनता के दिलों में संदेह पैदा कर रहे हैं।

पहला प्रश्न यही है कि दंगाई कौन थे ? कहां से आए थे ? अगर यह कहा जा रहा है कि हिंसा प्रायोजित थी और एक महीने पहले से इसकी तैयारी हुई थी तो वहां का प्रशासन क्या कर रहा था ? मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी के आपत्तिजनक और भड़काऊ वीडियो वायरल होने के बाद भी प्रशासन की आँख क्यों नहीं खुली?

मोनू मानेसर, नासिर और जुनैद की निर्मम हत्या का आरोपी होने के बाद भी आज़ाद कैसे घूम रहा है ? उसका वीडियो वायरल होने के बाद भी गृहमंत्री अनिल विज क्यों कह रहे थे कि इस हिंसा के पीछे उसका हाथ नहीं है ? वह अभी तक पुलिस की गिरफ़्त से बाहर क्यों है? जबकि वह मीडिया चैनल को बयान दे रहा है।

विहिप की शोभा यात्रा अगर पहले से तय थी तो सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम क्यों नहीं थे? शोभायात्रा के समय वहां के एसपी छुट्टी पर क्यों थे? धारा 144 के बाद भी शोभायात्रा निकालने की अनुमति क्यों दी गई ? मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि पुलिस हर व्यक्ति को सुरक्षा नहीं दे सकती तो फिर आम आदमी को सुरक्षा कौन देगा?

मंदिर परिसर से गोली चलाने वाला कौन था? और वह पुलिस की मौजूदगी में गोली कैसे चला रहा था ? जिसका बचाव एक चैनेल के एंकर ने यह कह कर किया था कि वह सादी वर्दी में पुलिस का आदमी था जबकि बाद में साफ़ हो गया कि वह पुलिस का आदमी नहीं था। उसने खुद बयान दिया कि उसने सेल्फ़ डिफेंस में गोली चलाई थी। अगर उसने सेल्फ़ डिफेंस में गोली चलाई थी तो पुलिस क्या कर रही थी? या तो पुलिस उसे सुरक्षा देती या फिर गोली चलाने के जुर्म में गिरफ़्तार करती ?

आज अगर कोई नेता, पत्रकार, या विश्लेषक उपद्रवियों के विरुद्ध कोई बयान देता है तो उसे हिन्दू विरोधी बना दिया जाता है जबकि दंगाई और उपद्रवी का कोई धर्म मज़हब नहीं होता उसका केवल एक धर्म होता है आतंक फैलाना, दंगे करना और करवाना। दंगाई, दंगाई है चाहे मुसलमान हो या ईसाई, हिन्दू हो या सिख।

जब तक ऐसी मानसिकता वालों के विरुद्ध आवाज़ बुलंद नहीं की जाएगी, जब तक भड़काऊ भाषणों पर लगाम नहीं लगाई जाएगी, जब तक मोनू मानेसर और बिट्टू बजरंगी जैसे लोगों पर शिकंजा नहीं कसा जाएगा तब तक बेगुनाहों के क़त्ल का सिलसिला जारी रहेगा।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए IscPress उत्तरदायी नहीं है।

 

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