राहुल गाँधी बन सकते हैं संसद में विपक्ष के नेता: रिपोर्ट
पंजाब के सियासी फेरबदल ने केंद्र की विपक्षी राजनीति में भी हलचल पैदा हो गई है। पंजाब जैसे सियासी फेरबदल की सुगबुगाहट राजस्थान और छत्तीसगढ़ से भी आ रही है।
कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं की तरफ से राहुल गांधी पर जिम्मेदारी से बचने और निर्णय लेने में संकोच के आरोप लगते रहे हैं, इसलिए कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के बाद राहुल कुछ और बड़े फैसले ले सकते हैं। ये बदलाव कांग्रेस में संगठन स्तर पर भी होंगे, जिनसे विपक्षी दलों को एकजुट करने की रणनीति को बल मिले।
पंजाब के सियासी फेरबदल के पीछे कैप्टन के भी चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर की भूमिका मानी जा रही है। बताया जा रहा कि पंजाब में किया गया यह बदलाव 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति की ही एक कड़ी है। अब आगे कांग्रेस की केंद्रीय भूमिका को मजबूती देने के लिए राहुल संसद में विपक्ष के नेता का दायित्व संभाल सकते हैं। वहीं, दूसरी ओर एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को ग्रैंड एलायंस तैयार करने का जिम्मा दिया जा सकता है।
ग़ौर तलब है कि राजनीतिक बहस को मोदी बनाम राहुल तक नहीं सिमटने देने की रणनीति भी तैयार की गई है। पीएम मोदी के जन्मदिन को बेरोजगारी दिवस के तौर मनाना, टीएमसी के मुखपत्र में ममता बनर्जी को ही असली विकल्प के तौर पर पेश करना विपक्षी सियासत का ही नया पैंतरा बताया जा रहा है।
बता दें कि विपक्षी एकजुटता के लिए काम कर रहे एक रणनीतिकार के अनुसार, आने वाले समय में कई नेताओं को राष्ट्रीय विकल्प के तौर पर पेश किया जाएगा, ताकि भाजपा मोदी बनाम राहुल का कार्ड न खेल सके। इसकी शुरुआत ममता बनर्जी से हो चुकी है।
दूसरी पार्टियों के साथ समन्वय के लिए एनसीपी सुप्रीमो को यूपीए का औपचारिक पद देने की तैयारी है। उन्हें संयोजक बनाया जाए या कार्यवाहक चेयरमैन, इस पर मंथन जारी है। पवार यूपीए के अलावा गैरभाजपा दलों जैसे टीएमसी, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना राष्ट्र समिति के साथ तालमेल का जिम्मा संभालेंगे।
हालंकि कांग्रेस में भी गैर गांधी नेता को बड़ी जिम्मेदारी देना इस व्यापक रणनीति का हिस्सा है। हो सकता है कांग्रेस कमलनाथ और गुलाम नबी आजाद को आगे लाए कमलनाथ को राजनीतिक मामलों का प्रभारी पद दिया जा सकता है जबकि गुलाम नबी आजाद दूसरे दलों के साथ तालमेल बनाएंगे।
रिपोर्ट के अनुसार सोनिया गांधी ने कमलनाथ को नई भूमिका के बारे में बता दिया है। कमलनाथ को कार्यवाहक पद की शक्तियां दी जाएंगी, ताकि वे फैसले लेने की स्थिति में रहें।
ग़ौर तलब है कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर 2024 तक प्रचार रणनीति की कमान संभालेंगे। असमंजस इस बात को लेकर है कि वे पर्दे के पीछे से काम करें या पार्टी में शामिल हो जाएं। चुनावी मुद्दे भी उनकी टीम तय करेगी, जिसकी झलक मोदी के जन्मदिन को बेरोजगार दिवस के तौर पर मनाकर दिखा दी है।
रिपोर्ट से ये बात भी समझ आ रही है कि प्रधानमंत्री पद के लिए विकल्प के तौर पर कई क्षेत्रीय नेताओं के नाम पेश किया जा सकता है । फिर आखिर में ‘मोदी से कौन लड़ेगा, मोदी से देश लड़ेगा’ और ‘नो वोट टू बीजेपी’ के दो नारों पर मिशन-2024 को केंद्रित किया जाएगा। रणनीति की पटकथा आने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान पूरी कर दी जाएगी।


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