सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल-केरल के राज्यपालों को भेजा नोटिस, बिल मंजूरी में देरी का आरोप
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केरल और पश्चिम बंगाल के राज्यपालों को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस राज्यपालों द्वारा राज्य सरकारों के बिलों को मंजूरी देने में बार-बार देरी करने के आरोपों के बाद जारी किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने यह आदेश पारित किया।
दोनों राज्यों की सरकारों ने अपनी-अपनी याचिकाओं में आरोप लगाया है कि राज्यपालों ने कई बिलों को मंजूरी देने में महीनों की देरी की है, कुछ मामलों में तो बिलों को मंजूरी देने से इनकार कर दिया है या उन्हें राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रख दिया है। केरल और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठाया है, ताकि राज्यपालों के इस रवैये पर रोक लगाई जा सके और बिलों की मंजूरी की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जा सके।
केरल और पश्चिम बंगाल की स्थिति
केरल सरकार ने बताया है कि राज्य के आठ बिल राज्यपाल के पास लंबित हैं, जिनमें से दो बिल पिछले 23 महीनों से मंजूरी की प्रतीक्षा में हैं। इसी तरह, पश्चिम बंगाल सरकार ने बताया कि राज्य के भी आठ बिल राज्यपाल द्वारा मंजूरी के लिए लंबित रखे गए हैं।
वकीलों के तर्क
केरल और पश्चिम बंगाल सरकारों की ओर से वरिष्ठ वकील के. वेंगुपाल और अभिषेक मनु सिंघवी ने अपने संक्षिप्त तर्क प्रस्तुत किए। वेंगुपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में दिशा-निर्देश तय करने की जरूरत है कि राज्यपाल कब बिलों को वापस भेज सकते हैं या राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि राज्यपाल को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे कब बिलों को मंजूरी देने से इनकार करेंगे।
कोर्ट की प्रतिक्रिया
कोर्ट ने इस पर सहमति जताई कि इस मामले में दिशा-निर्देश तय किए जाने चाहिए, लेकिन फिलहाल कोर्ट ने दोनों राज्यों के राज्यपालों को नोटिस जारी कर तीन हफ्तों के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि विभिन्न राज्यपालों को यह स्पष्ट रूप से पता नहीं है कि बिलों की मंजूरी के संबंध में उनके अधिकार क्या हैं, इसलिए इस मुद्दे पर बाद में विस्तार से विचार किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम केरल और पश्चिम बंगाल की सरकारों के लिए महत्वपूर्ण है, जो राज्यपालों द्वारा बिलों को मंजूरी देने में देरी के कारण अपने महत्वपूर्ण विधायी कार्यों को आगे बढ़ाने में कठिनाई का सामना कर रही हैं। अब यह देखना होगा कि राज्यपालों का विस्तृत जवाब क्या होता है और सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे क्या दिशा-निर्देश तय करती है।