राहुल गांधी या धर्म संसद अपवाद नहीं, नफरती भाषण देने वालों को मिले सजा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता इंद्रेश कुमार ने कहा है कि नफरती भाषण देने वालों को सजा मिलनी चाहिए।
राहुल गांधी द्वारा गांधी जयंती के अवसर पर किए गए ट्वीट पर भी निशाना साधते हुए आरएसएस नेता ने कहा कि एक वर्ग या संगठन के खिलाफ नफरत पैदा करने वाले निराधार आरोपों को भी घृणा फैलाने वाला भाषण माना जाना चाहिए। हरिद्वार में हुई तथाकथित धर्म संसद में अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरती भाषण दिए जाने की निंदा करते हुए आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि भड़काऊ भाषण देने वालों को कानून के अनुसार दंडित किया जाना चाहिए।
इंद्रेश कुमार ने समाचार एजेंसी पीटीआई को इंटरव्यू देते हुए कहा कि नफरत की राजनीति भ्रष्टाचार के समान ही है। किसी भी जाति, समुदाय या समूह के खिलाफ विभाजनकारी और भड़काऊ टिप्पणी करने के बजाय उन्हें देश एवं जनता के सर्वोत्तम हित में भाईचारे और विकास की राजनीति करनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और हरिद्वार में हुई तथाकथित धर्म संसद में घृणा फैलाने वाले एवं भड़काऊ भाषणों पर इंद्रेश कुमार की राय जानी गई तो उन्होंने कहा कि किसी भी तरह की नफरती बयानबाजी निंदनीय है। सभी नफरती बयानों की निंदा की जानी चाहिए और उन्हें कानून के अनुसार दंडित किया जाना चाहिए। किसी को भी अपवाद के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।
आरएसएस के इस नेता ने कहा कि नफरती बयानबाजी के बहुत से उदाहरण है और ऐसे सभी अलगाववादी एवं भेदभाव तथा विभाजनकारी हरकतों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करना समय की जरूरत है, क्योंकि इससे देश का माहौल खराब होता है।
कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों की ओर से गांधी जी की हत्या के लिए आरएसएस और उसकी विचारधारा को जिम्मेदार ठहराने की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि वह अपने आरोपों को साबित करने के लिए कोई भी सबूत नहीं रखते लेकिन इसके बावजूद निराधार आरोप लगाते रहते हैं।
राहुल गांधी की ओर से दिए गए बयान कि “एक हिंदुत्ववादी ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी” पर इंद्रेश कुमार ने कहा कि वो कहते हैं कि हिंदुत्ववादियो ने गांधी को मार डाला। यह भी तो एक नफरती बयान है। इंद्रेश कुमार ने तर्क देते हुए कहा कि लोगों के एक वर्ग या संगठन के खिलाफ नफरत पैदा करने वाले निराधार आरोपों को भी घृणा फैलाने वाला भाषण माना जाना चाहिए।
आरएसएस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि सभी नफरती बयानों को एक ही चश्मे से देखे जाने की जरूरत है। हम घृणित, उत्तेजक और विभाजनकारी बयानों पर कार्यवाही को लेकर अंतर नहीं कर सकते हैं। जबकि दोनों प्रकृति और सार में समान हैं।


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