शिवसेना का आरोप, मायावती को जांच एजेंसियों का डर दिखाकर जीती भाजपा

शिवसेना का आरोप, मायावती को जांच एजेंसियों का डर दिखाकर भाजपा जीती

भाजपा की दशकों तक सहयोगी रही शिवसेना ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत को लेकर तीखा हमला बोला है।

बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के माध्यम से दबाव बनाने के आरोप लगाते हुए शिवसेना ने अपने मुख पत्र सामना में भाजपा पर जमकर आरोप लगाए।

शिवसेना के मुखपत्र में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की उपस्थिति सिर्फ औपचारिकता भर थी। मायावती को इन चुनावों से दूर रहने के लिए मजबूर किया गया। मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी यूपी चुनाव से भाग गई और उनके वोटों को भारतीय जनता पार्टी की ओर मोड़ दिया गया।

सामना के संपादकीय में कहा गया है कि कभी उत्तर प्रदेश की राजनीति में रोड़ा बनकर मायावती चारों ओर घूमती थी, लेकिन अब आय से अधिक संपत्ति के मामले में केंद्रीय एजेंसियों के दबाव ने उन्हें चुनाव से दूर रहने के लिए मजबूर कर दिया। जिस पार्टी ने उत्तर प्रदेश में कभी अपने दम पर सत्ता हासिल की थी वह राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से केवल एक पर जीत हासिल कर सकी है। क्या कोई इसे स्वीकार कर सकता है ?

शिवसेना ने दावा करते हुए कहा है कि राज्य चुनावों में भाजपा की जीत का मुख्य कारण केंद्रीय जांच एजेंसियों का दबाव है और इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण मायावती है। चार राज्यों में जीत की खुशी ने भाजपा और उसके नेताओं को बेचैन कर दिया है। शिवसेना के मुखपत्र के संपादकीय में महाराष्ट्र भाजपा नेताओं पर भी निशाना साधा गया है जो पार्टी की जीत का जश्न मना रहे हैं।

सामना ने अपने संपादकीय में कहा कि जैसे ही उत्तर प्रदेश में जीत हासिल हुई महाराष्ट्र के भाजपा नेताओं ने कहना शुरू कर दिया उत्तर प्रदेश की झांकी खत्म हो गई है, महाराष्ट्र अभी बाकी है। राज्यों में चुनाव में जीत हासिल करने पर शिवसेना ने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा कि अब यूक्रेन के नाम पर सरकार पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ाने के लिए आजाद है।

भाजपा को उत्तर प्रदेश में बहुमत के जादुई आंकड़े से 60 सीटें ज्यादा मिली हैं जिसके लिए पूरी केंद्रीय सत्ता दांव पर लगी हुई थी। सामना में कटाक्ष करते हुए सवाल किया गया कि केंद्रीय जांच एजेंसियां महाराष्ट्र के राजनीतिक नेताओं के पीछे लगी हुई हैं, आखिर केंद्रीय एजेंसियां सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक विरोधियों के लिए निष्पक्ष क्यों हैं ?

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